कौशलेंद्र रमण
मेरे एक मित्र हैं. उन्हें समय को लेकर हमेशा शिकायत रहती थी. कहते थे कि अपने लिए तो टाइम मिलता ही नहीं. दफ्तर भी बहुत ही बेतरतीब ढंग से जाते थे. पूछने पर कहने लगते – क्या करें, समय ही नहीं मिला. इसके बाद दफ्तर आने से पहले उन्होंने क्या-क्या किया, बताने लगते थे. मित्र के सहकर्मी भी उनकी बातों को मजे लेकर सुनते, लेकिन उन्हें यह कोई नहीं बताता कि आपकी बातों से लगता है कि आपने सिर्फ समय को बरबाद किया है. उसका उपयोग किया होता तो आपके पास भी समय की कमी नहीं होती. एक दिन उनके दफ्तर में एक नया सहयोगी आया.
उसने मेरे मित्र को टोकते हुए कहा – दफ्तर ढंग से आयेंगे, तो आपको काम में ज्यादा मन लगेगा. मित्र पहले थोड़ा नाराज हुए, फिर उसे भी अपनी व्यस्त दिनचर्या की कहानी सुना डाली. मित्र की बातों को बिना टोके सुनने के बाद उनके नये सहयोगी ने एकदम शांत मन से कहा – आप जिसे अपनी व्यस्तता बता रहे हैं, दरअसल वह सारे काम समय की बरबादी हैं. इतना बोलने के बाद नये सहयोगी ने उन्हें वे सारे काम गिना दिये, जिन्हें हमारे मित्र नहीं करते, तो उनका कोई नुकसान नहीं होता और उनके पास समय भी पर्याप्त होता.
नये सहयोगी की बात सुनने के बाद मेरे मित्र एकदम चुप हो गये. उस दिन दफ्तर में उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला. दूसरे दिन दफ्तर में उनका बदला हुआ रंग-ढंग सबको हैरान कर रहा था. पुराने सहयोगियों ने उन्हें छेड़ने की कोशिश की, लेकिन मित्र सिर्फ मुस्कुराते रहे. काम खत्म करने के बाद उन्होंने पूरे दफ्तर को चाय पिलायी और सबके सामने अपने नये सहयोगी का शुक्रिया अदा किया. मेरे मित्र ने कहा – मुझे समझ में आ गया कि किसी के पास इतना कम समय नहीं हो सकता है कि वह अपने आपको समय न दे सके. ऐसा कहनेवाला अपने आपको धोखा दे रहा है. उस दिन बातों-बातों में मेरे मित्र ने बहुत बड़ी बात कह दी.
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