नयी दिल्ली : उत्तराखंड में बारिश और बादल फटने की घटना के बाद आयी प्राकृतिक आपदा में सैकड़ों लोगों की मौत और जानमाल के भारी नुकसान के बाद पर्वतीय राज्यों में डाप्लर रडार समेत अत्याधुनिक भविष्यवाणी प्रणाली स्थापित करने की मांग उठ रही है.
बादल फटने, तूफान, चक्रवात और बारिश जैसी आपदाओं के बारे में सटीक भविष्यवाणी के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में 14 डाप्लर रडार लगाये गए लेकिन उत्तराखंड में अभी तक एक भी डाप्लर रडार स्थापित नहीं किया गया है.
कई वर्गो की ओर से ऐसे आरोप लग रहे हैं कि जब बादल फटने और अन्य तरह की प्राकृतिक घटनाओं का प्रभाव उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में ज्यादा देखने को मिलता है तब प्रथम चरण के तहत यहां डाप्लर रडार क्यों नहीं लगाये गये जबकि मैदानी क्षेत्रों को तरजीह दी गयी.
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी अपनी रिपोर्ट में आपदाओं के बारे में सटीक भविष्यवाणी से जुड़ी परियोजनाओं के लंबित होने को रेखांकित किया है.
मौसम विभाग के महानिदेशक एल एस राठौर ने कहा कि मौसम के बारे में चेतावनी देना और डाप्लर रडार स्थापित करना अलग- अलग विषय है. उत्तराखंड में 14, 15 और 16 जून को देहरादून केंद्र ने चेतावनी जारी कर दी थी और तेज बारिश की संभावना के बारे में आगाह किया था.
उन्होंने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना में राज्य में डाप्लर रडार लगाने की योजना पर काम हो रहा है. जाने माने वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा कि लाला रुचि राम साहनी ने करीब 100 वर्ष पहले बंगाल की खाड़ी से जुड़े मौसम के प्रभावों के बारे में भविष्यवाणी की थी और तब बड़ी संख्या में लोगों की जान बची थी. मौसम की भविष्यवाणी के बारे में हमारे तंत्र को और आधुनिक स्वरुप दिये जाने की जरुरत है.
प्रथम चरण के तहत अभी तक देश के 14 स्थानों पर डाप्लर रडार स्थापित किये गए हैं जिनमें अगरतला, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनउ, मछलीपट्टनम, मोहनबाड़ी, मुंबई, नागपुर, पटना, पटियाला और विशाखपट्टनम शामिल है. उत्तराखंड में डाप्लर रडार स्थापित करने का प्रस्ताव लंबित है.
मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक अजीत त्यागी ने कहा कि बादल फटने एवं अन्य आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी के लिए हिमालयी क्षेत्रों में डाप्लर रडार स्थापित करने की योजना बनाई गई है. लेकिन डाप्लर रडार एक दिन में स्थापित नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि ऐसी प्राकृतिक घटनाएं सिक्किम, जम्मू कश्मीर सहित सभी पर्वतीय प्रदेशों में देखने को मिलती है. 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत सभी पर्वतीय प्रदेशों में रडार स्थापित किया जाना है.
वहीं, कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि आपदाओं से निपटने की तैयारी के लिए उपग्रह से चित्र लेने से जुड़ी नेशनल डाटाबेस फार इमजेंसी मैनजमेंट परियोजना 2006 में शुरु की गयी थी जो अभी तक पूरी नहीं हुई है. बाढ़ की संभावना वाले क्षेत्र का मानचित्र तैयार करने से जुड़ी एयरबोर्न लेजर टिरेन मैपिंग एंड डिजिटल कैमरा सिस्टम परियोजना 2003 में शुरु की गयी थी और वह भी अभी पूरी नहीं हो सकी है.
बाढ़ की चेतावनी और इससे जुड़े आंकड़े जुटाने से संबंधित सिंथेटिक एपरचर रडार परियोजना 2003 में शुरु हुई और अभी तक पूरी नहीं की जा सकी. सेटेलाइट आधारित संचार नेटवर्क परियोजना 2003 में शुरु की गई और अभी पूरी नहीं हुई है. डाप्लर मौसम रडार परियोजना 2006 में शुरु हुई है और अभी भी जारी है.