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NITI आयोग की चेतावनी : खतरे में खाद्य सुरक्षा, जल्द करने होंगे उपाय

मिथिलेश झा रांची : भारत में खाद्य सुरक्षा खतरे में है. खाद्यान्न उत्पादन में अभी कमी नहीं आयी है, लेकिन लगातार दो साल से खरीफ के सीजन में बुवाई का रकबा घट रहा है. अभी से जल संरक्षण के प्रभावी उपाय नहीं किये गये, तो आने वाले दिनों में लोगों को खाने के लाले पड़ […]

मिथिलेश झा

रांची : भारत में खाद्य सुरक्षा खतरे में है. खाद्यान्न उत्पादन में अभी कमी नहीं आयी है, लेकिन लगातार दो साल से खरीफ के सीजन में बुवाई का रकबा घट रहा है. अभी से जल संरक्षण के प्रभावी उपाय नहीं किये गये, तो आने वाले दिनों में लोगों को खाने के लाले पड़ जायेंगे. नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (NITI) की कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (Composite Water Management Index) शीर्षक से जारी रिपोर्ट में यह बात कही गयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों ने जल संरक्षण की दिशा में बेहतरीन काम किये हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. आयोग ने सचेत करते हुए कहा है कि देश के अलग-अलग राज्यों में बार-बार पड़ने वाले सूखे और जल प्रबंधन के अभाव में यह संकट और गहरा सकता है. रिपोर्ट में संकट से बचने के उपाय भी सुझाये हैं.

इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि खाद्य सुरक्षा के संकट से देश को बचाने के लिए बिना देरी किये कुछ प्रभावी कदम उठाने होंगे. इसमें जल संरक्षण को सबसे अहम कदम बताया गया है. आयोग ने नौ उपायों पर जल्द से जल्द काम करने की सलाह दी है. इसमें पहला कदम है जलस्रोतों का संरक्षण और उनका पुनर्स्थापन. कहा गया है कि भूमिगत जलस्रोतों को बढ़ाने पर जोर दिया जाये. इसके अलावा सिंचाई की बड़ी और मध्यम परियोजनाओं, जलछाजन, सहभागी सिंचाई पद्धतियों, खेती के लिए पानी के इस्तेमाल, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति, शहरी पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता के साथ-साथ नीति और शासन पर जोर देना होगा.

नीति आयोग ने कहा है कि कुछ राज्यों ने जल प्रबंधन और जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम किये हैं. उन राज्यों में इसका असर भी दिखने लगा है. फिर भी जल संकट से निबटने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, क्योंकि अधिकतर राज्य अपने लक्ष्य से 50 फीसदी से भी ज्यादा पीछे हैं. 70 फीसदी राज्य ऐसे हैं, जहां 50 फीसदी से भी कम खेतों तक पानी पहुंच पाया है. ये वो राज्य हैं, जो देश की जरूरत का 80 फीसदी खाद्यान्न उत्पादन करते हैं. और इन्हीं राज्यों की वजह से देश में गंभीर जल संकट और इसकी वजह से खाद्य संकट उत्पन्न होने का खतरा मंडरा रहा है. यह भी कहा गया है कि देश के 54 फीसदी कुआं का जलस्तर तेजी से गिर रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 53 फीसदी कृषि पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है. मॉनसून की बेरुखी की वजह से देश में बार-बार पड़ रहे सूखे से किसानों की चिंता पहले से ही बढ़ी हुई है. देश में जो पानी उपलब्ध है, उसकी गुणवत्ता बेहद खराब है. पानी 70 फीसदी तक प्रदूषित हो चुका है. इस प्रदूषित पानी की वजह से हर साल देश में दो लाख लोगों की मौत हो रही है. नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि भारत के 60 करोड़ से ज्यादा लोग पेयजल के घोर संकट से जूझ रहे हैं. 75 फीसदी घरों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिल पाया है. 84 फीसदी ग्रामीण आबादी को पाइपलाइन से पेयजल की आपूर्ति शुरू नहीं हो पायी है.

खत्म हो रहे जलस्रोत, बढ़ रही है पानी की मांग

प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता तेजी से बढ़ रही है, जबकि जलस्रोत खत्म हो रहे हैं. वर्ष 2008 में प्रति व्यक्ति 634 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत थी. नरसिम्हन आयोग के मुताबिक, उस समय प्रति व्यक्ति 650 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध था, जबकि योजना आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1,123 बिलियन क्यूबिक मीटर उपलब्ध था. अनुमान है कि वर्ष 2030 में प्रति व्यक्ति 744 बिलियन क्यूबिक मीटर जल उपलब्ध होगा, जबकि जरूरत इससे बहुत ज्यादा 1,498 बिलियन क्यूबिक मीटर (101 फीसदी अधिक) पानी की होगी.

उत्तर के बड़े राज्यों में नहीं हो रहे गंभीर प्रयास

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, गंभीर जल संकट से जूझ चुके पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों (गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना) ने जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किये हैं. यह दर्शाता है कि जहां संकट है, वहां समाधान के सकारात्मक प्रयास हुए हैं. लेकिन, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा जैसे उत्तर के बड़े राज्यों ने इस दिशा में गंभीर प्रयास अब भी शुरू नहीं किये हैं, जो चिंता का विषय है. ये वे राज्य हैं, जो देश के कुल कृषि उत्पादन में 20-30 फीसदी का योगदान देते हैं. यदि इन राज्यों ने जल प्रबंधन पर जोर नहीं दिया, तो देश की तीव्र विकास दर की रफ्तार को ब्रेक लग सकता है.

इन समस्याओं से निबटने में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पानी पर कोई प्रामाणिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. देश में पानी के आंकड़े जुटाने के लिए जो व्यवस्था बनायी गयी है, वह बेहद सीमित है. इसलिए इसकी उपयोगिता नहीं के बराबर है. नीति आयोग भी मानता है कि संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में पानी की स्थिति पर कोई विस्तृत अध्ययन या आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. यहां तक कि यह भी नहीं मालूम है कि घरेलू और उद्योगों के लिए पानी की उपलब्धता क्या है या कहां, कितने पानी का इस्तेमाल होता है. एक मोटामोटी आंकड़ा दे दिया गया है, जिसकी वजह से नीतियां बनाने में दिक्कत हो रही है.

इतना ही नहीं, जो आंकड़े उपलब्ध हैं, वह प्रामाणिक नहीं हैं, क्योंकि ये पुरानी पद्धतियों से जुटाये गये हैं. नीति आयोग ने साफ-साफ कहा है कि देश में 1.20 करोड़ कुआं हैं, जबकि भू-जल स्तर पर रिपोर्ट तैयार करते समय सिर्फ 55,000 कुआं के आंकड़े लिये जाते हैं. नीति आयोग का कहना है कि पानी के आंकड़े आपस में शेयर नहीं किये जाते. यानी राज्य केंद्र के साथ इसे शेयर नहीं करता, एक राज्य दूसरे राज्य को इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं कराते. इसलिए इसका सही इस्तेमाल नहीं हो पाता. इसका एक और दुष्परिणाम यह होता है कि पानी के अधिकतम इस्तेमाल से संबंधित नीतियां नहीं बन पातीं. इस दिशा में पर्याप्त शोध और नवोन्मेष भी नहीं हो पाते.

86 जलाशयों में मात्र 44 फीसदी पानी

कृषि, कृषक कल्याण ए‌वं सहकारिता विभाग की हालिया रिपोर्ट में सिंचाई के काम आने वाले जलाशयों का जलस्तर चिंताजनक तस्वीर पेश करता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 86 ऐसे जलाशय हैं, जिनसे सिंचाई होती है. इनकी कुल जलभरण क्षमता 122.512 बिलियन क्यूबिक मीटर है. जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 8 अगस्त, 2019 को इन जलाशयों में महज 54.002 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) पानी था. यह जलाशयों की कुल क्षमता का 44 फीसदी है. यह पिछले 10 साल के औसत फुल रिजरवॉयर लेवल (FRL) 48 फीसदी से भी चार फीसदी कम है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 10 साल के दौरान इन 86 जलाशयों का औसत जलस्तर 59.176 बिलियन क्यूबिक मीटर था. वर्ष 2018 में 8 अगस्त को इन जलाशयों का जलस्तर 54.313 बिलियन क्यूबिक मीटर था, जो इस वर्ष के जलस्तर से थोड़ा ज्यादा था. इसी तरह धीरे-धीरे जलस्तर कम होता गया, तो खेतों तक पानी पहुंचना मुश्किल हो जायेगा. इसका सीधा असर खेती पर होगा. खाद्यान्न के उत्पादन पर पड़ेगा.

खरीफ की बुवाई

खरीफ की बुवाई में पिछले दो साल में कमी दर्ज की गयी है. हालांकि, इसके पहले कुछ वर्षों तक इसमें लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही थी. वर्ष 2014-15 में 2881.5 लाख हेक्टेयर में खरीफ की बुवाई हुई थी, जबकि वर्ष 2015-16 में 3048.4, वर्ष 2016-17 में 3140.1, वर्ष 2017-18 में 3168.2 और वर्ष 2018-19 में 3041.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हुई. वर्ष 2019-20 में अब तक महज 2652 लाख हेक्टेयर में खरीफ की बुवाई हुई है, जो वर्ष 2014-15 से भी कम है. हालांकि, मॉनसून का सीजन अभी कुछ दिन बाकी है, लेकिन लगातार दो साल से बुवाई में कमी इस बात का संकेत है कि खाद्य सुरक्षा खतरे में है.

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