।। दक्षा वैदकर ।।
आप में से कई लोगों ने शायद यह कहानी सुनी हो. एक कंपनी के मालिक ने तय किया कि उसे रिटायर हो जाना चाहिए. उसने अपनी कंपनी के किसी एक कर्मचारी को कंपनी सौंपने का अनोखा तरीका खोजा. उसने सभी कर्मचारियों को बुलाया और उन्हें कुछ बीज दे दिये. सभी को कहा कि एक महीने के अंदर जो व्यक्ति इन बीजों को पौधों में बदलेगा और उसमें फूल खिला पायेगा, उसे मैं अपनी कंपनी सौपूंगा.
एक महीना बीत गया. सारे कर्मचारी इकट्ठा हुए. सभी के हाथों में गमले थे और उनमें रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे फूल खिले थे. मालिक के सामने सभी सीना ताने खड़े थे. बस एक कर्मचारी सबसे पीछा खड़ा था. मालिक ने पूछा, ‘क्या हुआ?’ उसने जवाब दिया, ‘मालिक, मैंने सारी कोशिशें कर के देख लीं, लेकिन इन बीज में से कोपल तक नहीं फूटी.’ मालिक यह सुनकर उसे कंपनी सौंप देते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि मालिक ने सभी कर्मचारियों को उबले बीज दिये थे, जिनसे पौधा या फूल कुछ भी नहीं उग सकता था.
अब ये तो हुई असली कहानी. मैंने इस कहानी में थोड़ा बदलाव किया है. आप भी करें. सोचें कि यदि आपकी कंपनी के मालिक भी यह ऐलान कर दें, तो आपके ऑफिस में कौन, क्या-क्या करेगा और सोचेगा. पहला कर्मचारी वह होगा, जो ईमानदारी से बता देगा कि कोशिश की, लेकिन फूल नहीं उगे. दूसरा कर्मचारी वह होगा, जो चीटिंग करेगा और दूसरों के फूलों को मालिक को सौंप देगा. तीसरा कर्मचारी सोचेगा कि कौन एक महीने तक इतनी मेहनत करे, हम तो कर्मचारी बन कर ही खुश हैं. चौथा कर्मचारी सोचेगा कि ये तो मेरे बायें हाथ का खेल हैं, लेकिन बेवजह मैं अपना टैलेंट क्यों दिखाऊं? पांचवां कर्मचारी सोचेगा, यदि मैं जीत गया तो मुझ पर कंपनी की पूरी जिम्मेवारी आ जायेगी. बेवजह का टेंशन होगा. मैं जिंदगी के मजे नहीं ले पाऊंगा. छठा कर्मचारी बस दिन-रात सपने देखेगा कि उसने मेहनत भी कर ली है, फूल भी उग गये हैं और मालिक ने कंपनी भी उसे सौंप दी है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन-सा व्यक्ति सही है.
बात पते की..
आप ऐसी परिस्थिति में क्या करेंगे? कहीं आप दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे कर्मचारी तो नहीं? यदि हैं, तो इसे तुरंत सुधारें. पहले कर्मचारी बनें.
क्या आपके अंदर हिम्मत है कि आप सच कह सकें? बिना रिजल्ट की परवाह किये? एक बार सच बोल के देखिये, आपको बहुत आनंद आयेगा.