अहमदाबाद : गुजरात उच्च न्यायालय ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोप पत्र दायर करने में देरी के लिए आज सीबीआई की खिंचाई की. अदालत ने उससे कहा कि वह खुफिया सूचना और मारे गए लोग आतंकवादी थे या नहीं इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय मुठभेड़ की वास्तविकता का पता लगाए. न्यायमूर्ति जयंत पटेल और न्यायमूर्ति अभिलाषा कुमारी की पीठ ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया हम पाते हैं कि मुठभेड़ की वास्तविकता का पता लगाने की बजाय सीबीआई ने खुफिया ब्यूरो द्वारा प्रदान की गई सूचनाओं की वास्तविकता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया.’’
अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि विगत एक महीने में आपकी दिलचस्पी इस बात का पता लगाने में थी कि मारे गए लोग आतंकवादी थे या नहीं. लेकिन यह अदालत इस बात को लेकर चिंतित नहीं है कि वे आतंकवादी थे या सामान्य आदमी. लेकिन किसी भी हालत में उन्हें खत्म नहीं किया जाना चाहिए था.’’ अदालत ने कहा, ‘‘आपको इस बात का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे वास्तविक मुठभेड़ में मारे गए थे या फर्जी मुठभेड़ में और क्या वे गुजरात पुलिस की हिरासत में पहले से थे या नहीं.’’
अदालत ने सीबीआई से इस बात का स्पष्टीकरण देने को कहा कि वह क्यों आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिन के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रही. सीबीआई ने कहा कि यह बेहद गहरी साजिश का मामला है और जांच हमें एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले गई जिसके कारण विलंब हुआ. आरोप पत्र दायर करने में विलंब की वजह से आईपीएस अधिकारी जी एल सिंघल समेत पांच आरोपी पुलिस अधिकारियों को जमानत मिल गई है.