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दिवाला कानून संशोधन अध्यादेश जारी, कर्ज में फंसी संपत्ति की नीलामी में हिस्सा नहीं ले सकेंगे डिफॉल्टर

नयीदिल्ली : दिवाला कानून के तहत ऋण शोधन प्रक्रिया में आयी कंपनियों के प्रमोटर्स को झटका लगा है. वह ऐसी संपत्तियों को हासिल करने के लिए बोली प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे़ सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए अध्यादेश जारी किया है, जिसमें जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले (डिफॉल्टर) तथा जिनके खातों को […]

नयीदिल्ली : दिवाला कानून के तहत ऋण शोधन प्रक्रिया में आयी कंपनियों के प्रमोटर्स को झटका लगा है. वह ऐसी संपत्तियों को हासिल करने के लिए बोली प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे़ सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए अध्यादेश जारी किया है, जिसमें जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले (डिफॉल्टर) तथा जिनके खातों को फंसे कर्ज (एनपीए) की श्रेणी में डाला गया है, उन्हें ऐसी संपत्तियों की नीलामी में बोली लगाने से रोकने का प्रावधान किया गया है.

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कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अध्यादेश लाने का मकसद गलत इरादा रखने वाले लोगों को ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों का उल्लंघन करने से रोकने के लिए एहतियाती उपाय करना है. कानून में किया गया ताजा संशोधन उन मामलों में भी लागू होगा, जहां शोधन प्रक्रिया समाधान को अभी मंजूरी मिलना बाकी है.

शीतकालीन सत्र में इस संशोधन कानून को मंजूरी मिलने की संभावना

मंत्रालय के बयान के अनुसार, ऋण शोधन कानून में किये गये इस संशोधन को बाद में संसद की मंजूरी की आवश्यकता है. संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से शुरू होने की संभावना है. इन बदलावों का मतलब यह है कि बैंकों के कर्ज की वसूली के लिए ऋण शोधन कार्रवाई के तहत आयी संपत्तियों की नीलामी में उनके प्रमोटर्स को बोली लगाने की अनुमति नहीं होगी.

इन पर है पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया

रिजर्व बैंक ने इस कानून के तहत पहले चरण में 5,000 करोड़ से अधिक के बकाया वाली 12 कंपनियों के मामले को समाधान के लिए भेजा. इन कंपनियों में भूषण स्टील, एस्सार स्टील, लैंको इंफ्राटेक, मोनेट इस्पात और इलेक्ट्रोस्टील शामिल हैं. कई मामलों में देखा गया है कि शोधन प्रक्रिया के तहत बोली लगाने वालों में उन कंपनियों के मूल प्रवर्तक भी शामिल हैं.

कानून में संशोधन के पीछे यह हैं कारण

ऐसी आशंका थी कि कर्ज नहीं लौटाने वाले प्रमोटर्स ऋण शोधन कार्रवाई के अंतर्गत आने वाली कंपनी को कर्ज वसूली के लिए नीलामी में फिर से अपने नियंत्रण में ले सकती हैं. इसे देखते हुए बुधवार को सरकार ने कानून में संशोधन को लेकर अध्यादेश लाने का फैसला किया.

डिफाॅल्टरों पर नकेल कसने की खातिर संशोधन

मंत्रालय के अनुसार, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. इसमें कहा गया है कि संशोधनों का उद्देश्य उन लोगों को इसके दायरे से बाहर रखना है, जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाया तथा फंसे कर्जों (एनपीए) से संबंधित हैं और जिन्हें नियमों का अनुपालन न करने की आदत है. इसीलिए उन्हें किसी कंपनी के दिवाला संबंधी विवाद के सफल समाधान में बाधक माना गया है.

खाते में एक साल से अधिक एनपीए रखने वाले भी बोली लगाने से होंगे वंचित

अध्यादेश के तहत वे सभी भी बोली नहीं लगा सकेंगे, जिनके खातों को एक साल या उससे अधिक समय से गैर-निष्पादित परिसपंत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया और वे समाधान योजना लाये जाने से पहले ब्याज समेत बकाया राशि का निपटान नहीं कर पाये.

इन्हें नहीं होगा बोली लगाने का अधिकार

इसके अंतर्गत आईबीसी के तहत जिन कंपनियों के खिलाफ ऋण शोधन या परिसमापन प्रक्रिया चल रही है, उससे संबद्ध कंपनियां, प्रमोटर्स, होल्डिंग कंपनियां, अनुषंगी इकाइयां तथा संबद्ध कंपनियों या संबंधित पक्ष फंसी संपत्ति के लिए बोली लगाने के लिये पात्र नहीं होंगे.

सीआेसी को समाधान योजना मंजूरी तय करने का अधिकार

संशोधित संहिता यह भी कहती है कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) को समाधान योजना की मंजूरी से पहले उसकी व्यवहार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए. विज्ञप्ति के अनुसार, सीओसी को वैसी समाधान योजना को खारिज करना चाहिए, जिसे अध्यादेश से पहले जमा किया गया और उसे अभी मंजूरी नहीं मिली है.

अार्इबीबीआर्इ को मिलीं अतिरिक्त शक्तियां

इसके अलावा, संहिता को लागू करने वाला ऋण शोधन एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) को अतिरिक्त शक्तियां दी गयी हैं. अध्यादेश के तहत दिवाला संहिता में छह धाराओं में संशोधन किया गया है. इसके अलावा, दो नयी धाराएं जोड़ी गयी हैं. संहिता पिछले साल दिसंबर में परिचालन में आ गयी.

दिवाला कानून के तहत तीन सौ से अधिक मामलों की होगी सुनवार्इ

इस कानून के तहत कर्ज में फंसी संपत्तियों के लिए बाजार मूल्य आधारित तथा समयबद्ध ऋण शोधन के समाधान की प्रक्रिया उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है. तीन सौ से अधिक मामलों को इस कानून के तहत सुनवाई के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण (एनसीएलटी) से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. अध्यादेश पर अपनी प्रतिक्रिया में एस्सार स्टील के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी ने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की है.

कर्ज लौटने में नहीं की है कोर्इ चूक

भूषण स्टील लिमिटेड तथा भूषण स्टील एंड पावर के मुख्य वित्त अधिकारी नितिन जौहरी ने भी कहा कि हमने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की है. अगर मंजूरी मिली, तो हम संपत्ति के लिए बोली लगायेंगे. इस बारे में लैंको इंफ्राटेक के एक अधिकारी ने कहा कि कंपनी ने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की, लेकिन एनपीए जरूर 8,800 करोड़ रुपये है.

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