नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) को सूचित किया जाये कि वह 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में अपना फैसला तब तक नहीं सुनाये जब तक कि वह किशोर शब्द की व्याख्या के लिए दायर नयी जनहित याचिका पर निर्णय नहीं कर लेता है.
मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी से कहा कि वह इस मुद्दे पर जेजेबी को सूचित कर दें और उनके मामले की सुनवाई की तारीख 14 अगस्त तय की.
किशोर की तरफ से वकील अनूप भंबानी ने स्वामी की याचिका का विरोध किया और उनकी याचिका का जवाब देने के लिए और वक्त की मांग की.केंद्र ने भी स्वामी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि किसी आपराधिक मामले में तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा लिए जाने वाले किसी भी निर्णय को पहले के मामलों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए.
बहरहाल पीठ ने कहा कि याचिका में उठाये गये मुद्दों की जांच की जरूरत है और याचिका स्वीकार कर ली गयी.स्वामी ने मांग की थी कि नाबालिग अपराधियों की उम्र सीमा 18 वर्ष पर विचार करने के बजाय मानसिक एवं बौद्धिक परिपक्वता पर गौर किया जाना चाहिए.
उच्चतम न्यायालय द्वारा उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए 23 जुलाई को तैयार होने के बाद जेजेबी ने 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले में किशोर की कथित संलिप्तता पर फैसला सुनाने की तारीख पांच अगस्त तक टाल दी थी.
अभियोजन के मुताबिक चलती बस में 23 वर्षीय लड़की से बलात्कार करने वाले छह लोगों में किशोर भी शामिल था. पीडि़ता की 29 दिसम्बर को सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गयी थी.
अपनी याचिका में स्वामी ने कहा है कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम (जेजेए)किशोर शब्द की सीधी व्याख्या करता है कि 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति नाबालिग है और यह इस मुद्दे पर यूनाईटेड नेशंस कन्वेंशन फॉर द राइट्स ऑफ द चाइल्ड (यूएनसीआरसी) और बीजिंग रुल्स का उल्लंघन है.
उन्होंने कहा कि यूएनसीआरसी और बीजिंग रुल्स कहता है कि अपराध के लिए उम्र तय करने का कार्य मानसिक एवं बौद्धिक परिपक्वता को ध्यान में रखते हुए किया जाये.
जेजेए के प्रावधानों के मुताबिक, किशोर या बच्चे का मतलब है कि उसने 18 वर्ष की उम्र पूरी नहीं की है. उन्होंने कहा, संसद का मंतव्य था कि जैसा कि आमुख में बताया गया है कि जेजेए को यूएनसीआरसी और बीजिंग रुल्स को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए, इसलिए आग्रह है कि अदालत जरुरत पड़े तो यूओआई (केंद्र सरकार) का पक्ष सुनने के बाद निर्दोष की उम्र पर अनुच्छेद दो (के) के तहत मानसिक एवं बौद्धिक परिपक्वता पर गौर करे.
स्वामी ने 16 दिसंबर के मामले में किशोर की कथित भूमिका का भी जिक्र किया है.
उनका तर्क है कि किशोर शब्द की वर्तमान व्याख्या पीडि़ता के जीवन के मूलभूत अधिकार को खारिज करती है.