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अलग करने की ख्वाहिश

मिसाल:हौसले ने मुकाम तक पहुंचाया हम हमेशा से ही कुछ अलग करना चाहते थे. जिंदगी में एक नया रास्ता बनाना चाहते थे. यही कुछ अलग करने की चाह ले गयी 22 साल की छोटी सी उम्र में जुड़वां बहनों ताशी और नुंगशी मलिक को ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर. ताशी और नुंगशी मलिक दुनिया की […]

मिसाल:हौसले ने मुकाम तक पहुंचाया

हम हमेशा से ही कुछ अलग करना चाहते थे. जिंदगी में एक नया रास्ता बनाना चाहते थे. यही कुछ अलग करने की चाह ले गयी 22 साल की छोटी सी उम्र में जुड़वां बहनों ताशी और नुंगशी मलिक को ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर. ताशी और नुंगशी मलिक दुनिया की पहली जुड़वां बहनें हैं, जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की. यह कारनामा उन्होंने 19 मई 2013 को किया था.

साल 2009 में स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद कुछ अलग और ‘एडवेंचरस’ करने की ख्वाहिश थी जिसकी वजह से मलिक बहनों ने पर्वतारोहण को चुना. इस बारे में नुंगशी मलिक कहती हैं, लोग वही काम करते हैं जो हो चुका है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उसी में सफलता है. लेकिन हमारा मकसद है जिंदगी में जो अलग और मुख्तलिफ हो, वो किया जाये. इसलिए लोग हमें ‘एलियंस’ भी कहते हैं. पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लेने के बाद साल 2010 से मई 2013 के बीच भारत और विदेश की कुछ चोटियों पर चढ़ने के बाद किसी भी और पर्वतारोही की ही तरह ताशी और नुंगशी ने भी नजरें टिका दीं एवरेस्ट पर.

जोखिम भरा काम

ताशी कहती हैं, 2010 में पहली बार पहाड़ की चोटी पर कदम रखना बहुत अलग अनुभव था. उसके बाद से ही मैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का सपना देखने लगी. मुङो सोते वक्त, खाते वक्त, हर वक्त एवरेस्ट ही दिखाई देता था.

ताशी और नुंगशी का एक और सपना सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करना है. पिछले दो सालों में उन्होंने अफ्रीका की किलिमंजारो, यूरोप की एलब्रुस और जनवरी 2014 में दक्षिण अमरीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकांक्गुआ की चढ़ाई की. पर्वतारोहण काफी जोखिम भरा काम है. मलिक बहनों के अकांक्गुआ अभियान के दौरान दो पर्वतारोहियों की मौत हो गयी थी.

ताशी कहती हैं, उस हादसे के बारे में बहुत बुरा लगा था. चढ़ाई के दौरान ऐसे हादसों को देखना बहुत मुश्किल होता है. डर लगता है कई बार क्योंकि आखिर हम इनसान हैं. आपको ये मानना पड़ता है कि ऐसा हादसा आपके साथ भी हो सकता है. लेकिन जरूरी है कि हम अपने जुनून को कायम रखें. लेकिन वो कहते हैं न कि डर के आगे जीत है. तो बस फोकस्ड रह कर आगे बढ़ना होता है.

बेटियों को दें मौका

ताशी और नुंगशी मलिक के पिता वीरेंद्र मलिक, सेना के पूर्व अधिकारी हैं और मूल रूप से हरियाणा के हैं जबकि उनकी मां मूल रूप से नेपाल की हैं. दोनों बहनों का कहना है कि उनके सपने को साकार करने में उनके मांबाप का सबसे बड़ा योगदान है. ताशी कहती हैं, हरियाणा में आज भी लड़कियों पर बहुत नियंत्रण रखा जाता है. मैं यही कहूंगी कि लोग अपनी बेटियों को समझेऔर उन्हें एक मौका दें क्योंकि वो एक मौका ही काफी होता है ख़ुद को साबित करने के लिए.

नुंगशी कहती हैं, हमारे काम पर लोगों की नजर जा रही है. कितने मांबापों ने हमें आ कर कहा कि हम चाहते हैं कि हमारी लड़कियां भी तुम दोनों की तरह सपने देखें और उन्हें हासिल करें. नुंगशी आगे कहती हैं, जिस तरह से हमारे मांबाप ने हमारे सपने के लिए सब कुछ त्याग दिया, वो उन मांबाप के लिए उदाहरण हैं जो सोचते हैं कि उनकी बच्चियां कुछ नहीं कर सकतीं. हमारा यही कहना है कि अपनी लड़कियों को घर में बंद कर, पिंजरे में कैद करके नहीं रखिए, उन्हें उड़ने दीजिए.

अंदर की आवाज ही राह दिखाती है

किसी भी अभियान पर जाने से पहले शारीरिक और मानिसक तौर पर काफी तैयारी की जरूरत होती है. नुंगशी कहती हैं, चढ़ाई करते वक्त मैं संस्कृत के कई श्लोक पढ़ती हूं और ईसाई धर्म की प्रार्थना भी करती हूं. लेकिन सबसे ज्यादा आपके अंदर की आवाज ही आपको राह दिखाती है कि आपको अपना सपना पूरा करना है. साथ ही जरूरी होता है खास तरह का खानपान, वर्जिश और फिटनेस ट्रेनिंग. प्रोटीन और काबरेहाइड्रेट युक्त डाइट भी लेनी होती है.

(बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार)

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