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सियासी ”पैंतरे” में बदल गई है 84 कोसी यात्रा

नयी दिल्लीःविश्व हिंदू परिषद की अयोध्या में प्रस्तावित 84 कोसी यात्रा ने अयोध्या मुद्दा फिर गरमा दिया है. यूपी सरकार से इजाजत न मिलने के बावजूद वीएचपी परिक्रमा पर अड़ी है. उसके साथ खड़ी दिख रही बीजेपी का कहना है कि समाजवादी पार्टी में कुछ कट्टरपंथी नेताओं की नाराजगी के मद्देनजर परिक्रमा पर पाबंदी लगाई […]

नयी दिल्लीःविश्व हिंदू परिषद की अयोध्या में प्रस्तावित 84 कोसी यात्रा ने अयोध्या मुद्दा फिर गरमा दिया है. यूपी सरकार से इजाजत न मिलने के बावजूद वीएचपी परिक्रमा पर अड़ी है. उसके साथ खड़ी दिख रही बीजेपी का कहना है कि समाजवादी पार्टी में कुछ कट्टरपंथी नेताओं की नाराजगी के मद्देनजर परिक्रमा पर पाबंदी लगाई गई है. एक-दूसरे पर तीखे हमलों के बीच बीएसपी और कांग्रेस दोनों को पूरा मामला वोट बैंक की सियासत नजर आ रहा है.

30 जुलाई को विश्व हिंदू परिषद ने 25 अगस्त से अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा का ऐलान किया. 17 अगस्त को वीएचपी ने एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह और मुख्यमंत्री अखिलेश से परिक्रमा की इजाजत मांगी. 19 अगस्त को यूपी सरकार ने परिक्रमा पर रोक लगा दी. इसके साथ ही परिक्रमा पर विवाद खड़ा हो गया. वीएचपी 25 अगस्त से 13 सितंबर के बीच परिक्रमा पर अड़ी है.

ऐलान के मुताबिक 25 अगस्त को अयोध्या में सरयू पूजन होगा. फिर बस्ती जिले के मखौड़ा से परिक्रमा का आगाज होगा. मान्यता है कि मखौड़ा में ही राजा दशरथ ने पुत्र कामना का यज्ञ किया था. परिक्रमा पर पाबंदी लगाने वाली यूपी सरकार की दलील है कि अयोध्या में इस बार 25 अप्रैल से 20 मई के बीच परिक्रमा हो चुकी है. सत्ताधारी समाजवादी पार्टी का कहना है कि दोबारा परिक्रमा कर वीएचपी नई परंपरा डालने की कोशिश कर रही है. अयोध्या के कुछ संत भी इससे इत्तेफाक रखते हैं.

शनिधाम अयोध्या के महंत हरिदयाल शास्त्री कहते हैं कि 84 कोसी परिक्रमा तो पहले ही पूरी हो चुकी है. अब ये राजनीति करने के लिए बेवजह और बेवक्त परिक्रमा का स्वांग कर रहे हैं. विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि परिक्रमा तो कभी भी हो सकती है और हम तो पदयात्रा कर रहे हैं. इसमें कौन सी आफत आ गई है.

मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या के राजा राम का साम्राज्य 84 कोस में फैला था. राज्य का नाम कौशलपुर था जिसकी राजधानी अयोध्या थी. इसी वजह से दशकों से 84 कोसी परिक्रमा की परंपरा है. इसके रास्ते में बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, अंबेडकरनगर, बस्ती जिले आते हैं. 84 कोसी परिक्रमा चैत्र पूर्णिमा से बैशाख पूर्णिमा के बीच होती है. इसके मुताबिक ही इस बार 25 अप्रैल से 20 मई के बीच परिक्रमा हुई थी.

माना जा रहा है कि वीएचपी की यात्रा का असर 84 कोसी परिक्रमा के जिलों के समेत कई और जिलों पर भी पड़ सकता है. वीएचपी का ये ऐलान भी है कि परिक्रमा के दौरान 50 जगहों पर सभाएं भी होंगी. लिहाजा, आंच गोरखपुर, देवरिया, बहराइच, श्रावस्ती, सुल्तानपुर तक पहुंचने की आशंका है. बाराबंकी के टिकैतपुर से गोंडा और बस्ती से फैजाबाद तक तमाम ऐसे इलाके हैं जहां टकराव हो सकता है. हिंदू संगठनों का तर्क है कि सरयू नदी का जलस्तर बढ़ा है लिहाजा नाव से परिक्रमा मुमकिन नहीं है, इसलिए विहिप ने विकल्प के रूप में नया रास्ता चुना है इसीलिए, जानकार भी यात्रा के पीछे सियासत देख रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि ये तो दोनों ने आपस में तय कर रखा है कि एक ने मांग ही इसलिए की ताकि रिजेक्ट हो जाए. मुलायम को रिजेक्ट करने में फायदा होगा, बीजेपी को रिजेक्ट होने में. पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि पुलिस बल लगाना और आशंका पर सतर्क रहना सरकार का अधिकार है लेकिन असल में ये वोटों के ध्रुवीकरण की पहली कड़ी है.

जाहिर है वीएचपी यात्रा के पीछे चाहे जो दलील दे लेकिन विरोधियों को उसके ऐलान के पीछे अयोध्या मुद्दा फिर गर्माने की कोशिश ही नजर आ रही है. वीएचपी के विरोधियों का आरोप है कि 84 कोसी परिक्रमा के बहाने वो वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है, ताकि बीजेपी को 80 और 90 के दशक की तरह ही हिंदू वोट का फायदा मिल सके. देश में अभी भी बहुत से लोग वो दौर नहीं भूले हैं जब वीएचपी के शुरू किए गए मंदिर आंदोलन ने देश की सियासत की धारा ही मोड़ दी थी इसीलिए ये आशंका जताई जा रही है कि क्या ध्रुवीकरण की सियासत देश को फिर उसी दौर की तरफ धकेल रही है.

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