मुंबई: 1978 में ‘मुकद्दर का सिकंदर’ के सुपरहिट हुई थी और वो लोगों के चहेते बन गये थे, लेकिन उनका मन इसी दौरान आध्यात्म में रमने लगा था. 1985 के आते-आते विनोद का झुकाव आध्यात्म की तरफ बढ़ता चला गया और आखिरकार इस साल उन्होंने फिल्मों को छोड़ने का फैसला कर लिया. इसी साल खन्ना ने आध्यात्मिक गुरु ओशो का दामन थामा और उनके शिष्य बन कर वह उनके साथ पुणे पहुंच गये.
उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं पता था कि वह लौट कर नहीं आनेवाले हैं. उन्हें लगा था कि वह बस कुछ दिनों के लिए ओशो के साथ जा रहे हैं, लेकिन फिर वह ओशो के साथ चार सालों तक रहे. पुणे के प्रसिद्ध ओशो आश्रम की नींव रखने में विनोद खन्ना का अहम भूमिका रही.
विनोद ने इस आश्रम में माली से लेकर प्लंबर, मैकेनिक और बिजली ठीक करने का भी काम किया. विनोद का कहना था कि मैंने हमेशा अपने दिल की सुनी और हर वक्त अपने अंदर झांकता रहा. जब विनोद ओशो के साथ आश्रम में रह रहे थे, उस वक्त उनके छोटे बेटे अक्षय पांच साल के थे और राहुल खन्ना आठ साल के थे. खन्ना ने माना था कि वह परिवार संग वक्त नहीं बिता पाये.
पंचतत्व में विलीन हुए विनोद
अभिनेता विनोद खन्ना का अंतिम संस्कार गुरुवार की शाम मुंबई में उनके परिवार के सदस्यों और फिल्म जगत के उनके दोस्तों की मौजूदगी में हुआ. मुखाग्नि छोटे बेटे साक्षी खन्ना ने दी. मौके पर अमिताभ बच्चन, उनके बेटे अभिषेक बच्चन, अक्षय कुमार, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर, गुलजार और डैनी डेंगजोंग्पा आदि शामिल हुए.
हर तरफ शोक की लहर
बेहद काबिल और प्रशंसित कलाकार और सांसद थे. उनका चले जाना दुखद है.
प्रणब मुखर्जी
मेरी सहानुभूति उनके परिवार के साथ हैं. यह दुखद है. उनकी आत्मा को शांति मिले.
शत्रुघ्न सिन्हा
भगवान उनकी आत्मा की शांति प्रदान करे.
अरुण जेटली