मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मुम्बई पुलिस को भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को एक नवंबर तक गिरफ्तार करने से रोक दिया. न्यायमूर्ति रणजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने नवलखा की अर्जी पर सुनवाई एक नवंबर तक स्थगित कर दी और उन्हें गिरफ्तारी से मिला अंतरिम संरक्षण तबतक के लिए बढ़ा दिया.
नवलखा ने वकील युग चौधरी के माध्यम से याचिका दायर कर पुणे पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गयी प्राथमिकी खारिज करने की मांग की है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने इसी मामले में सह-आरोपी प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. उन्हें अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. तेलतुंबडे निचली अदालत से अपनी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद शुक्रवार दोपहर उच्च न्यायालय पहुंचे. उच्च न्यायालय ने कहा कि वह एक नवंबर को उनकी अर्जी पर सुनवाई करेगा. सरकारी वकील अरुणा पाई ने नवलखा और तेलतुंबडे की अर्जियों का विरोध किया. उन्होंने कहा कि पुलिस के पास इन दोनों और अन्य आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं.
दूसरी तरफ, वकील चौधरी ने कहा कि नवलखा और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप बेबुनियाद हैं तथा वे दशकों से जनहित में काम कर रहे प्रोफेसर और बुद्धिजीवी हैं. इस मामले के अन्य आरोपी अरुण फरेरा भी अपनी नजरबंदी बढ़ाने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय पहुंचे. उनकी नजरबंदी शुक्रवार को खत्म हुई. लेकिन, खंठपीठ ने उनकी नजरबंदी नहीं बढ़ायी और कहा कि वह एक नवंबर को उनकी बातें सुनेगी. नवलखा, वरवरा राव, फरेरा, वर्नोन गोंजालविस और सुधा भारद्वाज को एक जनवरी को पुणे जिले के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के बाद माओवादियों के साथ संबंध रखने के आरोप में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने आरोप लगाया कि माओवादियों ने पुणे में एल्गार परिषद सम्मेलन में सहायता की थी जिसके बाद हिंसा फैली. नवलखा को दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिहा कर दिया था. उसके बाद वह अपने विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी खारिज करने की मांग करते हुए बंबई उच्च न्यायालय गये.