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एक फिल्मकार पिता की चिट्ठी

अनुप्रिया अनंत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को कई खत लिखे थे, जो बाद में इंदिरा के लिए मार्गदर्शन बने. उन खतों के माध्यम से ही इंदिरा को पिता के कई नजरियों को समझने में आसानी हुई. चूंकि नेहरु राजनीति को गंभीरता से लेते थे और उन्हें आनेवाले भविष्य की चिंता थी, […]

अनुप्रिया अनंत

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को कई खत लिखे थे, जो बाद में इंदिरा के लिए मार्गदर्शन बने. उन खतों के माध्यम से ही इंदिरा को पिता के कई नजरियों को समझने में आसानी हुई. चूंकि नेहरु राजनीति को गंभीरता से लेते थे और उन्हें आनेवाले भविष्य की चिंता थी, इसलिए उन्होंने बेटी से इस बारे में खत के माध्यम से कई बातें की.

कुछ इसी तरह अमेरिकी निर्देशक मार्टिन स्कॉर्सिस ने भी अपनी बेटी फ्रांसेस्का को खत लिखा था. जिसमें उन्होंने फिल्मों को लेकर भविष्य की सोच की चर्चा की है. कुछ दिनों पहले ही यह खत मुझे चवन्नीचैप ब्लॉग के माध्यम से पढ़ने का मौका मिला. उन्होंने अपने पत्र में इस बात की चिंता जतायी है कि कैसे आनेवाले सालों में सिनेमा क्रिएटिविटी का नहीं, व्यवसाय का मोहताज हो जायेगा. वे खुद क्रियेटिव व्यक्ति हैं और वे फिल्मों को उसी नजरिये से देखने में विश्वास रखते हैं.

उन्होंने लिखा है कि जब 60 और 70 के दशक में उन्होंने जिस सोच के साथ शुरुआत की थी, अब वह दौर बदल चुका है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि बिजनेस की सोच की वजह से अब फिल्म की कला को पूरी तरह से सड़क पर ला खड़ा किया है. लेकिन फिर भी उन्हें इस बात की खुशी है कि अब फिल्में कम बजट में भी बनने लगी हैं, जो पहले कभी नहीं होता था और यह कम बजट वाली फिल्में ही दरअसल, सिनेमा की कला को जिंदा रख पाने में कामयाब होंगी. वरना, बड़े बजट में बननेवाली फिल्मों को अब केवल व्यवसाय से ही मतलब रह गया है.

दरअसल, मार्टिन द्वारा लिखी गयी यह चिट्ठी सच को ही बयां करती है और यह केवल हॉलीवुड की नहीं, बल्कि बॉलीवुड की सोच व समझ को दर्शाती है. यह पूरा पत्र हर रूप में पूरे विश्व के सिनेमा के लिए प्रासंगिक है. चूंकि यह हकीकत है कि छोटे बजट की फिल्में ही फिल्मों की वास्तविक संरक्षक रह चुकी हैं. वरन् फिल्मों ने तो आत्मा को खो दिया है.

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