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जहर खा रहा हर भारतीय!

वर्ष 1966-67 में समूचे देश में सूखे की स्थिति व्याप्त हो गयी थी. उस समय देश की 48 करोड़ आबादी को खिलाने के लिए हमारे पास समुचित खाद्यान्न उपलब्ध नहीं था. ऐसी स्थिति में विदेशों से खाद्यात्र मंगाने की मजबूरी बन रही थी. यह परंपरा अधिक दिनों तक किसी भी स्थिति में चलनेवाली नहीं थी. […]

वर्ष 1966-67 में समूचे देश में सूखे की स्थिति व्याप्त हो गयी थी. उस समय देश की 48 करोड़ आबादी को खिलाने के लिए हमारे पास समुचित खाद्यान्न उपलब्ध नहीं था.

ऐसी स्थिति में विदेशों से खाद्यात्र मंगाने की मजबूरी बन रही थी. यह परंपरा अधिक दिनों तक किसी भी स्थिति में चलनेवाली नहीं थी. इसलिए खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए उसके उत्पादन में वृद्धि करना अनिवार्य आवश्यकता बन गयी थी.

तब देश के कृषि वैज्ञानिकों के सार्थक सोच तथा अनवरत अनुसंधान ने हरित क्रांति को जन्म दिया. यह क्रमबद्ध रूप से अरसे तक चलता रहा, जिसके कारण आज भारत खाद्यान्नों को अन्य देशों को निर्यात करने की स्थिति में पहुंच गया है.

मदन बिहारी शरणदीप की विस्तृत खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें :

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