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लंबे समय तक खांसी टीबी तो नहीं?

टीबी या क्षयरोग ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस’ नामक बैक्टीरिया से होनेवाली एक घातक संक्रामक बीमारी है. यह रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं. यह इस रोग से पीड़ित लोगों के खांसने या छींकने से फैलता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट […]

टीबी या क्षयरोग ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस’ नामक बैक्टीरिया से होनेवाली एक घातक संक्रामक बीमारी है. यह रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं. यह इस रोग से पीड़ित लोगों के खांसने या छींकने से फैलता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व के 20 प्रतिशत टीबी मरीज भारत में हैं. यह एक चिंताजनक विषय है. इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के प्रतिवर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है. इस अंक में टीबी से संबंधित विशेष जानकारी दे रहे हैं देश के प्रतिष्ठित डॉक्टर.

टीबी
एक संक्रामक बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है. हालांकि सबसे ज्यादा यह फेफड़े को संक्रमित करती है. दरअसल, टीबी की बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बहुत जल्दी फैलती है. यह बीमारी छींकने, खांसने और थूकने से ज्यादातर फैलती है. ट्यूबरक्युलोसिस नामक बैक्टीरिया सांस के द्वारा शरीर के अंदर फेफड़ों तक पंहुचता है और शरीर में प्रवेश करते ही बैक्टीरिया की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगती है. यह बैक्टीरिया फेफड़ों को ही अधिक प्रभावित करता है, इसलिए आमतौर पर टीबी फेफड़ों में ज्यादा पायी जाती है. इसके अलावा टीबी किडनी, त्वचा, दिमाग, आंतों, हड्डियों में भी हो सकती है.

दूसरे अंगों में भी हो सकता है टीबी
टीबी रोग सिर्फ फेफड़ों में ही नहीं, बल्कि दूसरे अंगों में भी हो सकता है. यह हृदय, आंत, दिमाग आदि किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है. दूसरे अंगों में होनेवाले कुछ प्रमुख टीबी इस प्रकार हैं:

पेरीकार्डियल टीबी : हार्ट में टीबी होने पर हृदय में पानी भर जाता है. जब टीबी की दवाइयां चलती हैं तब यह पानी सूखने लगता है. सूखने के बाद हार्ट के सिकुड़ने में समस्या उत्पन्न हो सकती है. टीबी का पता इसीजी से चलता है. पेरीकार्डियल फ्लूड में एसिड फास्ट बैसिलस की जांच से इसका पता चलता है.

एब्डॉमिनल टीबी : यह मुख्यत: आंतों में होती है. इसका मुख्य लक्षण है लूज मोशन और जल्दी ठीक न होना. इस रोग में आंतों में रुकावट उत्पन्न हो जाती है. जांच बेरियम मील टेस्ट के जरिये होती है.

ब्रेन टीबी : इसकी जांच सीएसएफ या सिर के सीटी स्कैन से होती है. इनके अलावा ज्वाइंट टीबी, स्किन और लिंफ नोड टीबी भी महत्वपूर्ण हैं. इन रोगों का उपचार एंटी टय़ूबरक्युलर ट्रीटमेंट द्वारा होता है, जो डॉट्स के तहत 6-8 महीने तक चलता है, लेकिन रोगी की स्थिति के अनुसार अधिक समय भी लग सकता है.

डॉ दीपेंद्र रॉय

एमडी (बीएचयू), डीएनबी

असिस्टेंट प्रोफेसर

एम्स, पटना

टीबी है, तो डॉट्स है
खांसने से फैलता है टीबी
टीबी से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा छीकंने, खांसने और थूकने आदि से ट्यूबरक्यूलोसिस नामक बैक्टीरिया हवा में आ जाता है, और जो व्यक्ति टीबी ग्रस्त व्यक्ति के संपर्क में रहता है, उसके शरीर में सांस के साथ यह बैक्टीरिया प्रवेश कर लेता है. शरीर में पंहुचते ही बैक्टीरिया की संख्या में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिलती है. इसके संक्रमण से सबसे अधिक और सबसे पहले फेफड़े प्रभावित होते हैं, उसके बाद धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्से भी इस बैक्टीरिया की जद में आने लगते हैं. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी धीरे-धीरे इस बैक्टीरिया के संक्रमण से कम हो जाती है, जिससे यह बैक्टीरिया शरीर के अंदर हावी होने लगता है. नतीजतन यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि टीबी से ग्रस्त व्यक्ति के इस्तेमाल किये गये कपड़े छूने या फिर उनसे हाथ मिलाने या गले मिलने से भी यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर सकता है.

ज्यादा खांसी होने पर कराएं जांच
यदि इसका पूर्ण इलाज नहीं किया जाता तो शरीर में बैक्टीरिया दोबारा सक्रिय हो सकता है. इसलिए पूर्ण रूप से छुटाकारा पाने के लिए टीबी का पूरा कोर्स करना अनिवार्य है. यदि तीन सप्ताह से ज्यादा खांसी रहती है तो तुरंत जांच करानी चाहिए. इसकी जांच के लिए बलगम टेस्ट अनिवार्य है. यह टेस्ट एक दिन छोड़कर लगातार तीन बार किया जाता है. टेस्ट में टीबी की पुष्टि होने के बाद मरीज का इलाज शुरू किया जाता है.
अनियमित दवाई से होता है एमडीआर टीबी
टीबी की बीमारी के ट्रीटमेंट में यदि लापरवाही बरती जाये तो यह अत्याधिक घातक साबित हो सकता है. क्योंकि शरीर के अंदर सक्रिय बैक्टीरिया विभिन्न हिस्सों पर अपना प्रभाव छोड़ता है जिससे शरीर के विभिन्न अंग सही प्रकार से कार्य नहीं कर पाते. यदि टीबी का उपचार मरीज बीच में ही छोड़ देता है या फिर नियमित रूप से दवाई नहीं ले पाता तो ऐसे मरीजों को टीबी से छुटकारा नहीं मिल पाता. ऐसे मरीजों का दोबारा दूसरे तरीके से इलाज किया जाता है. क्योंकि एक समय के बाद बैक्टीरिया दवाई के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है. दोबारा ट्रीटमेंट कराने की अवस्था को एमडीआर टीबी भी कहा जाता है. एमडीआर टीबी काफी खतरनाक होती है, और ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति को भी एमडीआर टीबी ही होती है. इस टीबी का इलाज करने के लिए विशेष दवाईयों का सेवन मरीज को कराया जाता है, जिससे शरीर के अंदर बैक्टीरिया मर सकें.
क्या है डॉट्स चिकित्सा
डॉट्स टीबी रोगी को पूरी तरह से रोगमुक्त करने का सबसे प्रभावशाली तरीका है. यह विधि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्वस्तर पर टीबी के नियंत्रण के लिए अपनायी गयी एक विश्वसनीय विधि है, जिसमें रोगी को एक-दिन छोड़कर सप्ताह में तीन दिन दवाई का सेवन कराया जाता है. डॉट्स विधि के अंतर्गत चिकित्सा के तीन वर्ग है, प्रथम, द्वितीय और तृतीय प्रत्येक वर्ग में चिकित्सा के इंटेंसिव फेज और कंटिन्यूएशन फेज होते हैं. इंटेंसिव फेज के दौरान विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है तथा यह सुनिश्चित करना होता है कि रोगी दवाई की प्रत्येक खुराक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता, निजी चिकित्सा की सीधी देख-रेख में ले. कंटिन्यूएशन फेज में रोगी को हर सप्ताह दवाई की पहली खुराक स्वास्थ्य कार्यकता के सम्मुख लेनी चाहिए तथा अन्य दो खुराक रोगी को स्वयं लेना होता है. इंटेंसिव फेज के दौरान हर दूसरे दिन, सप्ताह में तीन बार दवाइयों का सेवन कराया जाता है. सप्ताह में तीन दिन की चिकित्सा उतनी प्रभावी है, जितनी प्रतिदिन की चिकित्सा. इंटेंसिव फेज की 22 खुराक और कंटीन्यूएशन फेज की 34 खुराक पूरी होने पर रोगी के बलगम के दो नमूने जांच के लिये लेने चाहिए, ताकि इंटेंसिव फेज की उसकी सभी खुराकें पूरी होने तक जांच के नतीजे उपलब्ध हो सकें. यदि बलगम संक्रमित नहीं है तो रोगी को कंटीन्यूएशन फेज की दवाइयां देना प्रारंभ कर देना चाहिए यदि बलगम में संक्रमण हो तो उपचार देने वाले चिकित्सक को रोगी के इंटेंसिव फेज की चिकित्सा अवधि को बढ़ा देनी चाहिए.

उपलब्ध
यह रोगी के खांसने और थूकने से फैलता है. सामान्य रूप से इसका प्रसार हवा द्वारा होता है. इसके कई लक्षण हो सकते हैं, जैसे – खांसी दो हफ्ते से अधिक होना. बुखार लगना, एंटीबायोटिक लेने पर असर नहीं होना, वजन घटना आदि. इसमें बुखार प्राय: शाम के समय ही आता है.
इसके लिए कई प्रकार के जांच होते हैं जैसे- बलगम की जांच : इसमें टीबी के बैक्टीरिया का पता चलता है.
एक्स-रे : इसमे टीबी का दाग दिखायी देता है.
इसका सबसे प्रभावी उपचार डॉट्स है. आरएनटीपीपी प्रोग्राम के तहत इसकी दवाएं रोगियों को मुफ्त दी जाती हैं. इसके तहत टीबी की जांच भी मुफ्त में की जाती है. इसकी दवाएं 6 महीने तक चलती हैं. इससे मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है.
अब टीबी का एक नया रूप लोगों में देखने को मिल रहा है. यह काफी खतरनाक होता है. इसे एमडीआरटीबी भी कहते हैं. इस टीबी से पीड़ित मरीजों पर टीबी की दवाइयों का असर नहीं होता है. इसका इलाज महंगा होता है. सरकार द्वारा इसके लिए भी एक योजना डॉट्स प्लस चलायी गयी है. इसमें भी रोगी के मुफ्त उपचार की सुविधा है. इसका इलाज 2 साल तक चलता है. इस रोग की प्रमुख वजह टीबी की दवाइयों का सही तरीके से सेवन नहीं करना है.
डॉ मनीष शंकर
असिस्टेंट प्रोफेसर
टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट, आइजीआइएमएस, पटना

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