धगमंडलम : आजादी के 66 वर्ष बाद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वदेशी भावना को जिंदा रखते हुए यहां नीलगिरि जिले के तीन गांवों में रहने वाले ग्रामीण सिर्फ खादी वस्त्र ही पहनते हैं.उधगमंडलम से 15 किलोमीटर दूर बसे बेहद मनोरम गांव मिनलई में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी लोग दूसरे कपड़ों को छोड़कर […]
धगमंडलम : आजादी के 66 वर्ष बाद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वदेशी भावना को जिंदा रखते हुए यहां नीलगिरि जिले के तीन गांवों में रहने वाले ग्रामीण सिर्फ खादी वस्त्र ही पहनते हैं.उधगमंडलम से 15 किलोमीटर दूर बसे बेहद मनोरम गांव मिनलई में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी लोग दूसरे कपड़ों को छोड़कर आज भी सिर्फ खादी के बने कपड़े ही पहनते हैं. यहां के दो अन्य गांव मदाथुरई और कुंडाकपरई की भी स्थिति ऐसी ही है.
स्वतंत्रता आंदोलन के तहत चलाए स्वदेशी आंदोलन के दौरान वर्ष 1905 में इन राष्ट्रवादियों ने अंग्रेजों के बनाए उत्पादों का बहिष्कार करते हुए केवल घरेलू उत्पादों का उपयोग करने का निर्णय लिया था.इस आंदोलन में शामिल इन ग्रामीणों ने उसके बाद कभी किसी दूसरे कपड़े का उपयोग नहीं किया. गांव की पिछली तीन पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है.स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव के केवल मुट्ठी भर लोग ही, जो दूसरे शहरों में काम करने के लिए जाते हैं, इस दौरान दूसरे कपड़ों से बने परिधान पहनते हैं, हालांकि गांव में वे भी सिर्फ खादी ही पहनते हैं.
मिनलई गांव के मुखिया 80 वर्षीय विश्वनाथन ने कहा, भारतीय नेताओं, विशेषकर महात्मा गांधी के आह्वान पर ग्रामीणों ने यह प्रतिबद्धता जताई थी.वह बेहद गर्व के साथ कहते हैं कि वह खुद भी बीते 60 वर्षों से खादी वस्त्र ही पहन रहे हैं.इन तीन गांव में कुल 500 घर हैं, जिनमें करीब 4,500 लोग रहते हैं. स्वदेशी भावना को जीवंत बनाए रखने के प्रति इन ग्रामीणों की प्रतिबद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां के घरों में पर्दे तक खादी के लगे हुए हैं.