नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर या किन्नरों को महिलाओं और पुरुषों के साथ लिंग के तीसरे वर्ग के रुप में मान्यता दी तथा केंद्र एवं राज्यों से उन्हें मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट और गाडी चलाने के लिए लाइसेंस समेत सभी सुविधाएं मुहैया कराने के निर्देश दिए.
न्यायालय ने केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिए कि वे पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं रोजगार के अवसर प्रदान कर इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाएं. न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की पीठ ने सरकार को निर्देश दिए कि वह पुरष एवं महिला के बाद ट्रांसजेंडर को लिंग के एक अलग तीसरे वर्ग के रुप में मान्यता देने के लिए कदम उठाए.
पीठ ने साथ ही कहा कि किन्नर देश के नागरिक हैं और पुरुषों एवं महिलाओं की तरह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं रोजगार के अवसरों पर उनका भी समान अधिकार है. उच्चतम न्यायालय ने समाज में किन्नरों के साथ होते भेदभाव एवं उनके उत्पीडन पर चिंता व्यक्त की और उनके कल्याण के लिए कई निर्देश दिए.
न्यायालय ने कहा कि पहले समाज में किन्नरों का सम्मान किया जाता था लेकिन अब स्थिति बदल गई है और अब उन्हें भेदभाव एवं उत्पीडन का सामना करना पडता है. उसने कहा कि पुलिस एवं अन्य प्राधिकारी वर्ग भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का उनके खिलाफ दुरपयोग कर रहे हैं तथा उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि वे समाज का मुख्य हिस्सा हैं और सरकार को उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाने चाहिएं. उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश सुनाया है. एनएएलएसए ने अदालत से अपील की थी कि ट्रांसजेंडर को लिंग के तीसरे वर्ग के रुप में मान्यता देकर उन्हें अलग पहचान दी जाए.
किन्नर अधिकार कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उच्चतम न्यायालय ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, देश की प्रगति लोगों के मानवाधिकार पर निर्भर करती है और हम इस फैसले से खुश हैं क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने हमें वे अधिकार दिए हैं.