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सरदार पटेल ही क्यों?

।। राजेंद्र तिवारी।। (कारपोरेट संपादक प्रभात खबर) नरेंद्र मोदी सरदार वल्लभभाई पटेल के उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे हैं. सरदार ने देश को एक बनाया और हम उसे श्रेष्ठ बनायेंगे. लेकिन क्या सिर्फ इसीलिए नरेंद्र मोदी और संघ परिवार के लिए सरदार अनुकूल लगते हैं या फिर कोई और वजह […]

।। राजेंद्र तिवारी।।

(कारपोरेट संपादक प्रभात खबर)

नरेंद्र मोदी सरदार वल्लभभाई पटेल के उत्तराधिकारी के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे हैं. सरदार ने देश को एक बनाया और हम उसे श्रेष्ठ बनायेंगे. लेकिन क्या सिर्फ इसीलिए नरेंद्र मोदी और संघ परिवार के लिए सरदार अनुकूल लगते हैं या फिर कोई और वजह भी है. मुङो लगा इसका जवाब शायद मौलाना अबुल कलाम आजाद की जीवनी इंडिया विन्स फ्रीडम में मिले, तो मैंने इस किताब के पन्ने पलटे और साथ ही लखनऊ विवि में इतिहास विभाग के प्रोफेसर प्रमोद कुमार की किताब महात्मा बिट्रेड के पन्ने भी.

आजाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- मुङो दुख के साथ स्वीकार करना है कि बिहार और बांबे, दोनों प्रांतों में कांग्रेस राष्ट्रवाद की परीक्षा में पूरी तरह सफल नहीं रही. कांग्रेस राष्ट्रीय संगठन की तरह विकिसत हुई है और सभी समुदायों को नेतृत्व का मौका दिया था. बांबे में मिस्टर नरीमन स्थानीय कांग्रेस के मान्य नेता थे. जब प्रांतीय सरकार के गठन का मौका आया, तो सामान्य तौर पर यह माना जा रहा था कि मिस्टर नरीमन के कद को देखते हुए उनको सरकार का नेतृत्व करने के लिए कहा जायेगा. इसका मतलब होता कि एक पारसी व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता, जबकि कांग्रेस असेंबली पार्टी के अधिकतर सदस्य हिंदू थे. सरदार पटेल और उनके साथी इस स्थिति के लिए खुद को तैयार न कर सके और महसूस किया कि यह कांग्रेस के हिंदू समर्थकों के साथ अन्याय होगा. ये लोग मिस्टर बीजी खेर को सामने लेकर आये और उन्हें कांग्रेस असेंबली पार्टी का नेता चुना गया. मिस्टर नरीमन इस फैसले से स्वाभाविक तौर पर परेशान हुए और कांग्रेस वर्किग कमेटी में इस सवाल को रखा. जवाहरलाल उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे और बहुतों को लग रहा था कि जवाहरलाल सांप्रदायिक भेदभाव से पूर्णतया मुक्त हैं, लिहाजा वे मिस्टर नरीमन के साथ हुए अन्याय को दुरु स्त कर देंगे. दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाया. जवाहरलाल जानते थे कि लोग उनको सरदार पटेल के आलोचक व विरोधी के तौर पर देखते हैं. वह सरदार पटेल के समर्थकों को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहते थे कि उनकी (जवाहरलाल की) आलोचना हो.

इसके बाद मामला गांधीजी के पास गया. गांधीजी ने कहा मिस्टर नरीमन द्वारा सरदार पटेल पर लगाये जा रहे आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. चूंकि मिस्टर नरीमन पारसी थे लिहाजा सरदार पटेल और उनके समर्थकों ने सुझाव दिया कि जांच किसी पारसी से ही करायी जानी चाहिए. आजाद लिखते हैं कि सरदार पटेल ने सुनियोजित तरीके से चाल चली और मामले को कुछ इस तरह से तैयार किया कि सबकुछ ढंक-छिप जाये.

हुआ भी यही कि मिस्टर नरीमन जांच शुरू होने से पहले ही केस हार चुके थे. बाद में यह पाया कि सरदार पटेल के खिलाफ कुछ भी सिद्ध नहीं हुआ. जो लोग अंदर की कहानी जानते थे, उनमें से कोई इस नतीजे से सहमत नहीं था. हम सब जानते थे कि सरदार पटेल की सांप्रदायिक मांगों को पूरा करने के लिए सच्चाई की कुरबानी दी गयी है. बेचारे मिस्टर नरीमन का दिल टूट चुका था और उनके सार्वजनिक जीवन का इस तरह से अंत हो गया.

बिहार में भी यही हुआ. बिहार में जब प्रांतीय चुनाव हुए, उस समय डाक्टर सैयद मोहम्मद कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे. वह ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी थे और उनका कद प्रांत में और प्रांत से बाहर, दोनों जगहों पर था. जब कांग्रेस ने चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया, तो यह माना जा रहा था कि डॉक्टर सैयद मोहम्मद ही नेता चुने जायेंगे और वही बिहार प्रांत के पहले मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन इसकी जगह सेंट्रल असेंबली के सदस्य श्रीकृष्ण सिन्हा और अनुग्रह नारायण सिन्हा को वापस बिहार बुला कर उन्हें चीफमिनिस्टरशिप के लिए ग्रूम किया गया. बिहार और बांबे में सिर्फ एक अंतर रहा कि जहां बांबे में मिस्टर नरीमन परिदृश्य से ही बाहर हो गये, वहीं बिहार में सैयद मोहम्मद को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.

तमाम मोदी विरोधी लोग यह साबित करने में लगे हैं कि सरदार पटेल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधी थे, सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगाया था, सरदार पटेल ने गोलवलकर को कड़ी चिट्ठी लिखी थी..आदि आदि. यह सब बातें संघ से बेहतर कौन जानता होगा, लेकिन मोदी विरोधी इनको लेकर ही अभियान में लगे हुए हैं और वजहें कहीं और छिपी हैं. ऊपर दिया गया आजाद की आत्मकथा का अंश, इन वजहों की तरफ एक मजबूत संकेत है. इसलिए यह कहना या मानना कि सरदार पटेल सिर्फ देश को एक करने के लिए नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों को प्रिय हैं , सच्चाई से मुंह मोड़ना ही है.

और अंत में..

आज रोशनी का पर्व दीपावली है और दीपावली के मौके पर पढ़िए सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की यह कविता..

यह दीप अकेला स्नेह भरा है

गर्व भरा मदमाता, पर

इसको भी पंक्ति को दे दो.

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा

पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लाएगा?

यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा.

यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,

है गर्व भरा मदमाता, पर

इस को भी पंक्ति दे दो.

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युग-संचय,

यह गोरस : जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय,

यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय,

यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत :

इस को भी शक्ति को दे दो.

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा,

है गर्व भरा मदमाता, पर

इस को भी पंक्ति को दे दो.

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,

वह पीड़ा, जिस की गहराई को स्वयं उसी ने नापा,

कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में

यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,

उल्लंब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा.

जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय

इस को भक्ति को दे दो.

यह दीप, अकेला, स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर

इस को भी पंक्ति को दे दो.

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