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चीन की विकास दर में गिरावट, भारत के लिए कितना मौका

-चीन की विकास दर 1999 के बाद सबसे निचले स्तर पर- -प्रवीण कुमार- दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की आर्थिक विकास दर इस वर्ष 7.6 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद जतायी गयी है, जो पिछले डेढ़ दशकों में सबसे कम होगी. वर्ष की आखिरी तिमाही के हालिया जारी आंकड़ों को देखते हुए […]

-चीन की विकास दर 1999 के बाद सबसे निचले स्तर पर-

-प्रवीण कुमार-

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की आर्थिक विकास दर इस वर्ष 7.6 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद जतायी गयी है, जो पिछले डेढ़ दशकों में सबसे कम होगी. वर्ष की आखिरी तिमाही के हालिया जारी आंकड़ों को देखते हुए यह आशंका और भी बढ़ गयी है. हालांकि, अब भी भारत के मुकाबले चीन की विकास दर ज्यादा ही है, लेकिन क्या है चीनी विकास दर में गिरावट की वजह और इससे भारत के लिए चीन के घरेलू बाजार समेत दुनिया के बाजारों में किस तरह के अवसर पैदा हो सकते हैं, इसे ही बताने की कोशिश की गयी है आज के नॉलेज में..

नयी दिल्लीः विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की आर्थिक गतिविधियों में हाल में जारी आर्थिक आंकड़ों से दिसंबर में खत्म आखिरी तिमाही में नरमी के संकेत मिले हैं. इन आंकड़ों के बाद चीन की आर्थिक वृद्धि दर 2013 में करीब 7.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद है, जो वर्ष 1999 के बाद से न्यूनतम वृद्धि दर होगी. चीन में एचएसबीसी मार्केट इकोनॉमिक्स सर्विसेज पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स (पीएमआइ) दिसंबर में घट कर 50.9 रह गया, जो अगस्त, 2011 के बाद सबसे कम है. साथ ही, आलोच्य अवधि के दौरान आर्थिक गतिविधियों में भी छह महीने की न्यूनतम वृद्धि दर्ज की गयी. हालांकि, अब भी ये आंकड़े 50 से अधिक हैं. यानी अब भी चीन की अर्थव्यवस्था में अच्छी बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही, यह अब भी निर्धारित आर्थिक वृद्धि लक्ष्य 7.5 प्रतिशत से अधिक है. इससे पहले वर्ष 2012 में चीन की अर्थव्यवस्था में 7.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी.

यहां अहम सवाल यह है कि वामपंथी शासनवाले चीन में आर्थिक नरमी क्यों आ रही है? वर्ष 1978 में चीन ने तय किया था कि वह ताकतवर और विकासवादी वामपंथी अर्थव्यवस्था बनेगा. इसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है. 2010 के अंत में करीब 40 साल से दुनिया की नंबर दो अर्थव्यवस्था रहे जापान की जगह लेनेवाले चीन के नीति नियंताओं का पूरा जोर तीव्र आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने पर रहा है. लेकिन एक के बाद एक सधे कदम उठानेवाले चीन ने अब देश को नयी शक्ल देने की तैयारी की है. यह भारत जैसे देशों के लिए एक अवसर भी है, तो चीन से आगे निकलने की चुनौती भी.

दरअसल, चीन वैश्विक स्तर पर विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय देशों में हो रहे लगातार उतार-चढ़ाव और व्यापार असंतुलन की वजह से उठ रहे विरोध के स्वर से खुद को बचाना चाहता है. अमेरिका और यूरोप समेत भारत में भी भारी व्यापार अधिशेष एक मुद्दा बनता जा रहा है. दूसरी ओर, चीन अपनी आर्थिक वृद्धि के मॉडल में भी तब्दीली लाना चाहता है. यानी वह निर्यात और विनिर्माण केंद्रित अर्थव्यवस्था से घरेलू मांग, सेवा पर आधारित टिकाऊ वृद्धि हासिल करने पर जोर दे रहा है. इसके मद्देनजर चीन की सरकार घरेलू उपभोक्ता मांग को बढ़ा कर उसके मुताबिक आर्थिक वृद्धि हासिल करना चाहती है.

जीवन स्तर में सुधार का लक्ष्य

चीन के नेता पिछले कुछ समय से अकसर यह कहते आये हैं कि उनकी दीर्घकालिक योजना देश की अर्थव्यवस्था में संतुलन कायम करना है, ताकि निर्यात और निवेश पर इसकी निर्भरता कम हो सके. शीर्ष संस्था पोलित ब्यूरो ने भी नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार को अपना लक्ष्य घोषित किया है. इसके अलावा, चीन के नीति-नियंता शैडो बैंकिंग यानी बीमा, संपत्ति प्रबंधन से जुड़ी कंपनियों द्वारा बैंकिंग व्यवस्था के कामकाज को लेकर भी चिंतित हैं. उनका मानना है कि इस तरह की कंपनियों द्वारा कर्ज प्रदान करने से खुद इन कंपनियों और दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था को धक्का पहुंचेगा. इसे ध्यान में रखते हुए चीन के स्टेट एडमिनिशट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज ने सरकार से लेन-देन कर लगाते हुए ऋण प्रवाह पर रोक लगाने की अपील की है.

नेशनल ब्यूरो और स्टैटिस्टिक्स इस महीने चीन का चौथी-तिमाही और पूरे साल के वृहत-आर्थिक आंकड़े जारी करनेवाला है. लेकिन अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी से मार्च तिमाही में आर्थिक विकास दर 7.7 प्रतिशत, अप्रैल से जून की अवधि में चीन की आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत रही थी. हालांकि, जुलाई से सितंबर अवधि के दौरान आर्थिक विकास दर 7.8 प्रतिशत दर्ज की गयी थी. ये आंकड़े विश्लेषकों की उम्मीदों के अनुसार हैं. उनका कहना है कि दशकों तक ऊंची विकास दर हासिल करने के बाद ऐसा लगता है कि चीन की सरकार भी अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार को स्वीकार करने को तैयार है.

जानकार बताते हैं कि व्यापार गतिविधियों की सुस्त चाल और कर्ज देने में बैंकों पर सख्ती से विकास की गति धीमी हुई है. दूसरी ओर, संपत्ति संबंधी नियमों को कड़ा करने, जनता के पैसे के दुरुपयोग का रोकने के लिए बनाये गये नये नियमों और कुछ पुराने पैकेजों के समाप्त होने से विकास दर प्रभावित हुई है.

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

चीन की आखिरी तिमाही के आंकड़े आने के बाद पिछले सोमवार को एशियाइ शेयर बाजारों में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी. जापान का शेयर सूचकांक निक्की दो माह के न्यूनतम स्तर पर बंद हुआ. भारतीय शेयर बाजार में भी गिरावट दर्ज की गयी और सेंसेक्स 64 अंक अथवा 0.34 प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ. यूरोपीय शेयर बाजारों में भी गिरावट देखी गयी. लेकिन स्विट्जरलैंड स्थित वित्तीय सेवा और सलाह प्रदाता कंपनी क्रेडिट सुइस ने चीन की आर्थिक वृद्धि में आ रही नरमी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके पड़नेवाले प्रभाव की बाबत हाल ही में अध्ययन किया है. आर्थिक शोध और वैश्विक रणनीति टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चीनी अर्थव्यवस्था का प्रभाव तो पड़ेगा. लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों में सुधर रही आर्थिक स्थिति ही वैश्विक स्तर पर ज्यादा प्रभावशाली साबित होगी.

वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी

वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में चीन के सकल आयात की हिस्सेदारी 2.9 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका की 3.8 और यूरोपीय देशों की 3.6 प्रतिशत है. यानी यूरोपीय देशों और अमेरिका के मुकाबले इस मामले में चीन की हिस्सेदारी कम है. ऐसे में साफ तौर पर यह कहा जा सकता है कि चीनी अर्थव्यवस्था में आ रही नरमी का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव ही पड़ सकता है.

लिहाजा इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की अहमियत बढ़ेगी और उसकी मुद्रा डॉलर में भी तेजी आने की उम्मीद है. साथ ही, सुरक्षित निवेश के तौर पर प्रचलित सोने की आवभगत और बढ़ेगी. सोमवार को लंदन में एक औंस सोने की कीमत तीन सप्ताह के उच्चतम स्तर 1240 डॉलर पर जा पहुंची थी. यानी गोल्ड रश जारी रहने की संभावना है.

चीन की आर्थिक नरमी से भारत को फायदा होने की उम्मीद जतायी जा रही है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत को चीन के घरेलू बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. चूंकि चीन घरेलू मांग बढ़ाने पर जोर दे रहा है और वहां मध्य वर्ग की आय में वृद्धि हो रही है. चीन के शहरी और ग्रामीण नागरिकों की डिस्पोजेबल आय सालाना क्रमश 6.5 और 9.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. ऐसे में भारत के पास चीनी बाजार में अपनी गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं और सेवाओं के जरिये पकड़ मजबूत करने का पूरा मौका है. साथ ही, अपने शीर्ष व्यापारिक भागीदारी से व्यापारिक असंतुलन दूर करने का मौका भी प्रदान करेगा. इसके अलावा, चीन की बैंकिंग और वित्तीय संगठनों से भी भारत बुनियादी ढांचे में निवेश को आकर्षित कर सकता है.

चीन की आर्थिक वृद्धि दर अब भी भारत से अधिक है. चीन की आर्थिक वृद्धि दर 2013 में घट कर 7.6 रह जाने की संभावना है, जबकि चालू वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान भारत की संभावित आर्थिक वृद्धि दर 5 से 5.5 फीसदी के बीच रहने की संभावना जतायी जा रही है. विश्व बैंक के मुताबिक यह 4.7 प्रतिशत तक भी सिमट सकती है. आंकड़ों से स्पष्ट है कि चीन की आर्थिक वृद्धि दर भले ही पिछले एक दशक के मुकाबले इस वर्ष कम रहे, लेकिन अब भी यह भारत के मुकाबले ज्यादा ही है. ऐसा चीन द्वारा बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश और घरेलू उपभोक्ताओं की आय में बढ़ोतरी से ही मुमकिन हो रहा है. चीन की स्थानीय निकायों द्वारा भी बड़े पैमाने पर ढांचागत क्षेत्रों में निवेश किया जा रहा है. इससे वहां आर्थिक गतिविधियों को बल मिल रहा है. साथ ही, भारत के मुकाबले चीन से किये जानेवाले निर्यात ज्यादा विविधतापूर्ण हैं. लिहाजा उसके निर्यात में भी बहुत अधिक गिरावट नहीं होती. वहीं भारत अभी भी बुनियादी ढांचे में जरूरत के मुताबिक निवेश नहीं कर पा रहा है. मनरेगा जैसी योजनाओं पर भारी निवेश किया जा रहा है, लेकिन इसके परिणाम बहुत सकारात्मक व उत्साहवर्धकनहीं रहे हैं. इसके जरिये किसी स्थायी ढांचे का निर्माण नहीं किया गया है.

तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय निर्यात अभी भी यूरोप और अमेरिका पर ही निर्भर है. चीन में जहां व्यापार अधिशेष है, वहीं भारत लगातार व्यापार घाटे के फेर में उलझा हुआ है. हालांकि, सही है कि हमेशा व्यापार घाटा नुकसानदायक नहीं होता है, लेकिन हमारा निर्यात अभी चीन के मुकाबले बेहद कम है और विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है.

हाल ही में जारी ओइसीडी आर्थिक दृष्टिकोण रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अगले कुछ वषरो में अमेरिका को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. इतना ही नहीं, अनुमान तो यह भी लगाया गया है कि वर्ष 2020 के आसपास प्रमुख देशों में चीन सबसे ऊंची आर्थिक वृद्धि के साथ आगे रहेगा. जाहिर है आर्थिक विकास में कमी के बावजूद चीन का दबदबा वैश्विक स्तर पर बढ़ने की उम्मीद है. आर्थिक शक्ति के बदौलत वह वैश्विक परिदृश्य को प्रभावित करेगा.

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