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भ्रष्टाचार मुक्त-धर्मनिरपेक्ष देश प्राथमिकता

शाजिया इल्मी, ‘आप’ नेता आम आदमी पार्टी (आप) आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया और स्थापित राजनीतिक दलों से यह गुजारिश की कि वे भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जनलोकपाल का कानून बनाएं. लेकिन उन्होंने ऐसा करने के बजाय हमें राजनीति में आने की चुनौती दी. फलस्वरूप हम भ्रष्टाचार […]

शाजिया इल्मी, ‘आप’ नेता

आम आदमी पार्टी (आप) आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष किया और स्थापित राजनीतिक दलों से यह गुजारिश की कि वे भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए जनलोकपाल का कानून बनाएं. लेकिन उन्होंने ऐसा करने के बजाय हमें राजनीति में आने की चुनौती दी.

फलस्वरूप हम भ्रष्टाचार के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में आये. इसलिए 2014 के आम चुनाव में हमारा प्रमुख एजेंडा भ्रष्टाचार है. लेकिन लोकसभा के चुनावी समर में उतरते हुए हमें ऐसा महसूस हुआ कि भ्रष्टाचार की लड़ाई के साथ ही सांप्रदायिकता भी देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है.

क्योंकि भ्रष्टाचार के सवाल पर तो जनमत एकजुट है. चाहे कोई भी जाति हो, कोई भी संप्रदाय हो, वह भ्रष्टाचार से परेशान है, और इस परेशानी से निजात पाना चाहता है. लेकिन वोट बैंक की राजनीति करनेवाले जनता की सांप्रदायिक भावनाएं भड़का कर जनमत को अपने पक्ष में करने के हरसंभव हथकंडे अपनाते हैं और जैसे ही सांप्रदायिकता का सवाल आता है या जाति का प्रश्न उठता है, तो आम वोटर इनकी बातों में आ जाता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बजाय सांप्रदायिकता के या जातीय उन्माद के प्रभाव में आकर गलत लोगों के हाथों में सत्ता सौंप देता है. इसलिए हमने तय किया है कि भ्रष्टाचार के साथ ही सांप्रदायिकता के मुद्दे पर भी हम जनता को आगाह करेंगे और सांप्रदायिक ताकतों या जातिवादी ताकतों से किसी भी तरह का समझौता न करते हुए भ्रष्टाचार मुक्त शासन देंगे.

इसीलिए हम भाजपा और कांग्रेस दोनों की मिलीभगत के खिलाफ जनता को जागरूक कर रहे हैं. जनलोकपाल हमारा सबसे बड़ा मुद्दा है और आगे भी रहेगा. जिस तरह से सरकारी लोकपाल की चयन प्रक्रिया विवादों के दायरे में आ गयी है, उससे हमारी यह धारणा और मजबूत हुई है कि न तो कांग्रेस स्वतंत्र लोकपाल के गठन के पक्ष में हैं और न ही भाजपा. इसके साथ ही अकसर यह भी देखा गया है कि एक बार जब कोई सांसद या विधायक चुन लिया जाता है तो वह पार्टी आलाकमान या बड़े नेताओं के दबाव में काम करता है. एंटी डिफेक्शन लॉ, जिसे राजनीति के आया राम, गया राम को रोकने के लिए लाया गया था, आज इसी की बदौलत हमारे सांसद और विधायक अपने इलाके की जनता की समस्याओं पर अपनी राय रखने के बजाय पार्टी आलाकमान की राय को तरजीह देते हैं. इसलिए हमारा मानना है कि मनी बिल या पार्टी से जुड़े मसलों पर भले ही वे पार्टी आलाकमान की राय को तरजीह दें, लेकिन जैसे ही जनता के अधिकार की बात आये, अपने इलाके के लोगों के जल, जंगल, जमीन और रोजगार का सवाल आये, तो उन्हें एक जनप्रतिनिधि की हैसियत से अपनी बात रखनी चाहिए. तभी प्रतिनिधिक लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली ठीक तरीके से काम कर सकेगी.

महिला आरक्षण विधेयक लंबे समय से ठंडे बस्ते में हैं. इसके साथ संसद और विधानमंडलों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिये जाने की मांग को पुरजोर तरीके से रखेंगे. आम आदमी पार्टी की कोशिश है पार्टी के स्तर से अधिक से अधिक महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिले, ताकि सही अर्थो में महिलाओं का सशक्तीकरण हो. वैसा सशक्तीकरण नहीं जैसा आमतौर पर स्थापित राजनीतिक दलों में देखा जा रहा है, जहां महिलाओं को अधिकार दिये जाने के नाम पर परिवारवाद को बढ़ावा दिया जाता है. कार्यकर्ताओं को टिकट देने के बजाय परिवार के सदस्यों को तरजीह मिलती है. हम इस व्यवस्था को पूरी तरह से बदलेंगे, ताकि आम कार्यकर्ता आगे आ सके. बार-बार यह तर्क दिया जाता है कि आम महिला कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाये, तो वे चुनाव नहीं जीत पायेंगी. यह सब परिवारवाद की प्रथा को बनाने रखने का बहाना ही लगता है.

दिल्ली चुनाव में हमारी पार्टी ने अलग-अलग विधानसभाओं के लिए मैनिफेस्टो जारी कर स्वराज की दिशा में कदम बढ़ाया. आगे आम चुनाव है. इसलिए हमारे मैनिफेस्टो में राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनायी जायेगी. इसके साथ ही, प्रत्येक राज्य की समस्याओं एवं प्रत्येक संसदीय क्षेत्र की समस्याएं भी सामने लायी जायेंगी और उसी के अनुरूप हम समाधान सुझाने का प्रयास करेंगे. ग्रामीण इलाकों और शहरी इलाकों की समस्याओं को चिह्न्ति कर पार्टी अपने मैनिफेस्टो में जगह देगी. इस तरह हम जनता को अधिक से अधिक अधिकार देने के पक्षधर हैं. ताकि, अगला चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का जरिया बन कर व्यवस्था परिवर्तन का आधार बने.

(बातचीत: संतोष कुमार सिंह)

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