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Amitabh Bachchan Birthday Special: बच्चन और गांधी परिवार में कैसे आयी दरार?

बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का आज 77वां जन्मदिन है. सदी के महानायक कहे जानेवाले बिग बी हाल ही में दादा साहब फाल्के अवार्ड से नवाजे गए. अमिताभ बच्चन जितने अच्छे अभिनेता हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी. पांच दशक से लंबे अपने फिल्मी करियर में अलग मुकाम हासिल करनेवाले इस अभिनेता का जीवन भी […]

बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का आज 77वां जन्मदिन है. सदी के महानायक कहे जानेवाले बिग बी हाल ही में दादा साहब फाल्के अवार्ड से नवाजे गए. अमिताभ बच्चन जितने अच्छे अभिनेता हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी.

पांच दशक से लंबे अपने फिल्मी करियर में अलग मुकाम हासिल करनेवाले इस अभिनेता का जीवन भी हमेशा सुर्खियों में रहा है. एक समय ऐसा भी आया, जब लोगों के प्यार के रथ पर सवार होकर अमिताभने फिल्मी दुनिया से इतर राजनीति का रुख किया था. और इसकी प्रेरणा और वजह बने थे बच्चन और गांधी परिवार के पुराने ताल्लुकात.

जी हां, अमिताभ बच्चन और गांधी परिवार के बीच खास रिश्ता था. इस रिश्ते में प्यार और खटास के कई मोड़ आये. दोनों परिवार एक दूसरे के लंबे समय तक दोस्त रहे हैं, लेकिन आगे चलकर बच्चन और गांधी परिवारके मधुर संबंधों को शायद किसी की नजर लग गई.

इस रिश्ते की शुरुआत कुछ यूं हुई कि अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन विदेश मंत्रालय में हिंदी अधिकारी थे. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनकी बड़ीकद्र करते थे और चूंकि दोनों परिवाराें की जड़ें इलाहाबाद से जुड़ी हुई थीं, ऐसे में इनके बीच करीबी बढ़नी ही थी.

आगे चलकर अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन, पंडित नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी की अच्छी दोस्त बन गईं. बच्चन परिवार के जब दिल्ली में रहने लगा, तो तेजी बच्चन की पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बनी और इंदिरा से उनकी दोस्तीगहराती गई.

बच्चन-गांधीपरिवार का यह रिश्ता अमिताभ और राजीव गांधी की दोस्ती के रूप में आगे बढ़ता गया. कम लोग ही यह जानते होंगे कि अमिताभ 1968में जनवरी की सर्दी में पालम एयरपोर्ट पर सोनिया गांधी को लेने पहुंचे थे.तब सोनिया राजीव की मंगेतर के रूप में भारत पहुंची थीं. सोनिया बच्चन परिवार के घर ठहरीं और तेजी ने उन्हें भारतीय संस्कृतिके तौर-तरीके समझाये.

कहा तो यह भी जाता है कि राजीव गांधी जब सोनिया गांधी से शादी करने को इच्छुक थे, तब तेजी बच्चन ने ही इंदिरा गांधी को इसके लिए राजी कियाथा. क्योंकि इंदिरा गांधी एक इतालवी लड़की से अपने बेटे की शादी के लिएतैयार नहीं थीं.

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या तक अमिताभ बच्चन और राजीव गांधी परिवार के संबंध घनिष्ठ रहे. तब अमिताभ और राजीव गांधी के रिश्ते नयी ऊंचाई पर थे. इसी साल राजीव ने अपने दोस्त अमिताभ को कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लिया.

फिर क्या था! अमिताभ बच्चन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी हेमवती नंदन बहुगुणा को बड़े अंतर से हराया. दोनों परिवारों के लिए यह गर्व का क्षण था. इसके बाद दिल्ली में अमिताभ बच्चन कांग्रेस की यूथ ब्रिगेड का हिस्सा बन गए. जल्द ही वह सतीश शर्मा, अरुण नेहरू और कमलनाथ जैसे युवा तुर्कों के बीच गिने जाने लगे.

लेकिन फिल्मों के शहंशाह अमिताभ को राजनीति रास नहीं आयी. तीन साल बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी औरसांसदी सेइस्तीफा दे दिया. हुआ यह था कि एक अखबार ने बोफोर्स तोप घोटाले में उनकी संलिप्तता का जिक्र करते हुए एक खबर छापी थी. बोफोर्स कांड ने दो दोस्तों में मतभेद के बीज बो दिये. हालांकि काफी बाद में सुप्रीम कोर्ट की ओर से अमिताभ बच्चन को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई.

इसबीच साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद दोनों परिवारों के रिश्ते बिगड़ते चले गये. गांधी परिवार को महसूस हुआ कि बुरे वक्त में अमिताभ बच्चन उन्हें अकेला छोड़कर चले गये.

वहीं, दूसरी ओर अमिताभ बच्चन का कहना था कि गांधी परिवार उन्हें राजनीति में लेकर आया और परेशानी के समय उन्हें बीच मझधार में असहाय छोड़ दिया.

राजनीतिकी छोटी पारी खेलने के बाद अमिताभ बच्चन ने 1988 में दोबारा बॉलीवुड का रुख किया, लेकिन ‘शहंशाह’ के बाद आयी उनकी ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी. हालांकि 1991 में आयी ‘हम’ से अमिताभ ने लंबे समय बाद सफलता का स्वाद चखा, लेकिन यह ज्यादा दिन चल न सका. लिहाजा अमिताभ बच्चन नेपांच सालों के लिए फिल्मों को एक तरह से अलविदा कह दिया.

कुछ दिनों बाद अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल दिवालिया हो गई और बिग बीको आर्थिक संकट से जूझनापड़ा. इस नाजुक घड़ी में गांधी परिवार उनसे दूर रहा. इस संकट ने दोनों परिवारों के रिश्ते को डुबा दिया. कुछ मौकों पर अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन अपनी यह निराशा जाहिर करती नजर आयीं.

इसकेबाद अमिताभ की जिंदगी में अमर सिंह की एंट्री हुई और समाजवादी नेता ने बिगबी को आर्थिक संकट से उबारा. फिर अमिताभ और अमर की दोस्ती बढ़ी और आगे चलकर समाजवादी पार्टी ने जया बच्चन को राज्यसभा का सांसद बनाया. अमिताभ बच्चन के अमर सिंह के साथ होने से भी गांधी परिवार से उनकी दूरी बढ़ती गयी.

2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान जया बच्चन नेे गांधी परिवार पर इशारों-इशारों में कहा- जो लोग हमें राजनीति में लेकर आये, वो हमें संकट में छोड़कर चले गये. वो लोगों के साथ विश्वासघात करनेवाले हैं.

इस पर राहुल गांधी ने जवाब दिया था- बच्चन परिवार झूठ बोल रहा है. इतने सालों बाद वे क्यों आरोप लगा रहे हैं? अमिताभ बच्चन दो दशक पहले राजनीति में आये और अब उन्होंने अपनी वफादारी बदल ली है. जो लोग गांधी परिवार को जानते हैं, उन्हें पता है कि हमने किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया. लोग जानते हैं किसने किसे धोखा दिया.

इसके बाद अमिताभ बच्चन ने भी अपनी बात रखी- वे लोग (गांधी परिवार) राजा हैं और हम (बच्चन परिवार) रंक (सामान्य लोग) हैं. रिश्ते की निरंतरता शासक के मिजाज पर निर्भर करती है. अब वे मेरे परिवार पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हैं.

केंद्र में कांग्रेस-नीत यूपीए के पहले शासनकाल के दौरान 2005 में इनकम टैक्स विभाग की ओर से अमिताभ बच्चन को 4.5 करोड़ रुपये का नोटिस भेजा गया. तब आंत की बीमारी से जूझ रहे अमिताभ लीलावती अस्पताल में भर्ती थे. कहते हैं कि अस्पताल के बेड पर लेटे अमिताभ बच्चन ने अपने हाथों बिल भरा.

इसके बाद 2006 में इनकम टैक्स विभाग ने एक बार फिर अमिताभ बच्चन से उनकी कंपनी अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड (ABCL) से जुड़े टैक्स काब्यौरा मांगा.

2007 में कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार ने अमिताभ बच्चन पर अवैध तरीके सेे पुणे के पास कृषि भूमि खरीदने का आरोप लगाया. लोनावाला में आठ हेक्टेयर भूमि की खरीददारी को अमिताभ बच्चन ने सही ठहराया और कहा कि उत्तर प्रदेश में वह एक किसान थे. राज्य सरकार ने अमिताभ से स्वयं को किसान साबित करने को कहा. अमिताभ ने दस्तावेज दिखाए, जिनके मुताबिक उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में उनके पास खेत हैं. हालांकि अपने फैसले मेंउत्तर प्रदेश की कोर्ट ने कहा कि अमिताभ बच्चन किसान नहीं हैं और उनके पास राज्य में खेत खरीदने का अधिकार नहीं है.

इसके बाद मार्च 2010 में बिग बी मुंबई में बांद्रा वर्ली सी लिंक के नये फेज के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुंचे. अमिताभ की उपस्थितिसे बवाल खड़ा हुआ. मुंबई कांग्रेस के लोगों ने नाराजगीजतायी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कार्यक्रम में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया.

हालांकि वर्तमान की बात करें, तो इन दिनोंगांधी-बच्चन परिवारों केबीच तल्खी कम हुई लगती है और दोनों परिवारों के लोग एक-दूसरे के बारे मेंकोई तीखी बात बोलने से परहेज करते दिखते हैं.

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