।। अनुज कुमार सिन्हा।।
वित्त आयोग की टीम झारखंड में है. झारखंड का वित्तीय भविष्य इसी टीम के हाथ में है. इस टीम को झारखंड की जमीनी हकीकत की जानकारी देनी होगी. यह बताना होगा कि झारखंड की वास्तविक स्थिति क्या है? सिर्फ रांची या आंकड़े देख कर पूरे झारखंड राज्य पर निर्णय करने से इस राज्य की 3.21 करोड़ जनता के साथ अन्याय हो जायेगा. सवाल न्याय का है. सच यह है कि झारखंड को हर हाल में पैसा चाहिए. केंद्र से भारी मदद चाहिए. बिना केंद्रीय मदद के यह राज्य एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता.
यह झारखंड सरकार केंद्र को विश्वास दिलाये कि राशि का उपयोग होगा, दुरुपयोग नहीं. पैसा जनता के हित-कल्याण में खर्च होगा, नेता-मंत्री-अफसर की पाकेट में नहीं जायेगा. कितना पैसा चाहिए, यह वित्त आयोग की टीम को तय करना है. झारखंड नया राज्य है. इसके बने सिर्फ 13 साल ही हुए हैं. अभी लर्निग स्टेज में है. सिर्फ भ्रष्टाचार में यहां के नेता गुरु हैं. संभव है कि यहां कार्य-संस्कृति न हो, यहां की सरकार या ब्यूरोक्रैट्स वित्त आयोग को विश्वास दिलाने लायक प्रेजेंटेशन तैयार न कर पायें हो, जिम्मेवार पद पर बैठे यहां के नेता राज्य के भविष्य को लेकर बहुत सचेत न हों, यहां भ्रष्टाचार हो, अनाप-शनाप पैसे खर्च करते हों, राशि लैप्स कर जाती हो. पर यहां की गरीब जनता का इसमें क्या दोष है? झारखंड का अतीत रहा है कि वह वित्तीय मामले में बहुत गंभीर नहीं रहा है. पैसा देख कर यहां के नेता बहक जाते हैं. यह दोष राज्य के पॉलिटिकल सिस्टम का है, यहां अब तक रही गंठबंधन की सरकारों का है, उनके विजन के अभाव का है. जनता तो बेचारी है. गलती की है सरकारों ने और दुष्परिणाम भुगत रही है मासूम-गरीब जनता.
दिल्ली बैठे हर नेता-अधिकारियों या टीम को लगता है कि झारखंड एक अमीर राज्य है. कागज पर दिखता है कि झारखंड में लोहा-कोयला और अन्य खनिज भरे पड़े हैं. हकीकत कुछ और है. यहां के कोयले से देश के पावर प्लांट चलते हैं पर झारखंड का बड़ा हिस्सा अंधेरे में रहता है. इस राज्य के सात अन्याय होता रहा है. राज्य को उसका वाजिब हिस्सा नहीं मिलता है. रायल्टी में झारखंड के साथ गड़बड़ी होती रही है. अब तो हालत यह है कि झारखंड पर 34 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है यानी कजर्दार राज्य.
अन्य राज्यों से झारखंड की तुलना नहीं की जा सकती. वहां के हालात अलग हैं. वहां की तैयारी अलग रहती है. हमारे नेता अपनी बात को दिल्ली तक मजबूती से रख नहीं पाते. छोटा राज्य है. लोकसभा की सीटें यहां से कम हैं. ऐसे छोटे राज्य को देश की राजनीति में बहुत अहमियत नहीं मिलती. इसलिए सारी निगाहें उस टीम पर होती है जो झारखंड आती है. जब यह टीम झारखंड को जानेगी, समङोगी तब पता चलेगा कि झारखंड खनिज में अमीर होते हुए भी गरीब राज्य है. राज्य की आधी आबादी एक शाम खाकर रहती है. 24 में 20 जिले नक्सल प्रभावित हैं. एक तो पहले से स्कूल-पंचायत भवन कम हैं. जो हैं भी उन्हें नक्सली उड़ा देते हैं. राज्य के हालात ऐसे हैं कि स्कूल भवन के अभाव में बच्चे पेड़ के नीचे पढ़ते हैं, स्कूल में पीने का पानी या शौचालय तक नहीं है. राज्य की सड़कों की स्थिति खराब है. बाहर की बात छोड़ दें, यह टीम सिर्फ रांची शहर में कार से घुम ले (शहीद चौक-बड़का तालाब, करमटोली से बूटी मोड़ से होते कांटाटोली, पुरुलिया रोड से कर्बला चौक), तो सच्चई का पता चल जायेगा.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पैसे की कमी के कारण राज्य के ये हालात हैं. राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव रहा है. जिसे सरकार को मौका मिला, उसी ने लूटा. काम करने का तरीका देखिए. विकास के लिए जो पैसा मिलता भी है, वह भी खर्च नहीं कर पाते. एक बड़ा हिस्सा कमीशन में चला जाता है. टीम यह सब जानती है. व्यवस्था खत्म है. तमाम कमजोरी है. इसके बावजूद झारखंड को पैसा चाहिए. नेताओं-मंत्रियों-ठेकेदारों व दलालों के लिए नहीं, यहां की गरीब जनता के लिए. केंद्र पैसा दे और कड़ी निगरानी रखे कि उसके पैसे का उपयोग हो रहा है या नहीं. यह वित्त आयोग की टीम है. 1.43 लाख करोड़ रुपये की अगर झारखंड मांग कर रहा है, हो सकता है कि यह ज्यादा लगे. प्राथमिकताएं गलत हो सकती हैं. जिस विभाग को पैसा चाहिए, वह नहीं मांग रहा और जिसे नहीं चाहिए, वह कई गुना ज्यादा मांग रहा हो. यह देखना, उसे ठीक करना वित्त आयोग का काम है. यह सही है कि झारखंड ने अभी तक तय ही नहीं किया है कि उसके विकास का माडल क्या हो? उद्योग लग नहीं रहे, जमीन है नहीं, जो है भी, वह कानूनी अड़चन में फंसी है, बहाली हो नहीं रही, बेरोजगारों को नौकरी कहां से मिलेगी? अगर उद्योग का विकास नहीं हो रहा तो कृषि क्षेत्र को समृद्ध करना ही एक विकल्प बचता है. सरकार की प्राथमिकता सूची में कृषि कभी नहीं रही. सिंचाई योजनाएं अधूरी पड़ी हैं. खेती भी कैसे होगी, खेतों में पानी नहीं है, हर दो साल पर अकाल पड़ता है. ऐसे में अगर केंद्र पैसा न दे तो यहां की जनता का क्या होगा?
झारखंड पांच साल के लिए बड़ी राशि मांग रहा है. लग सकता है कि अनाप-शनाप पैसा मांग रहा है. अगर झारखंड के इतिहास को देखें तो केंद्र इस मांग को नहीं मान सकता. उसे लगेगा कि झारखंड में इस राशि की भी लूट हो जायेगी. नेता-अफसर-दलाल मिल कर खा जायेंगे. पर सुधरने की उम्मीद तो कर सकते हैं. बार-बार ठोकर खाने के बाद यहां के शीर्ष नेताओं को बुद्धि आ जाये, वे सक्रिय हो उठें और काम करने लगें, उनका हृदय परिवर्तन हो जाये. वैसी स्थिति में पैसे के अभाव में काम नहीं होगा, इसलिए भी पैसा चाहिए. जब मजबूत सरकार बनेगी, काम करने का मूड बनेगा तो पैसों की जरूरत होगी. अभी तो किसी को चिंता ही नहीं है. झारखंड के प्रमुख शहर जाम से परेशान हैं. फ्लाइओवर तक नहीं बन रहे हैं. सड़कें चौड़ी नहीं हो पा रही हैं. अपनी विधानसभा तक नहीं है. कई जिला मुख्यालय रेल मार्ग से जुड़ा हुआ नहीं है. राज्य को बेहतर संस्थाएं चाहिए. उसके लिए चाहिए पैसा. यह दुर्भाग्य है कि देश में इंजीनियर तैयार करने के लिए इंजीनियरिंग कालेज हैं, डाक्टर बनाने के लिए मेडिकल कॉलेज हैं, वकील बनाने के लिए ला कालेज हैं पर नेता बनाने के लिए, उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए कोई संस्था नहीं है. ठीक है डेमोक्रेसी है लेकिन अगर देश में राजनेताओं को, विधायकों-सांसदों को ज्ञान-विजन में समृद्ध करने, बेहतर गवर्नेस की जानकारी देने के लिए कोई संस्था बनती है, तो उसका ब्रांच झारखंड में होना चाहिए ताकि इस राज्य का कल्याण हो सके .
झारखंड के लिए, यहां की जनता के लिए गुरुवार-शुक्रवार का दिन उनका भविष्य तय करनेवाला दिन है. उम्मीद है वित्त आयोग की टीम सच को जानेगी-समझेगी और तमाम कमियों को नजरअंदाज करते हुए झारखंड के साथ न्याय करेगी.