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एक बड़ी लड़ाई अब भी जारी, स्वच्छ हवा-स्वच्छ पानी

स्वच्छता का शाब्दिक अर्थ लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार लाने और उसकी सुरक्षा के महत्वपूर्ण उपाय हैं. यह एक ऐसी प्रणाली है जो मानव मल के उपयुक्त निपटान, शौचालय के उचित उपयोग और खुले स्थानों पर मल त्याग की रोकथाम को बढ़ावा देती है. हमारे लिए शौचालय के बिना जीवन की कल्पना ही […]

स्वच्छता का शाब्दिक अर्थ लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार लाने और उसकी सुरक्षा के महत्वपूर्ण उपाय हैं. यह एक ऐसी प्रणाली है जो मानव मल के उपयुक्त निपटान, शौचालय के उचित उपयोग और खुले स्थानों पर मल त्याग की रोकथाम को बढ़ावा देती है. हमारे लिए शौचालय के बिना जीवन की कल्पना ही कठिन है, परंतु दुनिया में 2.6 बिलियन लोगों के लिए यह एक वास्तविकता है.

दुनिया की आबादी के 40 प्रतिशत लोगों के पास अब भी पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं नहीं हैं. कई बार यह देखा गया है कि स्वच्छता सुविधाओं की कमी जीवन के लिए घातक कुछ रोगों का मुख्य कारण है. अत: स्वच्छता सुविधाओं को आम तौर पर मानव जीवन को स्थायी बनाने के मुख्य तत्व के रूप में लिया जाता है.

दुनिया भर में स्वच्छता को लेकर गोलबंदी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, स्वच्छता आजादी से महत्वपूर्ण है इस बात से इसके सापेक्ष महत्व को समझा जा सकता है. भारत में स्वच्छता सुविधाओं में सुधार लाने तथा स्वच्छ पेय जल सभी के लिए उपलब्ध कराने के लिए एक प्रशंसनीय कार्य किया गया है.

भारत में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि अस्वच्छ परिवेश कई रोगों के फैलाव के लिए आधार बनाता है जो स्वच्छता के रूप में लोगों के कल्याण के साथ गहरा संबंध रखती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा देखा गया है कि प्रदूषित पानी 80 प्रतिशत रोगों का मूल कारण है, जो अपर्याप्त स्वच्छता और सीवेज निपटान विधियों का परिणाम है. आज भी बड़ी संख्या में लोग खुले स्थान पर मल त्याग करते हुए जलाशयों और पानी के अन्य खुले प्राकृतिक संसाधनों को संदूषित करते हैं. इससे प्रदिर्शत होता है कि लोगों को स्वच्छता के महत्व पर जानकारी देने और शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में स्वच्छता पूर्ण विधियों के उपयोग की शिक्षा देने की आवश्यकता है. अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं और जागरूकता की कमी के कारण अनेक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं जैसे पेट में कीड़े. इस रोग की दर आम तौर पर अर्धशहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कम आय वर्ग में बहुत अधिक होती है.

भारत में केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा अब सक्रियता बढ़ाई गई है और इस दिशा में स्वच्छता मिलेनियम विकास लक्ष्य (एमडीजी) को पूरा करने के लिए निधिकरण कई गुना किया गया है पानी की आपूर्ति और स्वच्छता भारत के संविधान के तहत और 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों, के तहत राज्य का दायित्व है, राज्यों द्वारा यह दायित्व और अधिकार पंचायती राज संस्थानों (पीआरआइ) और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को दिए गए हैं.

निर्मल भारत को लेकर संकल्पना और कार्यनीति
पेय जल और स्वच्छता मंत्रलय ने 2012 से 2022 के दौरान ग्रामीण स्वच्छता और सफाई कार्यनीति तैयार की है. इस कार्यनीति का मुख्य प्रयोजन निर्मल भारत की संकल्पना को साकार करने की रूपरेखा प्रदान करना और एक ऐसा परिवेश बनाना है जो स्वच्छ तथा स्वास्थ्यकर है.

निर्मल भारत एक स्वच्छ और स्वस्थ राष्ट्र का सपना है जो हमारे नागरिकों के कल्याण का प्रयास करता है और इसमें योगदान देता है. इस संकल्पना में एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की गई है जहां खुले स्थान पर मल त्याग की पारंपरिक प्रथा को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए, प्रत्येक मानव को सम्मान दिया जाए और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जाए. ग्रामीण क्षेत्रों में इसे प्राप्त करने के लिए विभाग ने आने वाले वर्षों के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निम्नलिखित कार्यनीति बनाई हैं.

खुले स्थान पर मल त्याग की पारंपरिक आदत को पूरी तरह समाप्त करना और इसे इतिहास की घटना बना देना.

ठोस और तरल अपशिष्ट के सुरिक्षत प्रबंधन के लिए प्रणालियों को प्रचालित करना.

उन्नत स्वच्छता व्यवहारों को अपनाने के लिए बढ़ावा देना.

सुभेद्य समूहों जैसे महिलाओं, बच्चों, वृद्ध और विकलांग व्यक्तियों पर विशेष ध्यान सहित इसकी पहुंच में असमानता को संबोधित करना.

सुनिश्चित करना कि प्रदाता के पास इस स्तर पर सेवाओं की प्रदायगी की क्षमता तथा संसाधन हैं.

ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सुभेद्य वर्गों से संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र एजेंसियों में सहयोग को उद्दीपित करना और समर्थ बनाना.

कार्यनीति के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए व्यापार, शिक्षा और स्वैच्छिक क्षेत्र के भागीदारों के साथ मिलकर कार्य करना.

लक्ष्य

संपूर्ण स्वच्छता पर्यावरण का सृजन – 2017 तक: एक स्वच्छ परिवेश की प्राप्ति और खुले स्थान पर मल त्याग की समाप्ति, जहां मानव मल अपशिष्ट का सुरिक्षत रूप से प्रबंधन और निबटान किया जाता है.

उन्नत स्वच्छता प्रथाएं अपनाना – 2020 तक : ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों को, खास तौर पर बच्चों और देखभाल कर्ताओं द्वारा हर समय सुरिक्षत स्वच्छता प्रथाएं अपनाना.

ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन – 2022 तक : ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन इस प्रकार करना कि गांव का परिवेश हर समय स्वच्छ बना रहे.

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