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स्टेम सेल से बनेंगे अंडे और स्पर्म

प्रजनन की सहायक तकनीक से जन्म लेंगे बच्चे विज्ञान तकनीक की विकास यात्रा लोगों के सामने ऐसे उदाहरण पेश करेगी, जो प्रकृति के साथ कदमताल करती दिखेगी. नयी तकनीक भारत वर्ष 2025 तक भारत में प्रजनन का भविष्य दिखायेगी. आज प्रजनन की जितनी भी तकनीक मौजूद हैं, वे गिनी हुई हैं. वैज्ञानिक प्रजनन तकनीक पर […]

प्रजनन की सहायक तकनीक से जन्म लेंगे बच्चे

विज्ञान तकनीक की विकास यात्रा लोगों के सामने ऐसे उदाहरण पेश करेगी, जो प्रकृति के साथ कदमताल करती दिखेगी. नयी तकनीक भारत वर्ष 2025 तक भारत में प्रजनन का भविष्य दिखायेगी. आज प्रजनन की जितनी भी तकनीक मौजूद हैं, वे गिनी हुई हैं.

वैज्ञानिक प्रजनन तकनीक पर कड़ी मेहनत और तत्परता से काम कर रहे हैं. कैसा होगा प्रजनन का भविष्य? इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं. आनेवाले समय में ऐसी तकनीक ही हमारा भविष्य होंगे.

पैंतीस वर्ष पूर्व प्रजनन की सहायक तकनीक ‘टेस्ट ट्यूब’ के साथ नयी-नयी तकनीकों का ईजाद हुआ. कई तकनीक होने के बावजूद वैज्ञानिक प्रजनन को बेहद सरल करने के लिए अन्य तकनीक खोज रहे हैं.

इसका मकसद प्रजनन के सीमित विकल्पों को बढ़ाना है. सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन के अध्यक्ष हृषिकेश पाई के मुताबिक, जब आप किसी तीसरे की प्रजनन क्षमता पर काम कर रहे होते हैं, तो यह बड़ी चुनौती होती है.

ऐसे में स्पर्म डोनेशन या अंडे का डोनेशन अंतिम विकल्प होता है. कई बार लोगों के लिए यह असंतुष्टि का मुद्दा भी होता है. ऐसे में तकनीक के विकल्प ढूंढ़ने जरूरी हैं. जापान ने पेश किये उदाहरण: जापानी वैज्ञानिक कातुशिको हयासी ने प्रजनन तकनीक के विकास पर अभूतपूर्व काम किया. अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि चूहे की त्वचा से मौलिक जर्म (प्रिमार्डियल जर्म) बन सकता है. फिर इस जर्म की मदद से अंडा या स्पर्म बना सकते हैं. दुनिया में इस विषय पर अध्ययन और खोज जारी है कि कैसे फिमेल सेल्स को स्पर्म में बदला जाये.

पाई कहते हैं कि 10 साल में ऐसा हो पायेगा, जब स्टेम सेल की मदद से ह्यूमन स्पर्म बनेंगे. अंडे विकसित करने में वक्त लगेगा. जापानी वैज्ञानिकों की एक अन्य कृति से अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे वे प्रजनन के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने ग्लास के चैंबर में बकरी के भ्रूण को दो सप्ताह तक जीवित रखा.

आनेवाले वर्षो में दिखेगा बदलाव : आनेवाले पांच से 10 वर्षो में प्रजनन के क्षेत्र में व्यापक बदलाव दिखेंगे. वैज्ञानिक अब कृत्रिम गर्भ के विकास में लगे हैं. हालांकि, इसमें तीन दशक तक का समय लगेगा. एक अनुमान के मुताबिक, 2025 में लगभग 80 हजार बच्चों का जन्म प्रजनन की सहायक तकनीक से होगा. इंफर्टिलिटी विशेषज्ञ अनिरुद्ध मालपानी के अनुसार, आज मुंबई जैसे वैश्विक शहर में हमें कई गैर परंपरागत परिवार देखने को मिलते हैं.

जहां सिंगल मदर और सिंगल फादर का प्रचलन है. ये परिवार बच्चे की इच्छा तो रखते हैं, पर बच्चे पैदा करने से बचने का प्रयास करते हैं. प्रजनन की तकनीक का विकास ऐसे परिवारों के बच्चे की कमी को पूरा करेगी. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि गैर परंपरागत परिवारों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी.

प्रस्तुति : राहुल गुरु

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