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जीवन की संवेदना का विस्तार है कविता

अरुण शीतांश वरिष्ठ रचनाकार अरुण शीतांश समकालीन कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. इनके अब तक तीन कविता संग्रह-‘एक ऐसी दुनिया की तलाश में’, ‘हर मिनट एक घटना है’, ‘पत्थरबाज’ प्रकाशित हो चुके हैं. साथ ही आलोचना की पुस्तक ‘शब्द साक्षी हैं’ चर्चा में रही है. पुस्तक पंचदीप, युवा कविता का जनतंत्र, विकल्प है कविता और […]

अरुण शीतांश
वरिष्ठ रचनाकार अरुण शीतांश समकालीन कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. इनके अब तक तीन कविता संग्रह-‘एक ऐसी दुनिया की तलाश में’, ‘हर मिनट एक घटना है’, ‘पत्थरबाज’ प्रकाशित हो चुके हैं. साथ ही आलोचना की पुस्तक ‘शब्द साक्षी हैं’ चर्चा में रही है.
पुस्तक पंचदीप, युवा कविता का जनतंत्र, विकल्प है कविता और बादल का वस्त्र का इन्होंने संपादन किया है. अरुण शीतांश ने दूरदर्शन, आकाशवाणी पर कई बार कविता पाठ किया है और लगातार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. इन्हें शिवपूजन सहाय सम्मान (2014) और युवा शिखर सम्मान (2015) से नवाजा जा चुका है.
अरुण शीतांश देशज साहित्यिक पत्रिका के संपादक हैं. लोक साहित्य, देशज संवेदना, सोशल मीडिया, कविता के भविष्य और इसकी पक्षधरता को लेकर इनसे बातचीत की है युवा कवि और आलोचक अविनाश रंजन ने…
Q आपको कविता लिखने की प्रेरणा कहां से मिली. गांव और कस्बे से आप गहरे तौर पर जुड़े हैं और आपकी कविता का फलक काफी व्यापक है. कृपया इसके बारे में कुछ बताएं?
मैं गांव में पैदा हुआ और मेरी शुरुआती शिक्षा वहीं हुई. स्कूल नहर पार कर जाता था साथ में बोरा भी होता. बारिश के मौसम में वह छतरी का काम करता. वे कठिन दिन थे.मां मेरी गीत गाती , उनमें दर्द होता था.
वो कबीर के भजन, सोरठा – वृजाभार और आल्हा- रुदल की कहानियों को फोकलोर के फाॅर्म में गाती. उनसे मुझे आत्मिक सुखानुभूति मिलती और मैं संवेदनाओं से लबरेज़ हो गया और उसके बाद वीर कुंवर सिंह की धरती आरा -भोजपुर आया. यह ओज और क्रांतिधर्मिता की भूमि रही है. यहां मुझे समकालीन और पुराने कवियों को पढ़ने का मौका मिला. मैं राजेश जोशी, अरुण कमल, आलोक धन्वा, विश्वनाथ प्रताप तिवारी अशोक वाजपेई, मनोज कुमार झा, देवी प्र मिश्र, बद्रीनारायण, नीलय उपाध्याय को पढ़ा.
इनकी कविताओं में बहुत कुछ ऐसा था जो जो मैंने जिया और महसूस किया था. नये में महेश पुनेठा, सूशोभीत शक्तावत, अनुज लुगुन ,अविनाश मिश्र, विहाग वैभव कफ़ील दरवेश, कुमार मंगलम को पढ़ा. साथ ही भोजपुरी के कवि देवकुमार मिश्र ‘अलमस्त’ , जो मेरे स्कूल के गुरु थे, बहुत कुछ सीखा. इन्होंने नीतिशतकम, पुराण और वेद का अनुवाद किया.
इंदिरा गांधी की मृत्यु पर इन्होंने कविता लिखी, जिसे वे कक्षा में सुनाया करते. इसका गहरा असर मुझ पर हुआ. कबीर, तुलसी, संस्कृत कवि कालिदास और बाणभट्ट की समृद्ध परंपरा थी ही. तो मैंने लिखने की कोशिश की. पहली कविता आर्यावर्त अखबार में आयी. उसके बाद से वागर्थ, हंस, जनपथ, कथादेश. आदि में कविताएं प्रकाशित होती रहीं.
Q आपकी कविता किन चीजों से प्रभावित रहीं है? क्या कविता भी समकालीन स्थितियों से प्रभावित होती है ?
आज की कविता संस्कृत, हिंदी, भोजपुरी, मगही से भी आती है. एक किसान जो हल चला रहा है, उससे मुझे खुशी नहीं हो रही है पर उसके जो पसीने में जो सौंदर्य है, उसके हल चलाने का जो तरीका है वह मेरी कविताओं में आता है.
मैं उसकी संवेदनाओं के साथ खड़ा हूं. अगर वो अन्न न उपजाता तो हमारे मुंह में एक कौर भी न जाता. लेकिन आजादी के बहत्तर साल बाद भी जो सबसे ज्यादा त्रस्त हैं वो हैं किसान और मजदूर. भारत गांवों का देश है और गांधीजी का सपना था कि गांवों को स्वर्ग बनाया जाए. पर आज जो गरीब है वह और गरीब होता जा रहा है. जो धनाढ्य है वह और धनाढ्य होता जा रहा है. मध्यम वर्ग नवधनाढ्य में तब्दील हो गया है. पर निम्नमध्यवर्ग की स्थिति ज्यों की त्यों है. इसमें गलती या सही से ही कोई पढ़ गया तो वो सिपाही की नौकरी करता है या बाॅर्डर पर काम करता है.
तो कविता इन सब चीजों को देखने का काम करती है. उसकी दृष्टि सूक्ष्म होती है. कवि को आसपास की चीज़ें प्रभावित करती हैं और इसी में उसकी समकालीनता भी है. भक्तिकाल, रीतिकालीन और भारतेंदु युग, छायावाद और नयी कविता के कवि भी इसी अर्थ में समकालीन रहें हैं. ये हमारे लिए धरोहर की तरह हैं. कविता में दृष्टि सूक्ष्म होती है पर उसमें व्यापकता होती है. विषय गांव के और स्थानीय होते हुए भी उसकी व्यापकता काफी गहरी होती है.
Q आज के डिजिटल जमाने में जब लोगों के पास कविता को पढ़ने का वक्त नहीं है, तो कविता के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं ?
डिजिटल जमाने में ही कविता का भविष्य है पहले सोशल साइट्स नहीं थे तो कविता का भविष्य उतना उज्जवल नहीं था अब इनके होने से, कोई भी अपनी बात साहित्य के रूप में रख लेता है और वह सुरक्षित भी है और सबसे बड़ी बात कवि और कविता को नये जमाने के हिसाब से ही चलना होगा.
Q आपके सबसे प्रिय कवि कौन हैं और उनमें आप क्या खास बात देखते हैं ?
इस तरह का क्वेश्चन करना बहुत ही असमंजस में डालना है. चुकी उन सारे कवियों से कुछ न कुछ कवि ग्रहण करता है. इसलिए ,मेरे प्रिय कवि हैं कबीरदास, तुलसीदास, अरुण कमल, आलोक धन्वा, बद्रीनारायण, विनोद कुमार शुक्ल निलय उपाध्याय और आज के सारे युवा कवि.
खास बात यह है कि उनकी कविताओं में जो लोक की महक और गंध है जो हम जीवन में जीते हैं उस तरह की चीजें उनके साहित्य में दिखाई देती हैं और उनसे हम प्रभावित होते हैं. यहां हम उन्हीं चीजों को लेकर अपनी रचना भी रचते हैं.
Q कविता राजनीति से अलग नहीं होती और उसमें लोक संस्कृति की भावना उसे सामूहिकता की तरफ ले जाती है. क्या ऐसी कविताएं लिखी जा रही हैं जो व्यापक बदलाव की तरफ इशारा कर रही हैं या इनमें हमें कुछ संभावना दिखती है. कृपया इसके बारे में कुछ बताएं?
जहां तक नेरुदा की कविताओं की बात है तो वहां के लोगों में और यहां के लोगों में अंतर है अंतर यह है की वहां के मजदूर से यहां के मजदूर मजबूर हैं.
अगर नेरुदा की तरह कविताएं हम लिखें तो ये ठीक नहीं क्योंकि अरुण शीतांश की कविताएं उनके ही तरह हो नेरुदा की तरह नहीं लेकिन सवाल है मजदूर को लेकर तो आज भी कविताएं लिखी जा रही हैं. कार्ल मार्क्स ने कहा है कि ‘दुनिया के मजदूरों एक हो’.
Qइन दिनों लिटरेचर फेस्टिवल्स की धूम अपने देश में भी दिखाई पड़ रही है. हिंदी में पुस्तक मेले के अलावा बड़े पैमाने पर इस तरह के फेस्टिवल्स आयोजित नहीं होते. यदि ऐसा होता, तो बड़े समूह तक अपना साहित्य भी पहुंचता अपनी राय बताएं.
लिटरेचर फेस्टिवल्स अभी तक जितने भी हुए हैं वह अपने आप में बेहतर और अच्छी ढंग से प्रस्तुत किये गये हैं, इससे किसी को कोई शिकवा शिकायत नहीं है लेकिन अपनी दृष्टि थोड़ी पैनी करें तो हाल में जयपुर में दो फेस्टिवल्स हुए अब यह देखना है की दोनों फेस्टिवल में अंतर क्या है तो मुझे लगता है की समानांतर लिटरेचर फेस्टिवल की दृष्टि ज्यादा दूर तक गई है.
Q आप तुलनात्मक साहित्य के पक्षधर रहे हैं? अभी हाल ही में आपको केरल के कलिकट विश्वविद्यालय में छायावाद के पुनर्पाठ पर व्याख्यान के लिए बुलाया गया था. क्या छायावाद और उस दौर की मलयालम कविता में कोई समानता देखते हैं ?
हां पक्षधर हूं. तुलनात्मक साहित्य का जहां तक सवाल है तो आप देख सकते हैं जो अनुवाद देश में हो रहे हैं वह अनुवाद विश्व पटल पर नहीं जा रहे हैं. इसलिए अनुवाद को ठीक ढंग से उस भाव को प्रस्तुत करना होगा. जब तक हम किसी साहित्य से मलयालम कविता की तुलना नहीं करेंगे तो हम वहां के समाज को नहीं समझ पायेंगे.
अभी जब हम कालीकट विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने के लिए गये थे तो इससे पहले हमने एक अध्ययन किया जिसमें यह पाया कि छायावाद का जो काल रहा है, वही काल मलयालम कविता में रहा है बल्कि वहां भी निराला, महादेवी ,प्रसाद और पंत की तरह कवि हुए हैं. जिनके नाम हैं ईडेश्वरी, छगनपूजा, कुमारन आसान ,गौरी शंकर कुरुप,वल्लतोल मेनन. हां तक कि कुमारन आसान ने कुकुरमुत्ते जैसी कविता लिखी है जो किसान के पक्ष में हैं. जबकि निराला की कविता कुकुरमुत्ता अमीरों के खिलाफ, शोषण के खिलाफ कविता है, तो यह एक तुलनात्मक साहित्य पढ़ने से फायदा होता है.
Q नये रचनाकारों के बारे में आपके क्या ख्यालात हैं ?
नये रचनाकार यानी कि सदी के अंत के कवि के रूप में हम जानते हैं. वे अच्छा लिख रहे हैं, लेकिन बहुत अच्छा नहीं लिख रहे हैं. कुछेक कवि अवश्य हैं जो बेहतर लिख रहे हैं. मैं किसी का नाम लेकर और न लेकर खुशी या दिल नहीं दुखाना चाहता हूं. पर संभावनाएं भरपूर हैं.
Q आपकी अगली रचना साहित्य की किस विधा में आ रही है. हम बेसब्री से उसका इंतजार कर रहे हैं ?
मेरी अगली रचना की किताब आलोचना केंद्रित है. मुझे आलोचना में भी मन रमता है और उसके बाद एक कविता संग्रह और एक सुरेश सेन निशांत पर केंद्रित संपादन का कार्य कर रहा हूं.

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