टांसिल की सूजन गले में होनेवाला प्रमुख रोग है. जिन लोगों को यह रोग होता है, उन्हें यह बार-बार सताता भी है. कफ एवं रक्त में खराबी के कारण तालू की जड़, जिसे ‘गलतुंडिका’ भी कहते हैं, उसमें अत्यधिक सूजन आ जाती है. इसका मुख्य कारण सर्दी लगना है. सर्दी के कारण गला अधिक प्रभावित होता है. यह शरीर में होनेवाले उपद्रव उपसर्गो से हमारी रक्षा करता है.
यही कारण है कि संक्रमण के कारण इनमें सूजन हो जाती है और संक्रमण आगे बढ़ नहीं पाता है. इन दोनों ग्रंथियों में होनेवाली सूजन को टांसिलाइटिस कहते हैं. इसे आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में गलतुंडिका शोथ कहा जाता है.
क्यों होता है टांसिल सूजन
शीत ऋतु में आहार-विहार में गड़बड़ी के कारण ठंड लग जाती है जिसके कारण सूजन हो जाता है. इसके साथ-साथ अम्लीय पदार्थो का अधिक प्रयोग करना, दूषित वातावरण में निवास करना, संक्रमित दूध पीना, ज्वर आदि कारण हैं, जो इस रोग को बढ़ाते हैं. टांसिल होने पर कंठ लाल हो जाता है व खाने एवं थूक गटकने में दर्द होता है.
क्या है इसकी चिकित्सा
आयुर्वेद चिकित्सा सबसे पहले होनेवाले कारणों से दूर रहने को कहता है. वैसे सभी खान-पान से बचें, जो रोग को बढ़ाते हैं. इस व्याधि में उपवास को परम औषध माना गया है. टांसिल के रोगी को गर्म जल का सेवन करना चाहिए. सोंठ मिला गर्म पानी लेने से तुरंत लाभ मिलता है. दशांग लेप एवं आममोदादि चूर्ण का लेप समान भाग मिला कर गले पर लगाने से राहत मिलती है. इसके साथ अनेकों आयुर्वेदिक औषधियां इस रोग में लाभप्रद हैं. जैसे लक्ष्मीविलास रस 2-2 गोली शुष्म पानी से लेना चाहिए. श्रृंग रामरस टैब एवं सेपनो टैब 2-2 गोली शुष्म पानी से लेने चाहिए. बच्चों में यह रोग बार-बार हो, तो कुमार कल्याण रस 1-1 गोली दो बार मधु से देना चाहिए. श्रृंगभादि चूर्ण एवं लवगांदि चूर्ण 1-1 रती तीन बार मधु से दें, लाभ मिलेगा. घरेलू उपाय में टांसिल सूजन को कम करने में हल्दी चूर्ण उत्तम दवा है. 1-1 चम्मच हल्दी चूर्ण शुष्म पानी से लें. टांसिलाइटिस होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलना चाहिए.
टांसिलाइटिस के लक्षण
सबसे पहले टांसिल सूज कर ईंट के समान लाल हो जाता है. टांसिल पर पीला एवं सफेद चिह्न् पड़ जाता है. रोग अधिक बढ़ जाने पर प्रदाहवाला लाल भाग पक जाता है, उसमें पस भी हो सकता है. बच्चों में यह रोग अधिक होता है एवं शरीर का ताप 104 डिग्री तक चला जाता है. गले में पीड़ा के साथ-साथ ज्वर के कारण सिर में तेज दर्द, आवाज का बैठ जाना, खांसी एवं बेचैनी बढ़ जाती है. उचित चिकित्सा के अभाव में बीमारी बढ़ कर कठिन हो जाती है. श्वास से बदबू आती है.