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शक्ति को सलाम : सबकुछ खोकर भी बनीं उम्मीद की किरण

हैदराबाद स्थित ‘प्रज्वला’ नामक एनजीओ चलानेवाली सुनीता कृष्णन को सरकार ने वर्ष-2016 में पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया है. सुनीता का यह सम्मान ह्यूमन ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में योगदानों के लिए दिया गया है. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में करीब 30 लाख सेक्स वर्कर हैं, जिनमें से आधे से अधिक को […]

हैदराबाद स्थित ‘प्रज्वला’ नामक एनजीओ चलानेवाली सुनीता कृष्णन को सरकार ने वर्ष-2016 में पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया है. सुनीता का यह सम्मान ह्यूमन ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में योगदानों के लिए दिया गया है. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में करीब 30 लाख सेक्स वर्कर हैं, जिनमें से आधे से अधिक को काफी कम उम्र में ही इस कार्य में जबरन ढकेल दिया गया था. आंध्र प्रदेश देश का सबसे बड़ा सेक्स वर्कर सप्लायर राज्य है. कारण वहां की गरीबी, अशिक्षा और रूढ़िवादी समाज है.
सामाजिक कार्यों के प्रति सुनीता का रूझान बचपन से ही था. स्कूल के दिनों में दोस्तों के साथ मिल कर ‘सद्भावना कैंपेन’ की शुरुआत की थी. कैंपेन का उद्देश्य बेंग्लुरु या उसके आस-पास के इलाके में स्थित स्लम क्षेत्रों के लोगों में शिक्षा व जागरूकता का प्रसार करना था. समाज के कुछ तथाकथित उच्चवर्ग के लोगों को सुनीता का यह अभियान रास नहीं आया. इसका खामियाजा सुनीता को अपनी अस्मत लुटा कर चुकानी पड़ी. मात्र 15 वर्ष की उम्र में आठ लोगों द्वारा गैंगरेप की शिकार हुई. एक हमले में बायें कान की सुनने की क्षमता भी चली गयी.
बावजूद सुनीता ने हार नहीं मानी व काम जारी रखा. पर्यावरण विज्ञान में डिग्री हासिल करने के बावजूद सुनीता ने पीएचडी का विषय सेक्स वर्करों के जीवन को चुना. एक बार फिर उन्हें इस साहसिक कार्य की कीमत चुकानी पड़ी. पैरेंट्स ने उनके इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और वे उनसे अलग हो गये. वर्ष 1996 में सुनीता ने ‘प्रज्वला’ संस्था की स्थापना करके रेड लाइट एरिया के पांच बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया. बच्चों की यह संख्या आज बढ़ कर 5,000 हो गयी है. सुनीता अपनी संस्था के तहत सेक्स वर्कर व उनके बच्चों के पुनर्वास के उद्देश्य से प्रिंटिंग और फर्निशिंग के कार्य का प्रशिक्षण देती हैं. इसके अलावा, उन्होंने इन मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से पति राजेश के साथ मिल कर सेक्स स्लेवरी विषय पर ‘टचड्राइवर’ नामक एक फिल्म का निर्माण भी किया है, जिसे आलोचकों की प्रशंसा मिली है. अपना सब कुछ खो देनेवाली सुनीता कृष्णन वर्तमान में सेक्स वर्करों के लिए उम्मीद की सबसे बड़ी किरण बन चुकी हैं.
रचना िप्रयदर्शिनी
मां दुर्गा के आगमन को लेकर इन दिनों हर तरफ उत्साह का माहौल है. दुर्गा को शक्ति स्वरूपा भी कहा गया है. भले हम उन्हें 108 नामों में से किसी नाम से पुकारें, उनके किसी भी रूप का पूजन-वंदन करें, पर वे हमें सभी विपरीत हालात से लड़ने और विजयी होने का आशीर्वाद देती हैं. आज हम आपको तीन ऐसी साहसी व शक्ति स्वरूपा स्त्रियों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने तमाम कमियों व कठिनाइयों के बावजूद वह कर दिखाया, जिसकी हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते.
खुद जल कर दूसरों का जीवन कर रहीं रोशन
पिछले दिनों लंदन फैशन वीक में लक्ष्मी अग्रवाल ने जिस आत्मविश्वास के साथ रैंपवॉक किया, उसे देख कर सब अवाक रह गये. आमतौर से फैशन परेड खूबसूरत चेहरे और कीमती एसेसरीज के प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं, पर इस बार इसे एसिड अटैक सर्वाइवर को समर्पित किया गया था.
12 वर्ष पहले 2005 में दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में लक्ष्मी पर तेजाबी हमला हुआ. हमलावर लक्ष्मी से दोगुनी उम्र का था. वह लक्ष्मी की फ्रेंड का बड़ा भाई था और महीनों से शादी करने का दबाव डाल रहा था. जब लक्ष्मी ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया, तो गुस्से में आकर उसने राह चलती लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया. उसका पूरा चेहरा और शरीर के अन्य हिस्से गंभीर रूप से जल गये. लक्ष्मी तब मात्र 15 वर्ष की थी. सात बार गंभीर स्किन ऑपरेशन व ट्रीटमेंट से गुजरने के बाद उसे वर्तमान चेहरा मिला. उसने हार नहीं मानी. आगे पूरी जिंदगी पड़ी थी. तय किया कि जो उसके साथ हुआ है, वैसा किसी और के साथ नहीं होने देगी. उसे पता चला कि तेजाबी हमले के सबसे ज्यादा मामले भारत के नाम ही दर्ज हैं और इससे प्रभावित होनेवाली ज्यादातर महिलाओं की उम्र 14 से 35 वर्ष के बीच है. लक्ष्मी ने इस अपराध के खिलाफ मुहिम छेड़ने की ठान ली. उसकी कोशिश रंग लायी. वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी कर तेजाब की खुली बिक्री पर रोक लगा दी. नियम कड़े कर दिये गये. लक्ष्मी को इस अभियान के लिए यूएस की प्रथम महिला मिशेल ओबामा द्वारा भी पुरस्कृत किया गया.
फिलहाल वह तेजाबी हमले से पीड़िताओं के मामले की शीघ्र सुनवाई के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं. साथ ही, ऐसी महिलाओं के पुनर्वास के लिए ‘छांव फाउंडेशन’ एनजीओ चला रही हैं. जनवरी, 2004 में लक्ष्मी को सामाजिक कार्यकर्ता आलोक दीक्षित के रूप में जीवनसाथी मिला. लक्ष्मी के अनुसार उन्हें अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी पिछले वर्ष 25 मार्च को मिली, जब उनकी बेटी पीहू उनके जीवन में आयी. आज लक्ष्मी न केवल अपनी बीती जिंदगी को भूलने में सफल हुई हैं, बल्कि एसिड अटैक के खिलाफ अपनी मुहिम को भी आगे ले जाने में सफल हुई हैं.
मजबूत इरादे से एवरेस्ट को भी झुकाया
अरुणिमा सिन्हा
अरुणिमा पहली भारतीय विकलांग महिला हैं, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट पर विजयी पताका लहराया है. अपने बुलंद हौसले और जज्बे से साबित कर दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं. बस इरादा मजबूत होना चाहिए. 12 अप्रैल, 2011 को अरुणिमा लखनऊ से दिल्ली जा रही थी.
बीच रास्ते में कुछ अपराधियों ने छीना-झपटी के दौरान बरेली के निकट पद्मावती एक्सप्रेस से उन्हें बाहर फेंक दिया. इस दुघर्टना में अरुणिमा को अपना बायां पैर गंवाना पड़ा. इसके बाद भी उन्होंने अभूतपूर्व जीवटता का परिचय देते हुए 21 मई, 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह करके एक नया इतिहास रच दिया.
इससे पूर्व वह विश्व के पांच सबसे कठिन माने जानेवाले पर्वतों को भी लांघ चुकी हैं, जिनमें अफ्रीका का किलिमंजारो, यूरोप का एलब्रूस, ऑस्ट्रेलिया का कोशियूज्को, अर्जेंटीना का अंकोकागुआ और इंडोनेशिया का कार्टेंस्ज पिरामिड शामिल हैं. ट्रेन दुर्घटना से पूर्व कई राष्ट्रीय स्तर की बॉलीबाल और फुटबॉल प्रतियोगिताएं भी वे जीत चुकी हैं. अरुणिमा उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की निवासी हैं और वर्ष 2012 से सीआइएसएफ में हेड कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं.

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