-प्रकाश कुमार राय-
पुतिन सरकार के प्रयासों के कारण पिछले कुछ वर्षो की शांति के बाद रूस एक बार फिर आतंकवादियों के निशाने पर है. पिछले दिनों वोल्गोग्राद रेलवे स्टेशन और इसके अगले ही दिन एक बस में हुए आतंकी धमाकों ने तीस से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दी. इन हमलों ने वैश्विक आतंकवाद के खतरों को एक बार फिर रेखांकित किया है. रूस और आतंकवाद के रिश्तों पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..
दिसंबर के आखिर में रूस के वोल्गोग्राद में हुए आतंकी विस्फोटों ने वैश्विक आतंकवाद के खतरे को एक बार फिर रेखांकित किया है. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस में ऐसे हमलों का एक लंबा सिलसिला रहा है, लेकिन पुतिन सरकार के कड़े रुख के कारण पिछले कई वर्षो से यहां आतंकी गतिविधियां थम गयी थीं.
पिछले साल के आखिर में रूस के वोल्गोग्राद रेलवे स्टेशन पर रविवार, 29 दिसंबर को हुए पहले हमले में 17 लोग और सोमवार, 30 दिसंबर को एक बस में हुए दूसरे हमले में 14 लोग मारे गये. गंभीर रूप से घायल लोगों की संख्या सौ से अधिक है. इससे पहले शुक्रवार को एक अन्य शहर में कार बम हमले में तीन लोग मारे गये थे. इसी वोल्गोग्राद में पिछले अक्तूबर में हुई आतंकी घटना में भी पांच लोग मारे गये थे.
वोल्गोग्राद की आतंकवादी कारवाई का जिम्मा अबतक किसी संगठन ने नहीं लिया है, लेकिन यह संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि इनके पीछे दोकू उमरोव और उसके संगठन इमारात कावकाज का हाथ है. इन हमलों में जो तौर-तरीके अपनाये गये हैं, वही तरीके 2012 में दागिस्तान के एक महत्वपूर्ण मौलाना की हत्या के लिए अपनाये गये थे. रूस में अपहरण, हत्या और विस्फोटों जैसी आतंकी कार्रवाइयों में उमरोव लंबे समय से शामिल रहा है. अपने प्रचार तंत्र कावकाज सेंटर के माध्यम से वह लगातार आतंकी वारदातों के पक्ष में माहौल बनाता आया है. वह अपनी गतिविधियों को प्रतिरोध और रूस को आतंकवादी कहता है.
आतंकवाद का वैश्विक स्वरूप
लेकिन सिर्फ उमरोव जैसे आतंकियों के आधार पर ही रूस में आतंकवाद को समझना ठीक नहीं होगा. एक महाशक्ति के तौर पर रूस विश्व के अनेक भू-राजनीतिक विवादास्पद मसलों, जैसे- सीरिया का गृहयुद्ध, तेल व्यापार, हथियारों का बाजार, वैश्वीकरण आदि मुद्दों पर अकसर केंद्र में रहता है और पश्चिमी ताकतों से उसकी खींचतान चलती रहती है. ऐसे में इन घटनाओं को विश्व-राजनीति के व्यापक परिदृश्य में रखते हुए विश्लेषित करना होगा.
यह भी समझना होगा कि आज विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश है, जो आतंकवाद के प्रभाव से अछूता बचा हो. पिछले कई दशकों से राजनीतिक क्षितिज पर कई आंदोलनों, अति दक्षिणपंथ से अति वामपंथ तक, ने आतंक को महत्वपूर्ण रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. शक्तिशाली देशों के कूटनीतिक स्वार्थो ने भी इसे वैश्विक विभीषिका बनाने में बड़ी भूमिका निभायी है. लेकिन भू-राजनीतिक और विचारधारात्मक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आतंकी गतिविधियों का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन दो-धारी तलवार साबित हुआ है और उन देशों को भी तबाही का शिकार होना पड़ा है. अत्याधुनिक तकनीक तक आतंक की सुलभ पहुंच ने आज इसे मानवता के सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने ला खड़ा किया है.
शीतकालीन ओलिंपिक पर खतरा
वोल्गोग्राद के निकट सोची शहर में फरवरी में अब तक के सबसे खर्चीले शीतकालीन ओलिंपिक का आयोजन होना है, जिसमें दुनिया भर के जाने-माने खिलाड़ी और दर्शक हिस्सा लेनेवाले हैं. इस आयोजन पर अब तक कुल पचास बिलियन डॉलर से अधिक खर्च हो चुके हैं और इस आयोजन को राष्ट्रपति पुतिन द्वारा उनकी छवि सुधारने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है. लेकिन हालिया आतंकी घटनाओं ने सरकार और आयोजकों की चिंता बढ़ा दी है. हालांकि राष्ट्रपति पुतिन ने अपने नव वर्ष के संदेश में आतंक से कठोरता से निपटने की बात कह कर लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की है.
रूस में आतंकवाद का इतिहास
‘बड़े आतंक’ की वापसी?
इन आत्मघाती हमलों को उस ‘बड़े आतंक’ की वापसी के रूप में देखा जा रहा है, जिसने 1991 से 2004 तक रूस को लहूलुहान किया था. इस आतंक की पृष्ठभूमि सोवियत संघ के विघटन के घटनाक्रम से जुड़ी हुई है. सोवियत संघ के पुनर्गठन की एक योजना 1990 में तैयार की गयी थी, जिसके अनुसार 15 राज्यों का विभाजन कर 80 स्वायत्त राज्य बनाये जाने थे, लेकिन अगस्त, 1991 के तख्तापलट के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका. उसी वर्ष सोवियत संघ टूट गया और उसके कई प्रदेश स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आये. चेचन राष्ट्रवादी गुटों ने चेचन्या को भी स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की मांग की, जिसे तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने यह कह कर ठुकरा दिया कि सोवियत संघ में कई अन्य राज्यों की तरह चेचन्या अलग राज्य नहीं था, इसलिए उसकी यह मांग उचित नहीं है. दरअसल, येल्तसिन जानते थे कि अगर चेचन लोगों की मांग मान ली गयी, तो तातारस्तान जैसे रूस के नियंत्रण के कई क्षेत्र स्वतंत्रता की मांग करने लगेंगे. साथ ही, चेचन्या में तेल उत्पादन से संबंधित कई बड़ी परियोजनाएं चल रही थीं, जिनके जाने से रूस को बड़ी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती.
पूर्व सोवियत वायु सेना अधिकारी और चेचन राष्ट्रवादी नेता झोखर दुदायेव के नेतृत्व में चेचन्या ने नवंबर 1991 में स्वतंत्रता की एकतरफा घोषणा कर दी. इसी के साथ रूस और चेचन राष्ट्रवादी गुटों के बीच एक अंतहीन हिंसक संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों ही तरफ जान-माल की भयानक क्षति हुई है और हाल की आतंकवादी घटनाएं उसी सिलसिले की कड़ी मानी जा रही हैं.
शुरुआत में दुदायेव और रूस-समर्थित गुटों के बीच गृहयुद्ध होता रहा, लेकिन 1994 में रूस ने इस युद्ध में अपनी सेना उतार दी. चेचन लड़ाकों ने जबर्दस्त तबाही के बावजूद रूसी सेना को गुरिल्ला युद्ध के द्वारा विजय से दूर रखा. जून, 1995 में बड़ी आतंवादी कारवाई करते हुए लड़ाकों ने दक्षिण रूस के बुद्योनोवोस्क शहर के एक अस्पताल पर कब्जा कर इस युद्ध को रूसी धरती पर ला दिया. इस घटना में लगभग 200 लोग मारे गये और 500 से अधिक घायल हुए. शहर की 160 से अधिक इमारतें नष्ट हो गयी थीं. रूसी सरकार को इस घटना से बहुत बड़ा झटका लगा और उसे जनाक्रोश का भी सामना करना पड़ा.
इसके कुछ महीने बाद 1996 में अस्लान मस्खादोव के नेतृत्व में विद्रोहियों ने चेचन्या की राजधानी ग्रोज्नी पर कब्जा कर लिया. इसी साल रूस ने चेचन राष्ट्रपति दुदायेव को एक मिसाइल हमले में मार दिया था, लेकिन विद्रोहियों की स्थिति मजबूत होने के कारण मजबूरन राष्ट्रपति येल्तसिन को संघर्ष-विराम की घोषणा करनी पड़ी.
चेचन युद्ध : शुरुआत और अंत
युद्ध-विराम के दौरान हुए चुनाव में विद्रोहियों के सैन्य-प्रमुख मस्खादोव राष्ट्रपति बने और रूस के आर्थिक सहयोग से चेचन्या के पुनर्निर्माण की कोशिश शुरू की, लेकिन रूस द्वारा भेजे जा रहे धन को लड़ाकों द्वारा आपस में बांट लेने के कारण वहां का विकास कार्य ठप्प पड़ गया था. बहुत सारे गुट अपहरण, फिरौती, उगाही जैसे अपराध में शामिल होने लगे थे और सरकार को चुनौती देने लगे थे. इनमें सबसे ताकतवर गुट- इसलामिक इंटरनेशनल ब्रिगेड- कट्टरपंथी इसलाम की विचारधारा और अलकायदा से जुड़ा हुआ था.
अगस्त, 1999 में इस गिरोह ने पड़ोसी क्षेत्र दागिस्तान पर हमला कर वहां शरिया कानून लागू करने की कोशिश की. अगले महीने की 4 से 16 तारीख के बीच मास्को सहित रूस के तीन शहरों में सिलसिलेवार ढंग से रिहायशी इलाकों में कई धमाके हुए, जिसमें 300 से अधिक लोग मारे गये. पुतिन के नेतृत्व वाली रूसी सरकार ने इसकी जिम्मेवारी चेचन सरकार पर डालते हुए दूसरे चेचन युद्ध की घोषणा कर दी, जिसकी परिणति फरवरी 2000 में ग्रोज्नी के कब्जे के साथ हुई.
तब से अब तक वहां रूस-समर्थित सरकार सत्ता में है, लेकिन हत्याओं और हमलों का दौर लगातार चलता रहा. 2004 में तत्कालीन चेचन राष्ट्रपति अहमद कादिरोव की हत्या विद्रोहियों ने कर दी, तो 2005 में विद्रोही नेता और पूर्व राष्ट्रपति अस्लान मस्खादोव और 2006 में शामिल बसायेव की हत्या कर दी गयी. 2004 में मस्खादोव से पहले राष्ट्रपति रहे जेलिमखान की हत्या खाड़ी देश कतर में कर दी गयी.
2004 के सितंबर में रूसी संघ के अंतर्गत स्वायत्त राज्य उत्तरी ओसेतिया के बेसलान शहर में एक विद्यालय पर आतंकियों ने हमला कर 1100 लोगों को बंधक बना लिया, जिसमें 777 बच्चे थे. तीन दिन चले इस घटनाक्रम में अपहरणकतरओ से बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला. रूसी सरकार ने बलप्रयोग का निर्णय लिया और विद्यालय पर धावा बोल दिया. इस संघर्ष में 400 से अधिक लोग मारे गये. इस हमले के बाद रूस की संघीय सरकार ने अपने अधिकार और मजबूत किये और सत्ता का अधिकतम नियंत्रण क्रेमलिन के अधीन आ गया.
चेचन्या और दागिस्तान में विद्रोहियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने के साथ रूस ने अनेक संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जिनमें मिलिट्री मजलिसुल शूरा, पीपुल्स कांग्रेस ऑफ इक्केरिया एंड दागिस्तान, अलकायदा, असबत अन-अंसार, इजिप्शियन इस्लामिक जेहाद, अल-जामा अल-इस्लामी, जमात-ए-इस्लामी, मुस्लिम ब्रदरहुड, हिज्ब तहरीर, लश्करे-तैयबा, आदि शामिल हैं. 2009 में आधिकारिक रूप से रूसी राष्ट्रपति ने चेचन युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर दी.
महिला आतंकी हमलावरों का इस्तेमाल
वोल्गोग्राद में हुए दोनों विस्फोटों में महिला आत्मघाती हमलावरों का इस्तेमाल हुआ है. अक्तूबर में हुए हमले को भी महिला आतंकी ने ही अंजाम दिया था. 2000 के बाद रूस में हुए लगभग आधे आत्मघाती हमलों में महिला आतंकी शामिल रही हैं. खावा बारायेवा और लुजिया मागोमादोवा नामक दो महिलाओं ने चेचन्या-स्थित एक रूसी सैन्य ठिकाने पर बारूद से लदे ट्रक से हमला किया था. अक्तूबर, 2002 में मॉस्को थियेटर पर हुए हमले में शामिल 40 आतंकियों में 19 महिलाएं थीं. सितंबर, 2004 में बेलसान में विद्यालय पर हुए भयानक हमले का नेतृत्व खौला नजीरोव ने किया था. विश्लेषकों का मानना है कि अलकायदा चेचन महिलाओं को फिदायीन बनने का प्रशिक्षण दे रहा है. इसके लिए आमतौर पर ऐसी महिलाओं का चयन किया जाता है जिनके सगे-संबंधी रूसी सेना द्वारा मारे गये हों. यह भी आशंका जतायी जाती है कि कई प्रशिक्षित आतंकी पश्चिमी देशों में भेजे जा चुके हैं. हाल के एक वीडियो संदेश में उमरोव ने ब्रिटेन के लोगों को निशाना बनाने की धमकी भी दी है.