देश में कामकाजी महिलाओं की तादाद घट रही है और एकल आयवाले परिवारों की संख्या बढ़ रही है. एनएसएसओ के सर्वे के तुलनात्मक अध्ययन में यह बात सामने आयी है.
बढ़ती मंहगाई से पार पाने की खातिर हो या बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए, पति-पत्नी दोनों का कामकाजी होना अब आम बात है, महानगरों में खासतौर पर. इसके साथ ही कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ने की बात भी की जाती रही है. लेकिन हाल में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षणों के तुलनात्मक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि पिछले कुछ वर्षो में न सिर्फ कामकाजी महिलाओं की तादाद घटी है, देश में एकल आयवाले परिवारों की संख्या बढ़ भी रही है. पति-पत्नी में से कोई एक बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ रहा है. एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के ग्रामीण इलाकों में एकल आय वाले परिवारों की संख्या 31 फीसदी से बढ़ कर 41 प्रतिशत पहुंच गयी है.
वहीं ऐसे परिवारों की तादाद तीन से बढ़ कर पांच प्रतिशत हो गयी, जहां कोई भी सदस्य नौकरी नहीं करता है. यह आंकड़ा बढ़ती बेरोजगारी की ओर भी इशारा करता है. इसी तरह वर्ष 1993-94 में जहां 66 प्रतिशत परिवारों में एक से ज्यादा लोग कमाते थे, वहीं वर्ष 2011-12 में ऐसे परिवारों की तादाद घट कर 54 प्रतिशत हो गयी.
सर्वेक्षण के दौरान यह बात शहरी इलाकों में भी देखी गयी. शहरी इलाकों में गत वर्षो में एकल आय वाले परिवारों की संख्या 53 से बढ़ कर 55 प्रतिशत हो गयी, जबकि एक से ज्यादा कमाऊ सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 39 फीसदी से कम होकर 36 फीसदी पर आ गयी है.
संयुक्त परिवार टूटने को समाजशास्त्री इसके पीछे की एक बड़ी वजह के रूप में देखते हैं. 2004-05 में जहां 57 फीसदी महिलाएं घरों में बिना काम के बैठी रहती थीं, वहीं वर्ष 2009-10 तक ऐसी महिलाओं की संख्या 65 फीसदी के करीब पहुंच गयी. ये आंकड़े बताते हैं कि शहरों में महिलाओं को परिवार की जिम्मेदारियों के चलते नौकरी छोड़नी पड़ रही है. कार्यक्षेत्र और सड़क पर महिला सुरक्षा को लेकर चिंता भी इसकी एक वजह बतायी जा रही है.