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छोटी उम्र में शादी : आज उत्सव, कल आंसू

झारखंड के देवघर जिला में के दो प्रखंडों के तीन पंचायतों के 62 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या है. साथ ही छोटी उम्र में लड़कियों की शादी किये जाने का सबसे ज्यादा दबाव मां की ओर से होता है. देवघर की स्वयं सेवी संस्था चेतना विकास द्वारा कराये […]

झारखंड के देवघर जिला में के दो प्रखंडों के तीन पंचायतों के 62 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या है. साथ ही छोटी उम्र में लड़कियों की शादी किये जाने का सबसे ज्यादा दबाव मां की ओर से होता है. देवघर की स्वयं सेवी संस्था चेतना विकास द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में इस तथ्य को उजागर किया गया है.

नहीं दर्ज किया जा सका है एक भी मामला
झारखंड में बाल विवाह के कारण एक बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाएं गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहीं हैं. साथ ही बाल विवाह के अन्य गंभीर परिणाम जैसे छोटी उम्र में हिंसा का शिकार होना तथा पढ़ाई का छूट जाना भी शामिल है. लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की शादी बहुत ही कम उम्र में शादी हो जाती है. एक आंकड़े के अनुसार 100 में से 32 लड़कियों की ही शादी उनकी सही समय पर हो पाती है, जबकि 68 प्रतिशत बालिकाओं की शादी उनके शारीरिक रूप से परिपक्व होने से पहले ही कर दी जाती है. 68 प्रतिशत में से तीन प्रतिशत की शादी तीन से 12 वर्ष की उम्र में हो जाती है. राज्य में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के लागू होने के बाद भी बाल विवाह पर रोक नहीं लग सका है. बाल विवाह की रोकथाम के लिए रांची जिला में चेतना विकास नामक स्वयं सेवी संस्था द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय एडवोकेसी बैठक के दौरान यह जानकारी साझा की गई. चेतना विकास द्वारा देवघर में कराये गये सैंपल सर्वे में इस बात को उजागर किया गया है कि अमूमन कम उम्र में शादी कर दिये जाने के कारण मां बनने की संख्या में इजाफा हुआ है और मां और बच्चों के कुपोषित होने के के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. संस्था द्वारा सरकारी स्तर पर संबंधित कानून का समुचित प्रयोग नहीं किये जाने से और जागरूकता अभियान में कमी सरकार तथा प्रशासनिक स्तर पर बरती जा रही संवेदनहीनता की पुष्टि करते हैं. पूरे राज्य में बाल विवाह से संबंधित एक भी मामला नहीं दर्ज किया जा सका है.

मां की भूमिका प्रभावी
चेतना विकास संस्था द्वारा देवघर जिला के दो प्रखंड देवघर तथा मनोहरपुर के तीन पंचायतों बारा, शंकरी तथा नयाचितकत पंचायत के कुल 15 गांवों के 7000 लोगों से बाल विवाह विषय पर उपलब्ध जानकारी को जानने के उद्देश्य से यह सर्वेक्षण कराया गया था. विवाह की सही उम्र पूछे जाने पर 62 प्रतिशत लोगों का यह मानना था कि लड़कियों की शादी की उम्र 12 से 18 वर्ष है. वहीं 32 प्रतिशत लोगों का जवाब था कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से अधिक है. साथ ही 3 प्रतिशत लोगों ने लड़कियों की शादी की सही उम्र की जानकारी पर अपनी अनभिज्ञता जतायी.

सैम्पल सर्वे से यह भी पता चला कि 48 प्रतिशत बाल विवाह होने के कई मिले-जुले कारण जैसे सामाजिक दबाव, परंपरा, दहेज मांग तथा अन्य परिवारिक कारण आदि हैं. बाल विवाह के मामलों में यह पाया गया कि 33 प्रतिशत बाल विवाह रीति रिवाज तथा इन पर अटूट विश्वास के कारण होते हैं. 11 प्रतिशत लड़कियों की शादी परिवारिक परंपराओं के कारण छोटी उम्र में हो जाती है. कुल बाल विवाह का 6 प्रतिशत सामाजिक दबाव के कारण कर दिया जाता है. इनमें से कुछ ने यह माना कि दहेज की बढ़ती मांग के कारण लड़कियों का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया जाना परिवार की मजबूरी होती है. सर्वे में यह भी पता चला कि लड़कियों के कम उम्र में ही विवाह करने दिये जाने के लिए सबसे ज्यादा दबाव मां की ओर से होता है. बाल विवाह के मामलों में 38 प्रतिशत शादी मां के दबाव में कर दिया जाता है. इसके बाद इसमें पिता की भूमिका अधिक होती है. 25 प्रतिशत शादियां पिता के दबाव के कारण होती है. इनके अलावा छोटी उम्र में शादी कर दिये जाने का दबाव रिशतेदार और परिवार के सदस्यों की ओर से होता है.

विवाह बाद की पहलुओं की जानकारी नहीं
18 वर्ष से कम उम्र लड़कों तथा लड़कियों से यह पूछे जाने पर कि शादी का अर्थ उनके लिये क्या है, अधिकांश लड़के-लड़कियों ने यह माना कि शादी का मतलब उनके लिये घर में एक उत्सव का माहौल है. 16.2 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उनके लिये यह एक ऐसा मौका है जहां वह स्वयं को सबों के बीच एक आकर्षण का केंद्र समझते हैं. इस सवाल का 7.6 बच्चों ने जवाब दिया कि नये कपड़े मिलने का यह एक बढ़िया मौका है.

लेकिन इन बच्चों को शादी के बाद के जीवन से जुड़ी जरूरी पहलुओं की जानकारी नहीं थी. पंचायत स्तर के प्रतिनिधियों का बाल विवाह कानून की जानकारी पर सर्वे रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि 86.8 प्रतिशत प्रतिनिधियों को इसकी जानकारी है. इनमें से 83.3 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों को विवाह की सही उम्र की जानकारी भी थी. लेकिन विशेष रूप से तैयार बाल विवाह निषेध अधिनियम की मात्र 52.5 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों को ही जानकारी थी. बाल विवाह कानून अधिनियम से जुड़े अन्य प्रावधानों पर 57.5 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों को इस बाबत कोई जानकारी नहीं थी.

बाल विवाह रोकने में राज्य की भूमिका
राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए विभिन्न प्रयास किये गये हैं जिनमें जागरूकता अभियान, माता-पिता के शैक्षणिक स्तर में सुधार, महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण तथा कानून का सही तरीक से कार्यान्वयन आदि शामिल हैं. कानून का भलीभांति इस्तेमाल कर बाल विवाह रोकने में सरकार की भूमिका महज 14 प्रतिशत नोट किया गया, वहीं जागरूकता अभियान से इस पर रोक लगाने की दिशा में सरकार की भूमिका 21 प्रतिशत थी. आर्थिक रूप से सशक्त कर बाल विवाह रोकने की दिशा में सरकार की भूमिका सिर्फ 3 प्रतिशत पायी गयी. पंचायत स्तर पर जागरूकता तथा शिक्षा के माध्यम से बाल विवाह पर लगाम लगाने के लिये पंचायत की भूमिका 44 प्रतिशत थी.

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