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दूसरी फील्ड के लोगों से मिलना भी है जरूरी

।।दक्षा वैदकर।।पिछले दिनों एक दोस्त के यहां बैठे हुए मेरा ध्यान टेबल पर रखे एक आमंत्रण पत्र पर गया. यह किसी के होटल के उद्घाटन कार्यक्रम का कार्ड था, जो उसी दिन शाम को होना था. मैंने मित्र से पूछा, तो शाम को तुम यहां जानेवाले हो? उसने जवाब दिया, ‘अरे नहीं. वहां जा कर […]

।।दक्षा वैदकर।।
पिछले दिनों एक दोस्त के यहां बैठे हुए मेरा ध्यान टेबल पर रखे एक आमंत्रण पत्र पर गया. यह किसी के होटल के उद्घाटन कार्यक्रम का कार्ड था, जो उसी दिन शाम को होना था. मैंने मित्र से पूछा, तो शाम को तुम यहां जानेवाले हो? उसने जवाब दिया, ‘अरे नहीं. वहां जा कर मैं भला क्या करूंगा. वहां मेरी फील्ड का कोई नहीं होगा. सारे लोग होटल इंडस्ट्री के होंगे.

मैं तो बोर हो जाऊंगा.’ मित्र को बहुत देर समझाने के बाद आखिरकार वह कार्यक्रम में कुछ देर के लिए जाने को राजी हो गया. उसने यह भी कह दिया कि सामनेवाले ने कार्ड भेजा है, तो उसे बुरा न लगे इसलिए सिर्फ शक्ल दिखाने जा रहा हूं. रात को उसने फोन कर बताया कि पार्टी में जाना उसके लिये बहुत फायदेमंद रहा. वहां उसकी पहचान एक 70 वर्षीय बुजुर्ग से हुई, जिनके पास पुराने गीतों का कलेक्शन है और वो मुङो देनेवाले हैं. इसके अलावा मेरी मुलाकात एक अन्य होटल के मालिक से हुई, जो कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा है. उसके कार्यो को सुन कर तो मुङो भी उन संस्थाओं से जुड़ने की इच्छा हो रही है. मैं भी उस व्यक्ति के साथ जा कर अब जरूरतमंदों के लिए कुछ करूंगा.

यह किस्सा सुनने और दिखने में बहुत आम है, लेकिन इसके पीछे सीख बहुत बड़ी छिपी है. दरअसल हम में से ऐसे कई लोग हैं, जो केवल अपनी फील्ड के लोगों के साथ ही उठते-बैठते हैं. दूसरी फील्ड के लोगों से मिलना हमें बोर करता है. हमें लगता है कि हम उन लोगों से क्या बातें करेंगे? लेकिन यही सोच हमें पीछे की ओर धकेलती है. सच तो यह है कि हमें दूसरी फील्ड के लोगों से ज्यादा-से-ज्यादा मिलना चाहिए. यह हमारे सोच के दायरे को बढ़ायेगा. हमें पता चलेगा कि दूसरी फील्ड के लोग क्या सोचते है? उनका किसी चीज को देखने का नजरिया क्या है? अगर हम अपनी ही फील्ड के लोगों से मिलेंगे, तो हमारी मानसिकता संकुचित हो जायेगी. यदि हमें बड़े पैमाने पर सोचना सीखना है, तो हमें नये दोस्त बनाने होंगे, नये संगठनों से जुड़ना होगा, हमें अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना होगा. जब हम अलग-अलग फील्ड के लोगों से मिलते हैं, तो जीवन का आनंद बढ़ जाता है और हमारी सोच व्यापक होती है.

बात पते कीः
-रोज अपने ही क्षेत्र को लोगों से मिलना, दिमाग को रोज एक ही खाना देने जैसा है. दिमाग को कुछ नया देना है, तो नये लोगों से मिलना बहुत जरूरी है.
-ऐसे दोस्त चुनें, जिनके विचार आपसे अलग हों. जो छोटी, महत्वहीन बातों से ऊपर उठ सकते हों. जो आपको कपड़ों, घर के सामान पर बात न करें.

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