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प्रतिमा नहीं निरंकारी काली की होती है पूजा

जामुड़िया : जामुड़िया इलाके में सिंघारन काली मंदिर में पिछले तीन सौ सालों से बिना प्रतिमा के निरंकारी काली की पूजा की जाती है. मंदिर में आसपास तथा दूरदराज के इलाकों से लोग पूजा और साधना करने के लिए पहुंचते हैं. शिल्पांचल के इतिहास में सबसे पुराने काली मंदिर के रूप में प्रचलित इस मंदिर […]

जामुड़िया : जामुड़िया इलाके में सिंघारन काली मंदिर में पिछले तीन सौ सालों से बिना प्रतिमा के निरंकारी काली की पूजा की जाती है. मंदिर में आसपास तथा दूरदराज के इलाकों से लोग पूजा और साधना करने के लिए पहुंचते हैं.

शिल्पांचल के इतिहास में सबसे पुराने काली मंदिर के रूप में प्रचलित इस मंदिर में कथित तौर पर सबसे पहले पूजा डकैतों के सरदार भवानी पाठक ने की थी. उनके नाम से उस समय बांकुड़ा, बीरभूम, बर्दवान समेत आसपास के जिले के निवासियों में आतंक का माहौल रहता था. बाद में साधक बामाखेपा ने यहां सिंघारण काली मंदिर में पंच मुंडी साधना की शुरुआत की. मंदिर के पुरोहित सुबल बंदोपाध्याय ने बताया कि इस मंदिर में उनके कई पूर्वज पूजा करते रहे हैं. यहां अपराजिता फूल का जंगल था.
ब्रिटिश शासनकाल में बनर्जी एंड संस कंपनी ने यहां कोयला खनन शुरू किया था. उस दौरान मंदिर की सफाई से वहां 12 हाथ लंबा बाल, साढ़े तीन फुट लंबा दो खड़क और पत्थरों की तीन आंख बरामद हुई थी. इन सभी सामग्रियों को वही मंदिर के नीचे गर्भ में दफना दिया गया. वर्ष 1987 में तपसी निवासी ने मंदिर की चारदीवारी का निर्माण कराया.
पुरोहित दीपक अधिकारी ने बताया कि यहां मां सशरीर विराज करती है और इसका प्रमाण बहुत बार लोगों ने अनुभव किया है. कुछ साल पहले ईसीएल ने यहां ओसीपी खोलने का प्रयास किया. स्थानीय ग्रामीणों ने अधिकारियों को मना किया. लेकिन जब ओसीपी चालू करने की पहल हुई तो भूगर्भ से निकलने वाली आग ने अधिकारियों को यहां से भागने पर मजबूर कर दिया था.

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