संयुक्त राष्ट्र:सयुंक्त राष्ट्र ने उम्मीद जतायी है कि किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दिये जाने के भारत के सुप्रीम के फैसले से शीर्ष अदालत द्वारा समलैंगिकता पर अपने फैसले की समीक्षा किये जाने का मार्ग प्रशस्त होगा. सुप्रीम कोर्ट ने समान लिंगवाले लोगों के बीच पारस्परिक सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी में बरकरार रखा था.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दिये जाने के फैसले से ‘इस बात की भी उम्मीदें जग गयी हैं कि न्यायालय अब अपने पूर्व के फैसले की समीक्षा करेगा.’ बयान में कहा गया, ‘महासचिव बार-बार उन कानूनों और कदमों की मुखालफत करते रहे हैं जो समलैंगिकता को अपराध बताते हैं तथा यौन अनुस्थिति और लैंगिक पहचान के आधार पर लोगों से भेदभाव करते हैं.’ उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखा था जो ‘अप्राकृतिक’ अपराधों के दोषियों को दंडित करती है.