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फिल्म रिव्यू: गुंडे में रणबीर सिंह का संजीदा अभिनय

फिल्म : गुंडेकलाकार : रणवीर सिंह,अर्जुन कपूर, प्रियंका चोपड़ा , इरफान खाननिर्देशक : अली अब्बास जफररेटिंग : 2.5 स्टार ।।अनुप्रिया अनंत।। यशराज ने इन गुंडों को इस कदर महिमामंडित किया है, मानो वे गुंडों का काम नहीं, बल्कि देशभक्ति कर रहे सैनिक हो. पिछले काफी दिनों से फिल्म गुंडे को लेकर चर्चा थी. पहली बार […]

फिल्म : गुंडे
कलाकार : रणवीर सिंह,अर्जुन कपूर, प्रियंका चोपड़ा , इरफान खान
निर्देशक : अली अब्बास जफर
रेटिंग : 2.5 स्टार

।।अनुप्रिया अनंत।।

यशराज ने इन गुंडों को इस कदर महिमामंडित किया है, मानो वे गुंडों का काम नहीं, बल्कि देशभक्ति कर रहे सैनिक हो. पिछले काफी दिनों से फिल्म गुंडे को लेकर चर्चा थी. पहली बार इस फिल्म में रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर साथ नजर आ रहे हैं. दोनों की कलाकार यशराज की ही खोज हैं. रणवीर सिंह ने अपनी पिछली फिल्मों से अपनी जगह बना ली है. जबकि अर्जुन अभी भी प्रयासरत हैं. ऐसे में दोनों को एक साथ मंच पर प्रस्तुत कर एक तरह से यशराज ने अपनी खोजी प्रतिभाओं में ही प्रतियोगिता करवायी है. फिल्म वैलेंटाइन डे पर रिलीज हुई है. लेकिन ये दो दोस्तों की कहानी है. बॉलीवुड में ऐसी कई कहानियां पहले भी दर्शायी गयी है. दोनों हालात की वजह से गुंडे बन जाते हैं. लेकिन दोनों दिल से अच्छे हैं.
इन गुंडों ने कोलकाता में उत्पात मचा रखा है. लेकिन फिल्म में किसी भी दृश्य में इन्हें तस्करी करते या लूटपाट करते लंबे दृश्य नहीं दिखाये गये हैं. निर्देशक ने दर्शकों को स्वभाविक तरीके से समझाने की कोशिश की है. निस्संदेह अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह ने फिल्म में खुद को साबित करने की कोशिश की है. लेकिन कहानी के पुराने प्लॉट की वजह से न तो कहानी में कोई नयापन नजर आया और न ही संवादों में. नयापन इस अंदाज में था कि पुराने दौर में जब इस तरह की फिल्में बनती थीं. उस वक्त बैकग्राउंड म्यूजिक व विजुअल्स उतने अच्छे और उत्तम कोटि के नहीं होते थे. लेकिन आज के दौर में यह बदलाव आये हैं. अब रणवीर या अर्जुन अगर अपने संवाद स्पष्ट रूप से न भी बोल रहे हों तो उन्हें लाजर्र देन लाइफ दिखाने में तकनीक की मदद लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है. फिल्म के विजुअल्स बेहद खूबसूरत हैं. खासतौर से दुर्गा पूजा व विसजर्न के दृश्य फिल्म को खूबसूरत बनाते हैं.
लेकिन फिल्म की कमजोर कहानी की वजह से कमाल दिखाने में कलाकार कामयाब नहीं हो पाये हैं. प्रियंका ने फिल्म में अहम भूमिका जरूर निभायी है. लेकिन उनके किरदार को आम हिंदी फिल्मों की हीरोइनों के रूप में ही इस्तेमाल किया गया है. जो केवल मोहरे के रूप में काम करती हों. इरफान खान जैसे दिग्गज कलाकार के संवाद और दृश्य और बेहतरीन लिखे जाते तो फिल्म बेहद खास लग सकती थी. रणवीर सिंह फिल्म में जितने फुर्तीले और चुस्त नजर आये हैं.अर्जुन अलसाये अंदाज में अभिनय करते नजर आये हैं. उन्होंने गुस्सैल स्वभाव के अभिनेता का किरदार जरूर निभाया है. लेकिन वह चेहरे पर वह हाव भाव नहीं ला पाये हैं. कुछ बातें तो आंखों को खटकती हैं. वह यह कि निर्देशक ने धनबाद और कोलकाता में दूरी को इस कदर दिखाया है. जैसे धनबाद और कोलकाता एक दूसरे के बगल में स्थित शहर हों. कोयले के खादान भी वास्तविक नजर नहीं आये हैं. सिनेमेटिक लीबर्टी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया गया है.
फिल्म की खासियत फिल्म के गाने, रणवीर सिंह की अदायगी और इरफान खान का संजीदा अभिनय है. सौरभ शुक्ला भी फिल्म में अहम भूमिका निभाते हैं. िनर्देशक अली अगर फिल्म में थोड़े और मोड़ लाते तो यह फिल्म बेहद दिलचस्प और विक्रम बाला की जोड़ी जय वीरु की तरह नजर आती. फिल्म के कुछ संवाद बार बार दोहराये गये हैं. कोयला खान, प्यार का रंग लाल, खून का रंग लाल..जैसे कई संवाद बार बार सुनने पर बोरियत महसूस कराते हैं.

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