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जन्‍मदिन विशेष: सआदत हसन मंटो का समझना हो तो जरूर पढ़ें उनकी ये 5 लघु कहानियां

आज उर्दू के महान लेखक सआदत हसन मंटो का जन्‍म दिन है. वे एक शानदार कहानीकार होने के साथ-साथ फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे. अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह […]

आज उर्दू के महान लेखक सआदत हसन मंटो का जन्‍म दिन है. वे एक शानदार कहानीकार होने के साथ-साथ फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे. अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किये. वे अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए. मंटो एक लेखक ही नहीं समाज को असली आइना दिखाने वाले क्रांतिकारी भी थे. मंटो को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा लेकिन मंटो लिखते रहे और समाज को आइना दिखाते रहे. अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली. उन्होंने जीवन में कोई उपन्यास नहीं लिखा. उनके जन्‍मदिन पर पढि़ए उनकी 5 लघु कहानियां…

घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया. रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा- ‘तुम्हारा क्या नाम है?’ लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया- ‘हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो…’ लड़की ने जवाब दिया- ‘उसने झूठ बोला था.’ यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा- ‘उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…’

कारामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए. लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे, कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें. एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया. शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं. जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया. लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया. दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था. उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.

बंटवारा

एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक चुना. जब उसे उठाने लगा तो संदूक अपनी जगह से एक इंच न हिला. एक शख्स ने, जिसे अपने मतलब की शायद कोई चीज मिल ही नहीं रही थी, संदूक उठाने की कोशिश करनेवाले से कहा- ‘मैं तुम्हारी मदद करूँ?’ संदूक उठाने की कोशिश करनेवाला मदद लेने पर राजी हो गया. उस शख्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज नहीं मिल रही थी, अपने मजबूत हाथों से संदूक को जुंबिश दी और संदूक उठाकर अपनी पीठ पर धर लिया. दूसरे ने सहारा दिया, और दोनों बाहर निकले.

संदूक बहुत बोझिल था. उसके वजन के नीचे उठानेवाले की पीठ चटख रही थी और टाँगें दोहरी होती जा रही थीं; मगर इनाम की उम्मीद ने उस शारीरिक कष्ट के एहसास को आधा कर दिया था. संदूक उठानेवाले के मुकाबले में संदूक को चुननेवाला बहुत कमजोर था. सारे रास्ते एक हाथ से संदूक को सिर्फ सहारा देकर वह उस पर अपना हक बनाए रखता रहा.

जब दोनों सुरक्षित जगह पर पहुँच गए तो संदूक को एक तरफ रखकर सारी मेहनत करनेवाले ने कहा- ‘बोलो, इस संदूक के माल में से मुझे कितना मिलेगा?’ संदूक पर पहली नजर डालनेवाले ने जवाब दिया- ‘एक चौथाई.’ ‘यह तो बहुत कम है.’ ‘कम बिल्कुल नहीं, ज्यादा है…इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस माल पर हाथ डाला था." "ठीक है, लेकिन यहाँ तक इस कमरतोड़ बोझ को उठाके लाया कौन है?"

‘अच्छा, आधे-आधे पर राजी होते हो?’ ‘ठीक है…खोलो संदूक.’ संदूक खोला गया तो उसमें से एक आदमी बाहर निकला. उसके हाथ में तलवार थी. उसने दोनों हिस्सेदारों को चार हिस्सों में बाँट दिया.

मुनासिब कार्रवाई
जब हमला हुआ तो मोहल्‍ले में अकल्‍लीयत के कुछ लोग कत्‍ल हो गए जो बाकी बचे, जानें बचाकर भाग निकले-एक आदमी और उसकी बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छुप गए. दो दिन और दो रातें पनाह याफ्ता मियाँ-बीवी ने हमलाआवरों की मुतवक्‍के-आमद में गुजार दीं, मगर कोई न आया.

दो दिन और गुजर गए. मौत का डर कम होने लगा. भूख और प्‍यास ने ज्यादा सताना शुरू किया. चार दिन और बीत गए. मियाँ-बीवी को जिदगी और मौत से कोई दिलचस्‍पी न रही. दोनों जाए पनाह से बाहर निकल आए. खाविंद ने बड़ी नहीफ आवाज में लोगों को अपनी तरफ मुतवज्‍जेह किया और कहा ‘हम दोनों अपना आप तुम्‍हारे हवाले करते हैं…हमें मार डालो.’

सफाई पसंद
गाड़ी रुकी हुई थी. तीन बंदूकची एक डिब्बे के पास आए. खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा- ‘क्यों जनाब, कोई मुर्गा है?’ एक मुसाफ़िर कुछ कहते-कहते रुक गया. बाकियों ने जवाब दिया- ‘जी नहीं.’ थोड़ी देर बाद भाले लिए हुए चार लोग आए. खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा- ‘क्यों जनाब, कोई मुर्गा-वुर्गा है?’ उस मुसाफिर ने, जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया-"जी मालूम नहीं…आप अंदर आके संडास में देख लीजिए.’ भालेवाले अंदर दाखिल हुए. संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्गा निकल आया. एक भालेवाले ने कहा- ‘कर दो हलाल.’ दूसरे ने कहा- ‘नहीं, यहाँ नहीं…डिब्बा खराब हो जाएगा…बाहर ले चलो.’

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