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टीनएज में हकलाहट कोशिश ही इलाज

बोलते वक्त हकलाने की शुरुआत अकसर दो से चार वर्ष की उम्र में होती है, जो आमतौर पर सात या आठ साल की उम्र तक बनी रहती है. सही प्रयास से बहुत से लोग बचपन में ही हकलाने की समस्या से निजात भी पा लेते हैं. फिर भी, यदि आप में यह समस्या किशोरावस्था तक […]

बोलते वक्त हकलाने की शुरुआत अकसर दो से चार वर्ष की उम्र में होती है, जो आमतौर पर सात या आठ साल की उम्र तक बनी रहती है. सही प्रयास से बहुत से लोग बचपन में ही हकलाने की समस्या से निजात भी पा लेते हैं. फिर भी, यदि आप में यह समस्या किशोरावस्था तक बरकरार है और आप बोलते हुए अकसर अटकते हैं, पर इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, तो मान कर चलिये कि यह समस्या युवावस्था में भी आपके साथ बनी रहेगी. अगर आप टीनएज में इसके प्रति सजग हो जाते हैं, तो संभव है कि आप जल्द ही इससे निजात पा लेंगे..

बच्चे जब हकला कर बात करते हैं तो उनकी हकलाहट पर लोग अकसर स्नेह से मुस्कुरा देते हैं. लेकिन, अगर बचपन की यह हकलाहट किशोरावस्था में भी साथ बनी रहे, तो मुस्कुराहट की बजाय चिंता का कारण बन जाती है. बोलते वक्त हकलाने के कई कारण हो सकते हैं. ऐसा भी होता है कि कई बार कुछ बोलते हुए आप हकलाते हैं, तो कई बार नहीं भी हकलाते. लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप यह मान कर बैठ जायें कि यह समस्या आपमें है ही नहीं, और अगर है भी तो खुद ब खुद ठीक हो जायेगी.

बहुत से लोग 2 से 4 वर्ष की उम्र में हकलाना शुरू करते हैं. अगर टीनएज तक उनका हकलाना बंद नहीं होता, तो हो सकता है कि वे युवावस्था तक हकलाते रहें. इस समस्या से ग्रस्त नौंवी कक्षा में पढ़नेवाले एक किशोर से पूछा गया कि जब वह कॉलेज जायेगा, तो अपनी हकलाने की आदत को कैसे संभालेगा. इस पर उसका जवाब था, ‘मैं जब कॉलेज जाऊंगा, तो नहीं हकलाऊंगा.’ इस तरह किशोरावस्था तक लोग हकलाने की आदत को अनदेखा करते रहते हैं और उन्हें उम्मीद होती है कि कभी न कभी यह अपने आप ठीक हो जायेगी. बेशक कई लोग कम उम्र में ठीक भी हो जाते हैं. बहुत लोगों के साथ ऐसा नहीं भी होता.

अच्छी बात यह है कि इस समस्या से उबरने के लिए कई उपाय मौजूद हैं, जिनसे हकलाने की प्रवृत्ति को कम किया जा सकता है. लेकिन इस समस्या के होने पर भी इसे अस्वीकार करते रहने से या कभी न कभी अपने आप ही ठीक हो जाने की उम्मीद पाले रखने से समस्या में इजाफा ही होता रहेगा.

– कहीं आप हकलाहट के साथ तो आगे नहीं बढ़ रहे हैं? अधिकतर टीनएजर्स, जो हकलाने की समस्या से ग्रस्त होते हैं, उन्हें यह उम्मीद और भरोसा होता है कि एक न एक दिन उनका हकलाना अपने आप ही बंद हो जायेगा. बहुत से यह मानते ही नहीं हैं कि हकलाना एक गंभीर समस्या है और कई तो यह स्वीकारने से भी हिचकिचाते हैं कि वे हकलाते हैं. अपने आप ही एक न एक दिन ठीक हो जाने की उम्मीद और समस्या को अस्वीकार करना दोनों ही स्थितियां सही नहीं कही जा सकतीं. समस्या को पहचनानना और स्वीकार करना उसे बदतर बनाने से रोकने का पहला कदम है. अपने आप का आकलन करें.

– कहीं आपको ऐसा तो नहीं लगता-

– मैं अकेला हूं : ऐसे किशोर जो अकेलेपन से जूझ रहे होते हैं और अपने को औरों से अलग-थलग महसूस करतें, वे कई बार हकलाहट की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं. ऐसा भी होता है कि हकलाहट से ग्रस्त अधिकतर किशोर अपने आपको अकेला तथा औरों से अलग महसूस करने लगते हैं. इस बात को समझें कि आप दुनिया के ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं, जो इस समस्या से जूझ रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 6.7 करोड़ लोग हकलाते हैं. इसलिए इसे छिपाएं नहीं, आत्मविश्वास के साथ इससे उबरने की कोशिश करें.

– मैं हकलाता हूं, क्योंकि मैं कमजोर दिल का हूं: व्यग्रता हमेशा हकलाहट का कारण नहीं बनती, लेकिन कई बार व्यग्रता के चलते भी लोग हकलाने लगते हैं. अकसर ऐसा तब होता है जब आप तनाव भरी अवस्था में फोन पर बात कर रहे होते हैं या भीड़ के सामने बोल रहे होते हैं. लेकिन अपने अंदर के डर को जीत कर आप हकलाहट की समस्या पर नियंत्रण पा सकते हैं.

– हकलाहट मेरी गलती है : संभवत: हकलाहट का सही कारण न पता चल पाये, लेकिन यह सच सब जानते हैं कि हकलाना आपकी गलती नहीं और ना ही यह आपके माता-पिता की गलती है. यह जैविक और तंत्रिका से संबंधित समस्या है. इसके लिए कभी भी खुद को या अपने परिवार को जिम्मेदार न ठहराएं.

– मैं अभी ठीक से कोशिश नहीं कर रहा हूं : हकलाहट बोलने की समस्या से जुड़ी है और इसे बोलने के अभ्यास से ही दूर किया जा सकता है. कुछ दिनों तक हो सकता है कि आपको लगे कि शायद आप बोलने का अभ्यास ठीक से नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए हकलाहट कम नहीं हो रही है लेकिन जोर जोर से बोलकर शब्दों का बार बार उच्चारण कर कोशिश करते रहें. यह क्रांति है एक तरह की, जिससे हकलाहट पर नियंत्रण पाया जा सकता है.

– मेरे लिए अनिवार्य है बिना हकलाये बात करना : कुछ किशोर जो हकलाते हैं, वे सोचने लगते हैं कि माता-पिता, दोस्तों यहां तक कि अपरिचितों से भी उन्हें बिना हकलाये बात करना चाहिए. वे मानने लगते हैं कि उनकी हकलाहट दूसरों के लिए बोझ बन रही है. लेकिन इस तरह के सोच को खुद पर हावी न होने दें. आपको समझना होगा कि जब हम बास्केट बॉल खेलते हैं तो जरूरी नहीं हर बार बाल बॉस्केट में जाये ही. लेकिन हम खेलना बंद नहीं कर देते. अभ्यास से ही फल मिलता है.

– मुझे अपनी हकलाहट को छुपाना होगा : कभी आपके साथ ऐसा हुआ कि आपने क्लास में कुछ कहने के लिए हाथ उठाया या किसी फूड कॉर्नर में कुछ ऑर्डर देने पहुंचे, लेकिन जो आप कहना चाहते थे, उसे नहीं कह पाये. अगर आप ऐसा करते हैं तो इसका अर्थ है कि आप एक असाधारण समस्या को बहुत ही साधारण तरीके से सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं.

– हकलाहट की समस्या से उबरने के लिए इन उपायों को खासतौर पर आजमाएं-

– स्पीच थैरेपी से हकलाहट में काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है. मेडिकल साइंस हकलाहट का क्योर तो नहीं खोज पाया है, लेकिन स्पीच थैरेपी एक बेहतर विकल्प के रूप में अपनायी जाती है. आप एक योग्य स्पीच थैरेपिस्ट के संपर्क में रह कर उसके सामने स्पीच तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं. अपनी गलतियों को जान कर उसमें सुधार कर सकते है.

स्पीच थैरेपिस्ट आपको धाराप्रवाह बोलना सिखा देंगे, इस बात का दावा नहीं किया जा सकता, लेकिन इन्हें आजमाने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि यह मेडिकल साइंस में मान्य है.

– कोई सपोर्ट ग्रुप या स्वयं सहायता समूह ज्वाइन करें, जहां आपको अपनी तरह के अन्य लोगों के साथ अभ्यास करने का मौका मिलेगा. साथ ही इस कॉम्पलेक्स से निकलने में मदद मिलेगी कि दुनिया में आप अकेले ऐसे हैं.

– सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक में इस समस्या से उबरने के लिए प्रयासरत लोगों के पेज हैं, आप भी उनसे जुड़ सकते हैं. स्वयं सहायता समूह ‘द इंडियन स्टेमरिंग एसोसिएशन’ (टीसा) की मदद ले सकते हैं.

टीसा हकलाने वाले व्यक्तियों को एक मंच प्रदान करता है. इसमें आकर आप हकलाहट के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने के साथ ही हकलाहट को नियंत्रित कर बेहतर संवाद के गुर सीख सकते हैं.

टीनएज में हकलाते थे ऋतिक

सिनेमाई परदे पर धड़ल्ले से संवाद अदायगी करनेवाले फिल्म अभिनेता ऋतिक रोशन को किशोरावस्था में हकलाहट की समस्या से जूझना पड़ा था. कुछ साल पहले एक टीवी शो में ऋतिक ने स्वयं यह खुलासा किया था और बताया था कि वे आज भी एक घंटे रोज स्पीच थेरेपी लेते हैं, जिससे कि वो दोबारा हकलाना ना शुरू कर दें. ऋतिक जब छह साल के थे तभी उन्हें एहसास हो गया कि वे हकलाते हैं. उनकी जिंदगी में कई बार शमिर्ंदगी भरे पल आये, जब वे किसी को अपनी बात नहीं समझा पाते थे. यहां तक कि वे यह भी नहीं बोल पाते थे कि वे एक्टर बनना चाहते हैं. हालांकि ऋतिक ने टीनएज में ही तय कर लिया था कि उन्हें अभिनय करना है.

ऋतिक ने इस कार्यक्रम में यह भी बताया था कि डॉक्टर ने उनसे कहा था कि तुम कभी एक्टर नहीं बन पाओगे. तुम कुछ और क्यों नहीं करते. लेकिन, वे कोशिश करते रहे. हकलाने की आदत दूर करने के लिए उन्होंने अपनी जुबान और जबड़े के बीच संतुलन साधना शुरू किया. इस तरह वह अपनी कमजोरी पर नियंत्रण पाने की कोशिश में लग गये. वह किसी अक्षर पर अटक न जाएं, इसके लिए अक्षरों को अलग-अलग तरीकों से पढ़ना शुरू किया. इस क्रम में उन्होंने इससे जुड़ी कुछ यादें भी साझा की थी-‘मुझे याद है एक बार, मैंने 36 घंटे तक एक वाक्य को साफ बोलने की प्रैक्टिस की, जिससे मैं अपने कुक को बिना अटके यह बता सकूं कि मुझे खाने में क्या चाहिए.’ ऋतिक को अपनी पहली फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ की रिलीज के बाद एक अवॉर्ड फंक्शन में भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

ऋतिक ने बताया कि ‘जब मुझे दुबई में हुए एक अवॉर्ड फंक्शन में बेस्ट डेब्यू का अवॉर्ड मिला, तो मैं अपनी स्पीच में आई लव यू दुबई कहना चाहता था. मगर मैं दुबई शब्द ठीक से नहीं बोल पा रहा था. मैं अपने होटल के कमरे में इसकी प्रैक्टिस करना चाहता था, लेकिन मुझे यह चिल्ला कर बोलना था इसलिए मैं इसे अपने कमरे में नहीं कर सकता था. होटल के उस कमरे में एक बड़ी अलमारी थी. मैंने खुद को उस अलमारी में बंद किया और वहां दुबई बोलने की प्रैक्टिस की. आखिरकार मैंने अवॉर्ड फंक्शन में यह वाक्य बिना अटके कह डाला.’ ऋतिक आज भी स्पीच थेरेपी लेते हैं, ताकि उनका आत्मविश्वास बना रहे. हाल ही में उन्होंने एक स्पीच थेरेपी इंस्टीट्यूट खोला है, ताकि उनके जैसे लोगों को मदद मिल सके.

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