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सिट्रोनेला की खेती से संवारें भविष्य

सिट्रोनेला एक औषधीय पौधा है. इसका तेल बनाया जाता है, जिसका उपयोग सेंट, मोमबत्ती, साबुन सहित कई चीजें बनाने में होती है. यह पौधा मच्छर को भगाने में भी लाभदायक होता है. इस पौधे की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. हाल के दिनों में अपने प्रदेश के कुछ इलाकों में किसानों ने […]

सिट्रोनेला एक औषधीय पौधा है. इसका तेल बनाया जाता है, जिसका उपयोग सेंट, मोमबत्ती, साबुन सहित कई चीजें बनाने में होती है. यह पौधा मच्छर को भगाने में भी लाभदायक होता है. इस पौधे की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. हाल के दिनों में अपने प्रदेश के कुछ इलाकों में किसानों ने इसकी खेती शुरू की और वे इसको लेकर खासा उत्साहित भी हैं.

सिट्रोनेला एक स्वस्थ्य पौधा है और यह अनेक प्रकार की मिट्टी व स्थितियों के अनुकूल होता है. हालांकि यह गहरी नरम मिट्टी जो खाद-मिट्टी पोषक तत्वों से प्रचुर होने के साथ-साथ ढीला भूरभूरी बनावट वाली होती है और जिसके नीचे अभेद्य परत हैं, वो पर्याप्त उत्पादन प्राप्त करने के लिए बेहतर है. पांच से सात पीएच वाली मिट्टी इसके लिए आदर्श मानी जाती है. सिट्रोनेला के लिए गरम और नमी वाले मौसम को वरीयता दी जाती है. फसल को स्पष्ट भारी और समान रूपी 2000-3000 सेमी प्रति वर्ष वाली वर्षा वाले स्थान पर सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. यह फसल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई स्थिति के तहत अच्छी तरह उगायी जा सकती है. 20 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में 70 फीसदी और वायुमंडलीय आद्र्रता को आदर्श माना गया है. इसे समुद्र तल से 800 से 1000 मीटर ऊंचे क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. सिंगापुर तथा इंडोनेशिया, चाइना, आज्रेंटीना, ताइवान, श्रीलंका व भारत के कर्नाटक एवं उत्तर-पूर्व राज्यों में सामान्यत: उगाया जाता है. सिट्रोनेला के पहली बार की पैदावार से गुणवत्ता वाला तेल मिलता है, जबकि अन्य दो से तेल की उच्च पैदावार मिलती है.

सिट्रोनेला की खेती को बढावा दे रहा है केजीवीके
ग्राम विकास एवं कृषि विकास के लिए काम करने वाला संगठन कृषि ग्राम विकास केंद्र (केजीवीके) अपने प्रयासों से किसानों के बीच औषधीय पौधों की खेती को बढावा दे रहा है. केजीवीके ने अपने निजी प्रयासों से गांव में खस, लेमन ग्रास, सिट्रोनेला की खेती को लोकप्रिय बनाने और युवाओं के इस कार्य से जोड़ने की शुरुआत की. वैज्ञानिक पद्धति के जरिये कृषि कार्य किया जाये तो कृषि आजीविका का एक बेहतर और लाभदायक साधन है. औषधीय पौधों की खेती इस लाभ को सफल बनाने में अपना बेहतर योगदान देने में सहायक है. किसानों को इस प्रकार की खेती करने में वैज्ञानिक मदद भी की जाती है और वैज्ञानिक सहायता भी उपलब्ध करायी जाती है. साथ ही बाजार भी उन्हें उपलब्ध कराया जाता है. केजीवीके के किसानों को लेमन ग्रास की खेती से जोड़ कर इससे होने वाली आय और इसके बाजार मूल्य से अवगत करा कर खेती शुरू की है. इस प्रकार की खेती को रांची जिले के बुंडू प्रखंड के कांची, हेंठ कांची, अलना, सिरकाडीह, भोजडीह गांव के किसानों ने अपनाया है और सफलतापूर्वक इसकी खेती शुरू की है.

हेठकांची के युवा मुखिया मुकेश मुंडा की खेतों में लगे हुए सिट्रोनेला के पौधे अब बड़े हो रहे हैं. इसके फायदे भी मुकेश मुंडा को अच्छी तरह पता है. मुकेश कहते हैं : गांव के मुखिया होने के कारण मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं किसी भी नयी फसल को पहले अपने खेत में लगा कर देखूं, जिससे बाकी लोगों को भी इस प्रकार की खेती के प्रति विश्वास पैदा हो. इसी लेमन ग्रास से जुड़े किसान राज किशोर मुंडा, कन्हाई मुंडा, छोटू सिंह, मंगला देवी भी इस प्रकार की नयी खेती के साथ जुड़ कर इस क्षेत्र में अपने लिए नयी संभावना को तलाश रहे हैं. केजीवीके ने इन किसानों को पौधे, खाद, तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण मुफ्त उपलब्ध कराया गया है. साथ ही इसके तेल के उपयोग से बनने वाली सामग्री और बाजार के फैलाव से भी अवगत कराया है.

(सामग्री संयोजन : प्रशांत जयवर्धन. सिट्रोनेला की खेती के संबंध में अधिक जानकारी के लिए इनके मोबाइल नंबर – 9386806471 पर संपर्क कर सकते हैं. अभिषेक से भी उनके मोबाइल नंबर – 9308393001 पर संपर्क कर सकते हैं.)

खेती की विधि : पहला वर्ष

जून

खेत की अंतिम जुताई के समय प्रति एकड़ पांच-छह टन गोबर खाद 70 किग्रा डीएपी और 50 किग्रा एमओपी का प्रयोग करें. खेत में यदि जिंक की कमी हो तो 15 किलोग्राम प्रति एकड़ जिंक सल्फेट का प्रयोग खेत की अंतिम जुताई के समय करें.

जुलाई

खेत में 45 गुणा 45 सेंमी की दूरी पर पौधे लगाने के लिए छोटे आकार का गड्ढा खोदें. प्रत्येक गड्ढे में नीम केक और कारबोफूरॉन का मिश्रण डाले और मिट्टी के साथ मिला ले. 170 किग्रा नीम केक, 3.5 किग्रा कारबोफूरॉन प्रति एकड़ डालें. जून-जुलाई माह के दौरान वर्षा के आगमन पर पौधों पर रोपण किया जाता है. लगभग आठ सेमी सीधे गहराई में तथा आपस में 45 गुणा 45 सेमी की दूरी पर रोपण किया गया. पौधा रोपण के चौथे दिन में बायोजाइम (एक मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का पहला छिड़काव करें और दूसरा छिड़काव दूसरे दिन करें. पौधा रोपण के 30वें दिन 40 किग्रा यूरिया खाद प्रति एकड़ में प्रयोग करें. वर्षा के पानी को नाली में जमने

नहीं दें.

अगस्त

नये जमे हुए पौधों में एक से दो बार खतपतवार तबतक निकाला जाये, जबतक पौधा झाड़ीदार नहीं आ जाये. पौधा रोपण के 25वें दिन मल्टीपलेक्स (दो मिली/ली पानी) के घोल का छिड़काव करें. पौधरोपण के 40वें दिन में नाइट्रोफोसका (दो ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें. वर्षा के पानी को नाली में जमने नहीं दें. पौधरोपण के 65 दिन में बायोजाइम (एक मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें.

सितंबर

नये जमे हुए पौधों में एक से दो बार खरपतवार तबतक निकाली जाये, जब तक पौधा झाड़ीदार नहीं हो जाये. पौधारोपण के 80वें दिन में मल्टीपलेक्स (दो मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें. पौधारोपण के 95वें दिन में नाइट्रोफोसका (दो ग्राम प्रति लीटर ) के घोल का छिड़काव करें.

अक्तूबर

अक्तूबर महीने में प्रथम कटाई करें. कटाई के बार ब्ल्यूकॉपर (तीन ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें. शुष्क महीनों में सिंचाई 15 दिन में एक बार जरूरत होती है.

नवंबर

नवंबर माह में प्रथम कोड़ाई करे. पौधा प्रथम कटाई के 15वें दिन में बायोजाइम (एक मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का पहला छिड़काव करें और दूसरा छिड़काव 15वें दिन में करें. पौधा प्रथम कटाई के 30वें दिन 40 किग्रा यूरिया, खाद प्रति एकड़ में प्रयोग करें. शुष्क महीनों में सिंचाई 15 दिन में एक बार जरूर होती है.

दिसंबर

शुष्क महीनों में सिंचाई 15 दिन में एक बार जरूरत होती है. पौधा प्रथम कटाई के 40वें दिन में मल्टीपलेक्स (दो मिली प्रति लीटर) के घोल का छिड़काव करें. पौधा प्रथम कटाई के 55वें नाइट्रोफोसका (दो ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें.

जनवरी

शुष्क महीनों में सिंचाई 15 दिन में एक बार जरूरत होती है. जनवरी माह में दूसरा कटाई करें. कटाई के बाद ब्ल्यूकॉपर (तीन ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें.

फरवरी

शुष्क महीनों में सिंचाई 15 दिन में एक बार जरूरत होती है. पौधा दूसरी कटाई के 15वें दिन में बायोजाइम (एक मिली प्रति लीटर पानी) के घोल का पहला छिड़काव करें और दूसरा छिड़काव 25वें दिन करें. फरवरी महीने में दूसरी कोड़ाई करें. पौधा दूसरी कटाई के 30वें दिन 40 किग्रा यूरिया खाद प्रति एकड़ में प्रयोग करें.

मार्च

सिंचाई की 10 दिन में एक बार जरूरत होती है. पौधा दूसरी कटाई के 40ें दिन में मल्टीपलेक्स (दो मिली/लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें.

अप्रैल-मई

सिंचाई 10 दिन में एक बार जरूर करनी चाहिए. अप्रैल-मई महीने में आप तीसरी कटाई करें. कटाई के बाद ब्ल्यूकॉपर (तीन ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें.

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