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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 : किसके हवाले कर्नाटक सिद्दारमैया या यदियुरप्पा

दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का प्रचार थम गया. ‍वर्ष 2008 में पहली बार भाजपा का दक्षिण में प्रवेश इसी राज्य से हुआ था. वर्ष 2013 में उसके हाथ से सत्ता निकलकर कांग्रेस के पास आ गयी थी. राज्य में कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) के बीच संघर्ष तय माना जा रहा […]

दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का प्रचार थम गया. ‍वर्ष 2008 में पहली बार भाजपा का दक्षिण में प्रवेश इसी राज्य से हुआ था. वर्ष 2013 में उसके हाथ से सत्ता निकलकर कांग्रेस के पास आ गयी थी. राज्य में कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) के बीच संघर्ष तय माना जा रहा है. 12 मई को 223 सीटों पर मतदान होगा. एक सीट पर भाजपा उम्मीदवार के निधन के चलते मतदान नहीं हो रहा है. 15 मई को परिणाम आयेगा. चुनाव से पहले कर्नाटक के समीकरणों व मुद्दों पर पढ़िए अजय कुमार की रिपोर्ट
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार का शोर तो थम गया, पर बड़ा सवाल तारी है कि अगली सरकार किसकी बनेगी. क्या सिद्दारमैया की सत्ता में पुनर्वापसी होगी या यदियुरप्पा दोबारा राज्य की कमान संभालेंगे? यहां चल रहे चुनावी युद्ध का एक सिरा जनता दल (एस) से भी जुड़ता है. अगर दोनों बड़ी पार्टियों, कांग्रेस व भाजपा को सरकार बनाने लायक 113 सीटें नहीं मिल पाती हैं, तो जनता दल (एस) किंग मेकर की भूमिका में होगा? दक्षिण भारत में कांग्रेस हुकूमत वाले इस राज्य पर देश भर की नजर है. वजह अगले साल होने वाला लोकसभा का चुनाव है.
एक तरह से कर्नाटक के चुनाव पर बहुत कुछ दांव पर है. भाजपा के लिए और उससे कहीं अधिक कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए. इसके लिए सोनिया गांधी भी चुनावी मैदान में उतर चुकी हैं. बसपा का जद (एस) के साथ गठबंधन है.
राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से एक को छोड़कर 12 मई को वोट डाले जायेंगे. पिछली दफा कांग्रेस को 120 सीटें हासिल हुई थीं और उसने अकेले सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी. पर इस बार कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं मिलने के कयास लगाये जा रहे हैं तो इसकी एकमात्र वजह यदियुरप्पा का भाजपा का चेहरा होना है.
पिछले चुनाव में यदियुरप्पा को 9.6 फीसदी वोट मिले थे. इस दफे भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है. ऐसे में भाजपा को पिछले चुनाव में मिले 26 फीसदी वोटों में अगर यदियुरप्पा की पार्टी को मिले वोट को जोड़ दिया जाये, तो इसका आंकड़ा 36 फीसदी पर आकर ठहरता. कांग्रेस को भी इतने वोट प्रतिशत मिले थे. भाजपा ने ईसाई या मुसलमान को टिकट नहीं दिया है. कांग्रेस इसे भाजपा की विषमतावादी राजनीति का उदाहरण बता रही है.
यही वह अंकगणित है जिस पर भाजपा खेमे में उत्साह है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैलियों में अगर यह दावा करते हैं कि भाजपा यहां अकेले सरकार बनाने जा रही है, तो इसका आधार वही अंकगणित हैं. पूरे कर्नाटक में यदियुरप्पा की छवि जमीन की नब्ज समझने वाले नेता की है. उन्होंने अपने जीवन के दो दशक संघ में रहकर राज्य के गांव-गांव का दौरा कर गुजारे हैं. पर पिछली सरकार के वक्त उन पर लगे घोटालों के धब्बे की याद कांग्रेस दिला रही है. यह भाजपा को परेशान करता है.
2013 से 18 तक सिद्दारमैया की सरकार के बारे में कहा जाता है कि इस सरकार ने शुरुआती चार साल में कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया. पर, बीते एक साल के दौरान मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सामाजिक समीकरणों के मद्देनजर ऐसे फैसले लिये जिसने भाजपा व जद (एस) के शिविर में खलबली पैदा कर दी. लेकिन तीनों शिविरों के योद्धा एक-दूसरे की रणनीतियों को फिजूल का बता रहे हैं. यह भी सच है कि राज्य में नेताओं की छवि पर लड़ाई लड़ी जा रही है.
बहरहाल, पूरे कर्नाटक में किसी भी एक राजनीतिक दल का प्रभाव नहीं है. इन पार्टियों का इलाकावार आधार होने से चुनावी प्रेक्षक जीत के बारे में कोई ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं. इसकी वजह अलग-अलग इलाके में मुद्दो, वोटर का मिजाज, पार्टियों के संगठनात्मक ढांचे का कमजोर या मजबूत होना है. तो आइए, कर्नाटक के पांच भौगोलिक क्षेत्रों में पिछले चुनावों में राजनीतिक दलों के प्रदर्शन के आधार पर इस चुनाव के हिसाब-किताब को समझने की कोशिश करते है-
30 जिलों वाले कर्नाटक को पांच हिस्से में बांटकर देखना दिलचस्प होगा. अगर इन पांच हिस्सों के सामाजिक समीकरणों, पार्टियों के प्रभाव आदि का जायजा लिया जाये, तो एक तसवीर उभर सकती है.
ये हैं हाइप्रोफाइल सीटें
चामुंडेश्वर व बादामी
मुख्यमंत्री सिद्दारमैया चामुंडेश्वरी के अलावा बादामी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा ने उनके दो जगहों से चुनाव लड़ने की आलोचना की है. उसने कहा है कि सिद्दारमैया ने दो सीटों से चुनाव लड़कर अपनी हार एक तरह से स्वीकार कर ली है. बादामी से जनार्दन रेड्डी के बेहद करीबी माने जाने वाले बी श्रीरामूलू खड़े हैं.
वरुणा
इस सीट पर दो बार जीत हासिल करने वाले सिद्दारमैया ने इस बार अपने बेटे यतींद्र सिद्दारमैया को चुनाव मैदान में उतारा है. भाजपा यहां से पूर्व मुख्यमंत्री यदियुरप्पा के बेटे को उतारने की तैयारी में थी. पर ऐन वक्त पर खुद यदियुरप्पा ने बेटे को मैदान में उतारने से मना कर दिया. अब यहां से थोडप्पा बासवराज को चुनाव मैदान में उतारा गया है.
शिकारीपुरा
इस सीट से भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार यदियुरप्पा ने सात बार जीत हासिल की है. इस बार भी उनकी जीत को लेकर दुविधा की स्थिति इसलिए नहीं है कि कांग्रेस ने यहां से स्थानीय नगरपालिका सदस्य गोनी मातलेश को चुनाव मैदान में उतारा है. इसके अलावा यहां से जद (एस) की ओर से एचटी बालीगर चुनाव मैदान में हैं. आम आदमी पार्टी ने भी यहां से उम्मीदवार दिया है.
चन्नापट्टना और रामनगरम
जद (एस) की ओर से इन दोनों सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री कुमार स्वामी. रामनगरम सीट पर वह पिछले तीन चुनावों से जीत हासिल करते रहे हैं. इस बार उन्होंने चन्नापट्टना से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कांग्रेस की ओर से एचए इकबाल हुसैन तो भाजपा की ओर से श्रीमती एच लीलावती को उतारा गया है. चन्नापट्टना में भाजपा ने कुमार स्वामी के खिलाफ सीपी योगेश्वर को खड़ा किया है.
हुबली धारवाड़ सेंट्रल
इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार भाजपा के उम्मीदवार है. कांग्रेस, जद (एस) और आम आदमी पार्टी के अलावा 18 निर्दलीय उम्मीदवारो से उनका मुकाबला है.
सोरब
इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगरप्पा के बेटे दो अलग-अलग पार्टियों से चुनाव मैदान में हैं. कुमार बंगरप्पा को भाजपा ने यहां से उम्मीदवार बनाया है तो जद (एस) ने उनके भाई मधु बंगरप्पा को चुनाव मैदान में उतारा है. कुमार बंगरप्पा कन्नड और तेलगू फिल्मों के जाने-माने एक्टर भी रहे हैं.
बेल्लारी सिटी और हरपनहल्ली
रेड्डी बंधुओं के कारण इस सीट का खास महत्व है. चर्चित जनार्दन रेड्डी के भाई सोम शेखर रेड्डी यहां से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में है. जबकि उनके भाई करुणाकर रेड्डी को हरपनहल्ली सीट से खड़ा किया गया है.
तटीय कर्नाटक
कोस्टल कर्नाटक का क्षेत्र भाजपा के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. अरब सागर के किनारे के इस हिस्से में भाजपा की मौजूदगी कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. इस इलाके में हिंदुत्व का उभार भाजपा के सरकार में जाने का रास्ता मुहैया करायेगा. इस इलाके में विधानसभा की कुल 19 सीटें हैं.
2004 में भाजपा को यहां 41.64 फीसदी वोट मिले थे, तो कांग्रेस को 37.65 फीसदी. जद (एस) को 11. 05 फीसदी. 2008 के चुनाव में भाजपा को 41.25 फीसदी, कांग्रेस को 36.8 और जद (एस) को 11.14 फीसदी वोट मिले थे. पर 2013 के चुनाव में भाजपा की वोट हिस्सेदारी गिरकर 27.62 फीसदी पर आ गयी और कांग्रेस की बढ़कर 37.23 फीसदी पर पहुंच गयी. जद (एस) के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ और उसे 15. 54 फीसदी वोट हासिल हो गये थे.
इस बार क्या बदलेगा
इस इलाके में भाजपा का प्रभाव अन्य दलों की तुलना में बेहतर माना जाता है. यदियुरप्पा फैक्टर काम कर गया,तो भाजपा को यहां से अच्छी-खासी संख्या में सीटें मिल सकती हैं. पुराने ट्रैक रिकार्ड को देखें, तो भाजपा को इस इलाके में जितना वोट मिलता रहा है, उसके मुकाबले कांग्रेस पीछे रही है.
बेंगलुरु क्षेत्र
बेंगलुरु क्षेत्र में विधानसभा की कुल 28 सीटें हैं. राज्य की राजधानी के नाते यहां की सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच जबरदस्त जोर-आजमाइश है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस इलाके में दो सभाएं हो चुकी हैं, तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के रोड शो हो चुके हैं. कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने बेंगलुरु पर फोकस किया है.
पिछले तीन चुनावों को देखें तो पता चलता है कि इस क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर रही है. 2004 में इन सीटों पर भाजपा को 13.89 फीसदी, कांग्रेस को 45. 44 फीसदी और जद (एस) को 13.79 फीसदी वोट मिले थे. 2008 के चुनाव में भाजपा को 41.6 फीसदी, कांग्रेस को 37.97 फीसदी और जद (एस) को 14.7 फीसदी वोट मिले थे. 2013 के चुनाव में कांग्रेस को 40.4 फीसदी, भाजपा को 32 फीसदी और जद (एस) को 19 फीसदी वोट मिले थे.
इस बार क्या बदलेगा
आमतौर पर माना जा रहा है कि शहरी क्षेत्र में भाजपा ने अपने प्रभाव का विस्तार किया है. उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के बीच पार्टी ने अपने वैचारिक आधार का विकास किया है. कांग्रेस भी शहरी गरीबों के लिए कई योजनाएं लेकर सामने आयी है. इस आधार पर उसे भाजपा के मुकाबले अधिक सीटें हासिल करने का भरोसा है.
पुराना मैसूर क्षेत्र
ओल्ड मैसूर रीजन में विधानसभा की 85 सीटें हैं. इस इलाके में जद (एस) का व्यापक असर रहा है. ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले पुराने मैसूर की सीटों पर पार्टी अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा की छवि एक सम्मानित नेता की मानी जाती है.
उनके बेटे कुमारस्वामी और उनके बेटे व भतीजे यहां की सीटों पर धुंआधार प्रचार अभियान चला चुके हैं. 2004 में यहां की सीटों पर पड़े कुल वोटों में से कांग्रेस के हिस्से 32.34 फीसदी, भाजपा को 16.88 फीसदी और जद (एस) को 35.1 फीसदी वोट हासिल हुए थे. 2008 में कांग्रेस को 34.62 फीसदी, भाजपा को 20.76 और जद (एस) को 31.85 फीसदी वोट मिले थे.
इस बार क्या बदलेगा
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर के आसार हैं. ऐसे में जद (एस) के वोट प्रतिशत में गिरावट हो सकती है. पर इसके बारे में किसी भी अनुमान पर देवेगौड़ा की छवि भारी पड़ सकती है.
मध्य कर्नाटक
सेंट्रल कर्नाटक में विधनसभा सीटों की कुल तादाद 36 है. इस इलाके में राज्रू की तीनों प्रमुख पार्टियों का आधार माना जाता है. लिहाजा, कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) ने इस इलाके में पूरी ताकत झोंक दी है. बीते तीन चुनावों के दौरान 2008 में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर कहा जा सकता है जब उसे 29.15 फीसदी वोट मिले थे.
हालांकि उस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भाजपा से ज्यादा था. तथ्यों पर गौर करें, तो 2004 के चुनाव में कांग्रेस को 35.66 फीसदी, भाजपा को 22.41 फीसदी और जद (एस) को 23.41 फीसदी वोट मिले थे. 2008 में कांग्रेस को 30.51, भाजपा को 29.15 और जद (एस) को 24.52 फीसदी वोट हासिल हुए थे. 2013 के चुनाव भाजपा यहां से बुरी तरह पिछड़ गयी थी. तब कांग्रेस को 33.34, भाजपा को 10.98 और जद (एस) को 26.08 फीसदी वोट हासित करने में कामयाबी मिली थी.
इस बार क्या बदलेगा
किसानों की आत्महत्या की घटनाओं से जाहिर है कि ग्रामीण अंचल में हालत खराब हैं. बारिश नहीं होने के चलते यहां किसानों की खेती चौपट हो गयी है. ऐसे में भाजपा के साथ जद (एस) की कोशिश कांग्रेस की बढ़त रोकने की होगी.
हैदराबाद
हैदराबाद कर्नाटक कांग्रेस के लिए बेहद अहमियत वाला इलाका है. जैसाकि नाम से ही जाहिर है यह आंध्रप्रदेश से सटा क्षेत्र है और यहां सीटों की संख्या 40 है. पर इसमें उत्तर कर्नाटक को जोड़ दें तो यह संख्या 56 की हो जाती है.
2013 में यहां कांग्रेस को 35 फीसदी वोट मिले थे और भाजपा को केवल 17 फीसदी. जद (एस) को 16 फीसदी. यहां यदियुरप्पा की पार्टी को करीब 17 फीसदी वोट हासिल हुए थे. ऐसे में अगर यदियुरप्पा को भाजपा को मिले वोटों को जोड़ दिया जाये तो यह कांग्रेस के बराबर पहुंच जाती है. कांग्रेस ने अपने इस गढ़ को बचाने के लिए राहुल गांधी समेत पूर्व मुख्यमंत्री मल्लिकार्जुन खडगे को चुनाव प्रचार में उतार दिया है.
इस बार क्या बदलेगा
सबसे बड़ा बदलाव यदियुरप्पा का भाजपा का चेहरा होना है. पिछले चुनाव पैटर्न को देखें तो यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच तीखे मुकाबले की जमीन इसलिए तैयार हो गयी है. पिछले चुनाव में यहां जद (एस) को 16 फीसदी वोट हासिल हुए थे. ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक आधार ने राज्य के इन पांच क्षेत्रों की अपनी खासियत रही है.
इस चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन क्षेत्रों के वोटर कैसी सरकार की नुमाइंदगी चाहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार नेहाल किदवई मौजूदा चुनावी तसवीर के बारे में कहते हैं: लिंगायत कार्ड के चलते दो से पांच प्रतिशत वोट स्विंग करता है, तो कांग्रेस या भाजपा में से किसी को भी 130 सीटें मिल सकती हैं. पर सवाल है कि यह स्विंग किसके पक्ष में होता है?
कांग्रेस की जीत होकर रहेगी
– सिद्दारमैया पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. भाजपा जो भी आरोप लगा रही है, उसे वह साबित नहीं कर पा रही है. वह केवल हवा में बात कर रही है.
– कांग्रेस सरकार ने काम करके दिखाया है कि वह गुड गर्वनेंस की हिमायती है. हमारी सरकार के खिलाफ एंटी इनकॉबेंसी नहीं है. गरीबों के लिए हमने काम किया. लोग इस सरकार से खुश हैं.
– भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है. पर दक्षिण भारत, खासकर कर्नाटक के लोग शिक्षित व संवेदनशील है. वे समझते हैं कि ध्रुवीकरण की राजनीति से उनका ही नुकसान होगा.
– भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं. हमारी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं. लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि खनिज माफिया रेड्डी बंधुओं को कौन पनाह दे रहा है. उनके भाई भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं.
– भाजपा अपराध और हिंसा के नाम पर बखेड़ा खड़ा कर रही है. वह कर्नाटक का अपमान कर रही है. बेंगलुरु के बारे में पीएम ने न जाने कैसी-कैसी बातें कह दीं. उन्होंने इसे क्राइम सिटी कर दिया. इस तरह आप सिलिकन वैली के बारे में क्या छवि बना रहे हैं?
(राजीव गौड़ा राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य है.)
भाजपा को सत्ता में आने से कौन रोकेगा
– हम चुनाव जीत रहे हैं और हमें सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता. लोग सत्ता में बदलाव का निर्णय कर चुके हैं.
– सिद्दारमैया सरकार हर मोरचे पर असफल साबित हुई है. गवर्नेंस नाम की चीज नहीं रही. अब तक 3800 किसान खुदकुशी कर चुके हैं. ऐसे में इस सरकार को सत्ता में बने रहने का हक है?
– तटीय और उत्तर कर्नाटक में हमारे 24 कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी. दो मामलों में आरोपियों को छोड़कर किसी हत्यारे को गिरफ्तार तक नहीं किया गया. हम मानते हैं कि ये हत्याएं सरकारी संरक्षण में हुई.
– कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार की पर्याय बन गयी है. कमीशनखोरी आज की सच्चाई बन गयी है. लोगों को इससे काफी नुकसान हुआ है. जनहित के काम नहीं हुए, बीते पांच साल में. यही नहीं, महिलाओं के प्रति बेंगलुरु सहित अलग-अलग हिस्सों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है.
– कांग्रेस की हुकूमत कर्नाटक अस्मिता के नाम पर खौफ पैदा कर रही है. इससे समाज में तनाव पैदा होगा. हम शांति और सौहार्द में विश्वास रखते हैं.
(अनवर मनीपाड़ी राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष व प्रदेश के भाजपा प्रवक्ता हैं.)
चुनाव प्रचार में बिहार-झारखंड का तड़का
संजय मयूख
कर्नाटक चुनाव प्रबंधन में बिहार और झारखंड के भाजपा कार्यकर्ताओं की जबरदस्त भागीदारी रही. वैसे पार्टी ने महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल सहित अन्य राज्यों से भी कार्यकर्ताओं को यहां चुनाव प्रबंधन में लगाया है.
भाजपा के वार रुम की जिम्मेदारी संभाल रहे बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य संजय मयूख कहते हैं: कर्नाटक में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां हिंदीभाषियों की संख्या निर्णायक है. बिहार सरकार मे मंत्री मंगल पांडेय, विधायक संजीव चौरसिया, संजय सरावगी, झारखंड से महेश वर्मा सहित बड़ी संख्या में लोगों को चुनाव प्रबंधन में लगाया गया है. संजीव चौरसिया देवनगिरी में लगाये गये हैं, तो विधायक संजय सरावगी बेंगलुरु में हिंदी पट्टी के वोटरों के बीच काम कर रहे हैं.
झारखंड से राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार को ओल्ड मैसूर रीजन की चार विधानसभा सीटों की जवाबदेही सौंपी गयी है. बताया जाता है कि 224 विधानसभा सीटों के लिए पार्टी ने 56 सांसदों के जिम्मे चार-चार सीटों पर चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी है.
हाइटेक कार्यालय में कोई पीछे नहीं : भाजपा के चुनाव कार्यालय को हाइटेक बनाया गया है. आइटी से जुड़े करीब दर्जन भर नौजवान सुबह से लेकर देर रात तक एक-एक विधानसभा सीटों का ब्योरा तैयार कर रहे हैं. वहां के सामाजिक आधार, मुद्दों, प्रतिद्वंद्वी पार्टियों की जानकारी अपटेड कर रहे हैं.
कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं है. हालांकि क्वींस रोड पर प्रदेश कांग्रेस का कार्यालय अपने पुराने अंदाज में ही दिखता है. पर मीडिया संयोजक नटराज गौड़ा कहते हैं: हमने भी आइटी सेल बनाया है और पूरी मुस्तैदी से हमारे लोग काम कर रहे हैं.
बिहार-झारखंड के हजारों वोटर : बेंगलुरु में रहने वाले बिहार-झारखंड और ओड़िशा के हजारों लोग यहां वोटर बन गये हैं. इन नये वोटरों में ज्यादातर आइटी सेक्टर में काम करने वाले लोग हैं. पटना में पटेल नगर के रहने वाले राहुल कहते हैं: जब हमें यहीं रहना है, तो क्यों नहीं हम अपने वोटिंग राइट का इस्तेमाल करें?
जदयू को दावनगिरी सीट पर भरोसा
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी धारा के सशक्त चेहरा रहे जेएच पटेल के पुत्र महिमा जे पटेल के जरिये जदयू का इस राज्य में खाता खुल सकता है. कर्नाटक चुनाव पर नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि जेएच पटेल की छवि का लाभ महिमा पटेल को मिल सकता है. मालूम हो कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में दावनगिरी विधानसभा क्षेत्र में महिमा पटेल के लिए चुनावी सभा की थी.

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