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झारखंड : स्वास्थ्य विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल, जहां चाहा, हुई पोस्टिंग

झारखंड में ट्रांसफर उद्योग खूब फल-फूल रहा है. सवा महीने में लगभग डेढ़ हजार अधिकारियों का तबादला इसका उदाहरण है. चाहे बीडीओ-सीओ का पद हो या डॉक्टर्स-इंजीनियर्स का, जिसने जहां चाहा, तबादला करवाया. एक मंत्री ने भी स्वीकारा किया कि उन्होंने मंत्रियों-विधायकों की पैरवी सुनी है. यह हाल लगभग सभी विभागों का है. प्रभात खबर […]

झारखंड में ट्रांसफर उद्योग खूब फल-फूल रहा है. सवा महीने में लगभग डेढ़ हजार अधिकारियों का तबादला इसका उदाहरण है. चाहे बीडीओ-सीओ का पद हो या डॉक्टर्स-इंजीनियर्स का, जिसने जहां चाहा, तबादला करवाया. एक मंत्री ने भी स्वीकारा किया कि उन्होंने मंत्रियों-विधायकों की पैरवी सुनी है. यह हाल लगभग सभी विभागों का है.

प्रभात खबर आज स्वास्थ्य विभाग में हुए तबादले पर रिपोर्ट प्रकाशित कर रहा है कि कैसे 39 दिनों में तीन-तीन बार बड़े पैमाने पर तबादले किये गये. कुछ का तबादला तो एक माह के भीतर दोबारा किया गया. यह बताता है कि कैसे नियमों की धज्जियां उड़ायी गयीं. सब जानते हैं कि ये तबादले क्यों किये गये.

रांची: झारखंड के स्वास्थ्य विभाग में करीब सवा माह के भीतर तीन बार तबादले 23 नवंबर, 30 नवंबर और 31 दिसंबर को किये गये. इसमें कई सिविल सजर्न सहित 441 चिकित्सकों का तबादला किया गया. ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए घोषित मापदंडों की इसमें अनदेखी की गयी. अभ्यावेदन (आवेदन) के आधार पर विभाग ने ताबड़तोड़ व मन मुताबिक पोस्टिंग की. 30 नवंबर की अधिसूचना (दो दिसंबर को जारी) में कुल 300 लोगों के नाम थे. इनमें से 107 तबादले आवेदन और निजी कारणों के आधार पर किये गये. वहीं एक ही जिले में 46 लोगों की ट्रांसफर-पोस्टिंग हुई. ऐसा करना नियमत: गलत है. इसके बाद 31 दिसंबर को भी कुल 165 लोगों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की गयी.

इसमें 30 नवंबर की अधिसूचना में शामिल लोग भी थे. यानी माह भर के अंदर पुन: तबादला. काम में लापरवाही बरतने के आरोप में जिन सिविल सजर्न व चिकित्सकों को मुख्यालय बुलाया गया था, उन्हें बेहतर पोस्टिंग दी गयी. विभाग के जानकारों का कहना है कि तबादले में चिकित्सकों के प्रदर्शन, उनकी उपस्थिति व सेवा रिकॉर्ड की भी अनदेखी हुई है. पूर्व सचिव के विद्यासागर ने ट्रांसफर-पोस्टिंग संबंधी एक नियमावली बनायी थी, लेकिन इसे मंजूरी के लिए आज तक कैबिनेट नहीं भेजा जा सका है.

कैसे हुई गड़बड़ी
स्वास्थ्य विभाग ने 30 नवंबर को कुल 300 चिकित्सकों की ट्रांसफर-पोस्टिंग की थी. इनमें से 107 चिकित्सक तथाकथित अभ्यावेदन (आवेदन) के आधार पर बदले गये थे. यानी सरकार ने किसी निजी समस्या संबंधी उनके आवेदन के आधार पर उनका तबादला किया था. सरकार ने अभ्यावेदन के आधार पर तबादला के लिए कोई नीति नहीं बनायी है, इसलिए 300 में 107 तबादला इसी आधार पर करने से सवाल उठ रहा है. पीएचसी, रामगढ़ (दुमका) में चिकित्सा प्रभारी रहे डॉ एलबीपी सिंह को आवेदन के आधार पर ही न सिर्फ जमशेदपुर भेजा गया, बल्कि उन्हें वहां का सिविल सजर्न भी बना दिया गया.

बॉक्स में लगायें

ट्रांसफर की स्थापित शर्त, जिन्हें तोड़ा गया

(पूर्व सचिव के विद्यासागर का नॉर्म्स)

1. ग्रामीण क्षेत्र में पोस्टिंग के बाद कम से कम दो वर्ष तक छेड़छाड़ नहीं

2. जिले में तीन साल से पहले अनावश्यक फेरबदल पर रोक

3. फस्र्ट रेफरल यूनिट में संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिए चिकित्सकों की नियुक्ति को प्राथमिकता

4. ब्लड बैंक में चिकित्सकों की नियुक्ति को प्राथमिकता

किसकी चलती है?

तबादले कराने के लिए एक गिरोह लगा रहता है. इसमें कुछ प्रभावशाली लोग हैं. एक होटल से भी स्वास्थ्य विभाग पर नजर रखी जाती है. एक जोड़ी खास काम करती है. यह जोड़ी ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित ठेका-पट्टा के काम के लिए खुल कर ठेके लेती है. इस सूची में एक और नाम अंकित है. सचिवालय में सट कर बैठने वाले बाबा भी तबादले के व्यवसाय में संलग्‍न बताये जाते हैं. इनके पास बिना पूछे साहब के कक्ष में घुसने-निकलने का परमिट है. उधर अनुबंध से स्थायी हुए करीब दो सौ चिकित्सकों को इधर-उधर करवाने का ठेका इसी ग्रुप के दो युवा चिकित्सकों ने ले रखा है. एक मंत्री के साथ अपने विशेष पद के कारण इन दिनों सरकार से करीबी का आनंद ले रहा है. अनुबंध से स्थायी हुए चिकित्सकों का माह भर के अंदर ही फिर से तबादला किया गया है. चलती तो है युवा टोली की ही.

खराब प्रदर्शन, बेहतर पोस्टिंग

1. बंद पड़े गढ़वा के ट्रॉमा सेंटर में तीन चिकित्सकों की पोस्टिंग हुई है. डॉ अनुज कुमार चौधरी व डॉ शैलेंद्र कुमार वर्मा (30 नवंबर को) तथा डॉ सुभाष प्रसाद (31 दिसंबर को) वहां भेजे गये हैं

2. बोकारो के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ शशिभूषण प्रसाद सिंह पर वित्तीय अनियमितता के मामले में प्रपत्र-क भी गठित हो चुका है

3. कोडरमा के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ एसएन तिवारी पर भी कई आरोप हैं

4. लंबे समय से डय़ूटी से गायब डॉ मुकेश कुमार राय जैसे चिकित्सकों का भी कल्याण किया गया है

5. लातेहार के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ कन्हैया प्रसाद के विरुद्ध भी गबन व अन्य मामले हैं.

6. एड्स कंट्रोल सोसाइटी के प्रभारी अपर परियोजना निदेशक डॉ राजमोहन को जब सिविल सजर्न, गढ़वा बनाया गया, तो वह जा नहीं रहे थे. उनके लिए मंत्री को पीत पत्र लिखना पड़ा था. गढ़वा में भी उनका प्रदर्शन खराब रहा. पूर्व सचिव के विद्यासागर ने समीक्षा के दौरान सार्वजनिक रूप से यह कहा था. इन्हें खराब प्रदर्शन के आधार पर इसी वर्ष 23 नवंबर को मुख्यालय बुलाया गया. अब 31 दिसंबर की अधिसूचना में उन्हें राज्य अंधापन नियंत्रण पदाधिकारी बना दिया गया. यह एड्स सोसाइटी में रहते अंधापन नियंत्रण पदाधिकारी ही थे

7. नवंबर में चाईबासा भेजे गये रिम्स के पूर्व अधीक्षक डॉ एसके चौधरी को एमजीएम, जमशेदपुर भेज दिया गया

8. साल भर पहले एड्स सोसाइटी के अपर परियोजना निदेशक बने डॉ बीपी चौरसिया को अधीक्षक, रिनपास बना दिया गया

9. रिनपास में हर रोज करीब डेढ़ सौ मरीज देखनेवाले डॉ अशोक कुमार नाग को एड्स सोसाइटी भेज दिया गया

10. साल भर पहले एड्स सोसाइटी के संयुक्त निदेशक बने डॉ रघुनाथ को रिम्स का स्टोर प्रभारी बना दिया गया

11. रामगढ़ के सिविल सजर्न बने डॉ पीके पांडेय डेढ़ वर्ष के अंदर ही सिविल सजर्न, लोहरदगा, चतरा व फिर रामगढ़ गये. इनसे बगैर आवेदन के सप्ताह भर (13 से 20 फरवरी) गायब रहने पर कारण पूछा गया था

12. गढ़वा के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ जगत भूषण प्रसाद पर पोटका में गबन का मामला है. जांच चल रही है

13. गोड्डा के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ सीके शाही साल भर पहले ही सिविल सजर्न, देवघर बनाये गये थे

14. सरायकेला-खरसांवा के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ कलानंद मिश्र सीएस लातेहार से गुमला लाया गया था. फिर चाईबासा भेजे गये थे

15. हजारीबाग के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ ओम प्रकाश आर्य को दो साल पहले सीएस, खूंटी बनाया गया था. वहां उन पर एक गंभीर आरोप लगने के बाद एसीएमओ गढ़वा बनाया गया. यहां साल भर रहने के बाद ही उन्हें पहले 30 नवंबर को एसीएमओ गढ़वा बनाया गया. फिर 31 दिसंबर को सीएस, हजारीबाग बनाया गया जहां वे दो साल पहले सीएस थे

16. खराब प्रदर्शन के बाद मुख्यालय बुलाये गये डॉ एसएन तिवारी, पाकुड़ के एसीएमओ बनाये गये डॉ रमेश सिंह, पाकुड़ के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ शिवशंकर हरिजन व देवघर के सिविल सजर्न बनाये गये डॉ दिवाकर कामत के मामले में उनके कार्य प्रदर्शन, उपस्थिति व सेवा रिकॉर्ड की अनदेखी की गयी है.

17. जमशेदपुर से जगन्नाथपुर गये डॉ महेश्वर प्रसाद फिर जमशेदपुर आ गये हैं. बोकारो में क्लिनिक चलानेवाली डॉ रागिनी अग्रवाल गढ़वा से फिर बोकारो आ गयी हैं. बोकारो में ही प्रैक्टिस करने वाले डॉ अजरुन प्रसाद भी गुमला से बोकारो पहुंच गये हैं.

(उपरोक्त अधिकारियों में से दो पर महिला उत्पीड़न का आरोप भी है.)

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