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पंकज चतुर्वेदी

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मानसून का मिजाज समझने की आवश्यकता

नदियों का अतिरिक्त पानी सहेजने वाले तालाब-बावली-कुएं नदारद हैं. पानी सहेजने व उसके बहुउद्देशीय इस्तेमाल के लिए बनाये गये बांध थोड़ी सी बरसात को समेट नहीं पा रहे हैं. पहाड़, पेड़, और धरती को सांमजस्य के साथ खुला छोड़ा जाए, तो हमारे लिए जरूरी वर्षभर के पानी को भूमि अपने गर्भ में ही सहेज ले.

असम को बरसों पीछे पहुंचा देती है सालाना बाढ़

ब्रह्मपुत्र का प्रवाह क्षेत्र ऊंची पहाड़ियों वाला है, जहां कभी घने जंगल हुआ करते थे. उस क्षेत्र में बारिश भी जम कर होती है. बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए, तो ये सीधी ही जमीन से टकराने लगीं.

बाल भिक्षावृत्ति को लेकर उदासीन समाज

सत्तर के दशक में देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ ऐसे गिरोहों का पर्दाफाश हुआ था, जो अच्छे-भले बच्चों का अपहरण कर उन्हें लोमहर्षक तरीके से विकलांग बना भीख मंगवाते थे. लेकिन नब्बे का दशक आते-आते इस समस्या का रंग-ढंग बदल गया. ऐसे गिरोहों के अलावा महानगरों में झुग्गी संस्कृति से जो रक्तबीज प्रसवित हुए.

सिकुड़ती जा रही है भारत की समुद्री तट रेखा

समुद्री विस्तार की समस्या केवल ग्रामीण अंचलों तक ही नहीं हैं. इसका सर्वाधिक कुप्रभाव समुद्र के किनारे बसे महानगरों पर पड़ रहा है. दुनिया का तापमान बढ़ने के साथ समुद्र का जल स्तर ऊंचा होगा और तटों का कटाव गंभीर रूप लेगा.

ई-कचरे से बेपरवाही पहुंचा सकती है जेल

पूरी दुनिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल भले ही अब अनिवार्य बन गया हो, लेकिन यह भी सच है कि इससे उपज रहे कचरे को सही तरीके से निपटारे की तकनीक का घनघोर अभाव है.

निकोबार के विकास में विनाश के सूत्र

क्या विकास का नया मॉडल इन सभी नैसर्गिक उपहारों का दुश्मन बन जायेगा? आज 572 द्वीपों का समूह अंडमान निकोबार ऐसे ही द्वंद्व से गुजर रहा है. ये द्वीप इंडोनेशिया और थाईलैंड के निकट स्थित हैं.