।। सरयू राय।।
देश का जनमानस बदलाव के लिए आतुर है. बदलाव की जन आकांक्षा एक नायक की तलाश में है. इस संदर्भ में राष्ट्रीय राजनीति के चुनावी फलक पर नरेंद्र मोदी का उभार उसे आकर्षित कर रहा है, एक उम्मीद बंधा रहा है. समाज का बड़ा तबका, खासकर युवा वर्ग, इस ओर मुखातिब प्रतीत हो रहा है. देश भर में उनकी रैलियों में उमड़ रही भारी भीड़ इसका संकेत है. रांची की उनकी बहुप्रतीक्षित रैली में भी इस संभावना के मूर्त होने के आसार हैं.
आखिर क्या है इसके पीछे? सामाजिक – राजनीतिक आंदोलनों के माध्यम से जनाकांक्षा का प्रतीक बन कर उभरनेवाले और सत्ता के संपर्क में आकर तिरोहित हो जाने अथवा व्यवस्था के साथ एकाकार हो जानेवाले नेतृत्व वर्ग के अनेक उदाहरण भारतीय राजनीति में विद्यमान हैं.इस कारण आंदोलनकारी नेतृत्व के परिवर्तनकारी चरित्र के प्रति समाज में अविश्वसनीयता एवं वितृष्णा का भाव भर गया है. इसका मनोवैज्ञानिक लाभ उठा कर यथास्थितिवादी और निहित स्वार्थी समूह सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज रहने की कोशिश में लंबे समय तक सफल रहा है. इस प्रवृत्ति ने सत्ता तंत्र को अराजक मोड़ पर ला खड़ा किया है.
नतीजतन आज महंगाई, भ्रष्टाचार और कुशासन पराकाष्ठा पर हैं. जनमानस में देश की एकता, अखंडता तथा आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़ा हो रहे हैं. सत्ता शीर्ष पर बैठे राजनैतिक नेतृत्व के लोभपरस्त आत्मकेंद्रित आचरण से समतामूलक समाज की अवधारणा संकट में है. एक मजबूत और जिम्मेदार राष्ट्र के नाते भारत की साख पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. देश को महाशक्ति बनाने की दिशा में हो रहे भारतीय मेधा के तमाम प्रयास राजनीतिक-प्रशासनिक कुप्रबंधन की चौखट पर दम तोड़ते नजर आ रहे हैं.
लोग इस स्थिति से उबरने के लिए छटपटा रहे हैं. उन्हें लगता है कि मजबूत इरादोंवाला एक दृढ़ निश्चयी नेतृत्व ही देश और समाज को इस गर्त से बाहर निकाल सकता है. इस परिप्रेक्ष्य मे नरेंद्र मोदी बिना मीन- मेख निकाले लोगों की स्वाभाविक पसंद बनते जा रहे हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव इस भावना को मूर्त रूप देने के लिए एक अवसर है. चुनाव की तिथि ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, जनमानस में इस भावना के घनीभूत होने के आसार बढ़ते जा रहे हैं.
झारखंड इसका अपवाद नहीं है. यहां तो परिस्थितियां अधिक परिपक्व हैं. यह राज्य विगत 13 वर्षों से भ्रष्टाचारोन्मुख और बेमेल राजनीतिक गंठबंधनों की प्रयोगशाला बना हुआ है. प्राकृतिक संसाधनों की विपुलता के बावजूद समावेशी विकास के मामले में यह राज्य पिछड़ते जा रहा है. देश को आगे बढ़ना है, तो झारखंड को आगे बढ़ना होगा. इस संदर्भ में नरेंद्र मोदी की रांची रैली प्रासंगिक भी है और सार्थक भी. उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत का आह्वान किया है. भ्रष्टाचार मुक्त झारखंड इस रैली का संकल्प होना चाहिए.
भाजपा ने रांची की रैली को विजय संकल्प रैली का नाम दिया है. इसका अभिप्राय आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत होने और नरेंद्र मोदी के भारत का प्रधानमंत्री बनने से है . रैली का यह संकल्प प्रदेश भाजपा संगठन और कार्यकर्ताओं में नयी ऊर्जा का संचार करेगा. उस औजार को धारदार बनायेगा, जिसे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए झारखंड में पर्याप्त जनसमर्थन जुटाने का माध्यम बनना है. भाजपा के कार्यकर्ताओं का उत्साह तो रैली की तैयारी की प्रक्रि या के दरम्यान ही सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुका है. रही बात चुनाव चिह्न् कमल फूल को भाजपा एवं गैर भाजपा मोदी समर्थकों के जेहन में बैठाने का, तो इसके लिए संगठन को सक्रि य कराने का रिहर्सल रैली के प्रभावशाली आयोजन के माध्यम से पूरा हो जाने की उम्मीद की जा सकती है.
रैली के ठीक पहले के दो घटनाक्र मों का उल्लेख यहां प्रासंगिक होगा. एक, नरेंद्र मोदी का गुजरात दंगों में संलिप्तता के आरोप से बरी होना और दूसरा जनता दल यूनाइटेड और झारखंड विकास मोरचा के बीच कामकाजी समझौता होना. इन दोनों परिघटनाओं में झारखंड की राजनीति को प्रभावित करने का माद्दा है. इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. सांप्रदायिक दंगे में नरेंद्र मोदी की संलिप्तता के आरोप न्यायालय द्वारा खारिज कर दिये जाने के बाद उनकी स्वीकार्यता का क्षेत्र विस्तार होगा. इसका आगाज रांची की विजय संकल्प रैली से होगा.
बाबूलाल मरांडी और नीतीश कुमार के बीच का कामकाजी राजनीतिक समझौता झारखंड में भाजपा का विकल्प देने की एक कोशिश है. दोनों नेताओं के बीच समझौता से इनके दलों का राजनीतिक एकाकीपन खत्म हुआ है. एक- दूसरे के राज्यों में बहुत प्रभावशाली उपस्थित नहीं होने के बावजूद दोनों मिल कर बिहार- झारखंड में भाजपा का गैर कांग्रेसी विकल्प बनने का पुरजोर प्रयास करेंगे. इनका तालमेल इस अवधारणा पर काम करेगा कि जिन राज्यों में सशक्त गैर कांग्रेसी विकल्प मौजूद नहीं है, उन्हीं राज्यों के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को विकल्प के रूप में अपनाया है. जहां थोड़ी भी गुंजाइश बनी है, वहां की जनता ने कांग्रेस के गैर भाजपा विकल्प को भी तरजीह दिया है. दिल्ली के हालिया विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की दमदार उपस्थिति इनके तरकश का नया प्रेरक तीर होगा. इस तीर चढ़ी कंघी से ये झारखंड में भी ये अपनी सूरत संवारने की कोशिश करना चाहेंगे.
फिलहाल झारखंड राजनीतिक एवं प्रशासनिक अराजकता के दौर से गुजर रहा है. सत्ताधारी गंठबंधन इस आग में घी डालने का काम कर रहा है. राज्य के उद्योग- धंधे बंद हो रहे हैं. तीन दर्जन से अधिक विनिर्माण उद्योगों की गतिविधियां ठप हैं. टाटा मोटर्स जैसी कंपनी में तालाबंदी है. यह कंपनी जमशेदपुर में काम समेट कर लखनऊ और पंतनगर भाग रही है. इस पर आश्रित आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में मुर्दनी छाई हुई है. भवन निर्माण क्षेत्र के लाखों मजदूर बालू का उठाव नहीं होने से बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं. कानून व्यवस्था की राह में राज्य के मंत्री और विधायक सबसे बड़ी बाधा बन गये हैं. इनकी दबिश और बदजुबानी के कारण पुलिस प्रशासन के अधिकारी सदमे में हैं. भ्रष्टाचार और अनियमतिता का बोलबाला बढ़ गया है. कोयला, लोहा एवं अन्य क्षेत्रों में अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा है.
विजय संकल्प रैली से उत्पन्न उत्साह इनके विरुद्ध एक सगुण प्रभावी हथियार बन सकता है. रैली में भाजपा कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त आम लोगों की शिरकत बड़ी संख्या में हो रही है. ये लोग जिस उद्देश्य से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, वह उद्देश्य भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार मुक्त झारखंड के बिना पूरा नहीं हो सकता. रैली की ऊर्जा का इस दिशा में सकारात्मक उपयोग झारखंड की सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का माध्यम बन सकता है. इसके लिए जमीनी स्तर पर दीर्घकालीन अभियान की जरूरत होगी. घर- घर जाकर रैली का निमंत्रण पत्र बांटनेवाली ताकतें एकजुट होकर रैली के बाद उत्तरदायी एवं पारदर्शी शासन के इस अभियान का हिस्सा बनायी जायें, तो शासन-प्रशासन की कार्य संस्कृति में परिवर्तन की प्रक्रि या को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है.
रैली की सफलता से झारखंड में एक नये राजनीतिक समीकरण की संभावना आकार ले सकती है. न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि राज्य स्तर पर भी उस बदलाव की अपेक्षा पूरी हो सकती है, जिसके लिए जनमानस आतुर है. सुशासन के लिए मजबूत और जिम्मेदार केंद्र सरकार बनाने हेतु राष्ट्रीय राजनीति के ध्रुवीकरण का महत्व प्रतिपादित करने, इसके लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों के उभार पर विराम लगाने और उनकी आत्मकेंद्रित महात्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाने मे झारखंड का महत्वपूर्ण योगदान इस रैली की एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है.
(लेखक पूर्व विधायक व भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं.)