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कृष्ण प्रताप
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रामराज्य के प्रबल आकांक्षी थे महात्मा गांधी
कहा जाता है कि इस यात्रा में उन्होंने अयोध्या के साधुओं के बीच जाकर उनसे आजादी की लड़ाई लड़ने को कहा और विश्वास जताया था कि देश के सारे साधु, जो उन दिनों 56 लाख की संख्या में थे, बलिदान के लिए तैयार हो जायें, तो अपने तप तथा प्रार्थना से भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं.
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नेताजी: स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी सेनानी
वे छात्रों को ‘भविष्य का उत्तराधिकारी’ बताते हुए कहते थे कि देश के उद्धार की सच्ची शक्ति व सामर्थ्य उनमें ही है, इसलिए वे अपने को जनता से जोड़ें. उनकी इच्छा थी कि छात्र गांवों में निष्क्रिय पड़े तीन वर्गों- नारी, अनुन्नत वर्ग एवं किसान-मजदूर- के पास जाएं, उन्हें प्रेरित करें.
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पंडित बृज नारायण चकबस्त : ‘बुलबुल को गुल मुबारक
अपनी एक रचना में उन्होंने लिखा था- ‘उन्हें ये फिक्र है हरदम नयी तर्जे वफा क्या है/ हमें ये शौक कि देखें सितम की इंतिहा क्या है/ नया बिस्मिल हूं मैं वाकिफ नहीं रस्मे शहादत से/ बता दे तू ही ऐ जालिम, तड़पने की अदा क्या है’.
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दरिद्रनारायण के आराधक थे स्वामी विवेकानंद
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक रोम्यां रोलां ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित अपनी कृति ‘लाइफ ऑफ विवेकानंद’ में लिखा है कि चूंकि वे पर उपदेश कुशल नहीं थे, इसलिए शक्ति अर्जित करने का उनका आह्वान भी महज दूसरों के लिए नहीं था.
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लालबहादुर शास्त्री : नैतिकता ही नहीं, दृढ़ता भी गजब की
वर्ष 1957 में उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद सीट से चुने गये शास्त्री जी 1962 में फिर इसी सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे. चुनाव प्रचार के एक-दो दिन ही बचे थे और मुकाबला कड़ा न होने के बावजूद अपने सारे मतदाताओं तक पहुंचने की चाह में वे दिन-रात एक किये हुए थे.
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Ram Mandir Pran Pratishtha: निमंत्रण को लेकर ‘एक अनार तो सौ बीमार’!
कांग्रेस के भूतपूर्व सांसद निर्मल खत्री को तो यह निमंत्रण रविवार को ही मिल गया. उन्हें निमंत्रित करने गये ट्रस्ट के प्रतिनिधियों ने उनके साथ फोटो भी खिंचाया. लेकिन राममंदिर आंदोलन के बडे चेहरों में से एक भाजपा के पूर्व सांसद विनय कटियार को तक निमंत्रण नहीं मिला है.