नयी दिल्ली : केंद्र सरकार के 500 और 1000 रुपये के नोट का चलन बंद करने के फैसले की वैधता पर निर्णय करनेवाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ही प्रतिबंधित मुद्रा को जमा कराने के लिए दायर याचिकाओं पर विचार करेगी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इसके साथ ही चलन से बाहर हो चुके नोटों को जमानत कराने के लिए दायर 14 याचिकाओं का निबटारा कर दिया. इन याचिकाओं में दलील दी गयी थी कि वे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अवधि में अपरिहार्य कारणों से ये नोट जमा नहीं कर सके थे.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे संविधान पीठ द्वारा सुनी जानेवाली लंबित याचिका में ही अर्जी दायर करें. पीठ ने कहा, हम समझते हैं कि यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता संविधान पीठ के समक्ष लंबित याचिका में आवेदन दायर करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने अध्यादेश या नोटबंदी के निर्णय की वैधता के गुण दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है जिस पर वृहद पीठ विचार करेगी.
केंद्र की ओर से अटाॅर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चलन से बाहर हो चुके नोट जमा कराने के लिए न्यायालय आनेवाले व्यक्तियों के खिलाफ याचिकाओं में उल्लेखित राशि के संबंध में कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जायेगी. कुछ याचिकाकर्ताओं का दावा था कि उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक कानून के प्रावधानों या केंद्र की अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती नहीं दी है, परंतु वे चलन से बाहर किये गये नोट जमा कराना चाहते हैं. एक याचिकाकर्ता के वकील प्रणव सचदेव ने कहा, कानूनी प्रक्रिया का पालन किये बगैर या निष्पक्ष अवसर दिये बगैर ही हमारी मेहनत की कमाई जब्त कर ली गयी है. उन्होंने कहा कि संविधान पीठ का गठन यथाशीघ्र होना चाहिए.
पीठ सुधा मिश्रा सहित कई व्यक्तियों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. सुधा मिश्रा ने याचिका में प्राधिकारियों को उनके नोट जमा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है क्योंकि वह केंद्र और रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अवधि के भीतर ये नोट जमा नहीं कर सकी थी. केंद्र पहले ही एक हलफनामे में स्पष्ट कर चुका है कि वह अब पुराने नोटों को बंद करने का कोई नया अवसर नहीं देने जा रहा है.