नयी दिल्लीः उच्चतम न्यायालय के वकीलों ने गुरुवार को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा से अनुरोध किया कि वकीलों के साथ बात करते समय वह थोड़ा संयम बरतें. न्यायमूर्ति मिश्रा ने मंगलवार को भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता को अवमानना कार्यवाही की धमकी दी थी. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और […]
नयी दिल्लीः उच्चतम न्यायालय के वकीलों ने गुरुवार को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा से अनुरोध किया कि वकीलों के साथ बात करते समय वह थोड़ा संयम बरतें. न्यायमूर्ति मिश्रा ने मंगलवार को भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में दलीलें पेश कर रहे एक वरिष्ठ अधिवक्ता को अवमानना कार्यवाही की धमकी दी थी.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ताओं- कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, अभिषेक मनु सिंघवी और उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश कुमार खन्ना ने इस मुद्दे का उल्लेख किया. इन अधिवक्ताओं द्वारा इस मामले का उल्लेख किए जाने पर न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि वह किसी भी अन्य न्यायाधीश के मुकाबले बार का ज्यादा सम्मान करते हैं और यदि कोई पीड़ित महसूस कर रहा है तो वह इसके लिए क्षमा चाहते हैं.
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, यदि किसी भी अवसर पर किसी को भी असुविधा महसूस हुई है तो मैं हाथ जोड़कर इसके लिए क्षमा मांगता हूं. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन अपनी दलीलें पेश कर रहे थे. इसी दौरान न्यायमूर्ति मिश्रा ने उन्हें अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी थी.
उनके द्वारा इस तरह की धमकी दिए जाने के बाद गोपाल शंकर नारायणन उनकी अदालत से बाहर चले गए थे. सिब्बल ने न्यायमूर्ति मिश्रा से कहा कि बार और बेंच दोनों का ही यह कर्तव्य है कि वे न्यायालय की गरिमा बनाए रखें और दोनों को परस्पर एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए. सिंघवी ने कहा कि न्यायालय में परस्पर सद्भाव का माहौल बनाए रखना चाहिए और बार तथा बेंच को परस्पर सम्मान करना चाहिए.
न्यायमूर्ति शाह ने अधिवक्ताओं से कहा कि सम्मान परस्पर होना चाहिए और जब मंगलवार को पीठ ने शंकर नारायणन को बहस जारी रखने के लिए कहा तो उन्होंने एकदम से इंकार कर दिया. रोहतगी ने कहा कि युवा वकील इस न्यायालय में आने से भयभीत हो रहे हैं और यह बार के युवा सदस्यों को प्रभावित कर रहा है.
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, मैं बार से अधिक जुड़ा हुआ हूं. मैं यही कहना चाहूंगा कि बार तो बेंच की मां है. मैं किसी भी अन्य चीज की तरह ही बार का सम्मान करता हूं. मैं अपने दिल से यह कह रहा हूं और कृपया इस तरह की कोई धारणा अपने दिमाग में मत रखिए. उन्होंने कहा कि उन्हें किसी के प्रति भी कोई शिकायत नहीं है और उन्होंने न्यायाधीश के रूप में अपने करीब 20 साल के कार्यकाल के दौरान किसी भी वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही नहीं है.
न्यायाधीश ने कहा कि अक्खड़पन इस महान संस्था को नष्ट कर रहा है और बार का यह कर्तव्य है कि वह इसकी रक्षा करे. न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि आजकल न्यायालय को उचित ढंग से संबोधित नहीं किया जाता. यहां तक कि उस पर हमला बोला जाता है. यह सही नहीं है और इससे बचने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मामले में बहस के दौरान वकील को किसी के भी बारे में व्यक्तिगत टिप्पणियां करने से बचना चाहिए.
खन्ना ने पीठ से कहा कि न्यायपालिका और बार की स्वतंत्रता बहुत ही जरूरी है और इसलिए बार तथा बेंच के बीच सद्भावपूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी है. न्यायमूर्ति मिश्रा ने एकदम अंत में एससीबीए के अध्यक्ष से कहा कि वह नारायणन को उनसे मिलने के लिए कहें. उन्होंने कहा कि वह बहुत बुद्धिमान और प्रतिभाशाली वकील हैं तथा वह उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं.