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महिला सशक्तीकरण : सभी क्षेत्रों में महिलाओं की समान भागीदारी से दूर होगी लैंगिक असमानता
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. संयुक्त राष्ट्र ने पिछले वर्ष ‘एजेंडा 2030’ का लक्ष्य रखा, जिसके तहत अगले 15 सालों में महिलाओं को सभी क्षेत्रों में समान हिस्सेदारी दिया जाना तय किया गया है. भारत में इससे जुड़ी क्या हैं बड़ी चुनौतियां और कैसे बनाया जा सकता है महिलाओं को सशक्त समेत इससे संबंधित महत्वपूर्ण […]
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. संयुक्त राष्ट्र ने पिछले वर्ष ‘एजेंडा 2030’ का लक्ष्य रखा, जिसके तहत अगले 15 सालों में महिलाओं को सभी क्षेत्रों में समान हिस्सेदारी दिया जाना तय किया गया है. भारत में इससे जुड़ी क्या हैं बड़ी चुनौतियां और कैसे बनाया जा सकता है महिलाओं को सशक्त समेत इससे संबंधित महत्वपूर्ण पहलुओं को बता रहा है आज का यह विशेष…
रंजना कुमारी
सामाजिक कार्यकर्ता
आज जब हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं, तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि आजादी के सात दशक पूरे होनेवाले हैं. इसलिए अब महिलाओं की स्थिति के व्यापक मूल्यांकन की जरूरत है. खासकर जब दुनियाभर में महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का दर्जा देने के लिए अगले 15 सालों के हिसाब से योजनाएं बन रही हैं. कई देश इस लक्ष्य को पाने की कोशिश करेंगे.
अपने देश में इसकी मिलीजुली तसवीर दिखती है. जहां एक ओर इसे राजनीतिक मुद्दे के रूप में स्वीकार किया गया है और राजनीतिक दलों ने संसद में 33 फीसदी आरक्षण की बात स्वीकार की, इसे देने का वादा भी किया. वहीं दूसरी ओर ऐसी बराबरी कहीं दिखाई नहीं दे रही है.
काम करने की जगह और माहौल को लेकर कानून बना. हिंसा और दहेज का कानून बना और इसे लागू भी किया जा रहा है. एक-दो दशक पहले कोई यह सोच नहीं सकता था कि परिवार में होनेवाली हिंसा के लिए भी पुलिस कार्रवाई कर सकती है. लिव-इन-रिलेशनशिप को स्वीकार किया गया. इस तरह के अनेक प्रगतिशील विचारों के बारे में भारतीय समाज में चर्चा हुई और इन्हें स्वीकार किया गया है. संपत्ति का अधिकार हासिल होने, संपत्ति खरीदने में कर छूट मिलने और लोन मिलने में आसानी होने से आर्थिक मोरचे पर महिलाएं सशक्त हुई हैं.
रुढ़िवादी सामाजिक मानसिकता
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला सशक्तीकरण के मामले में भारत अब भी काफी नीचे के पायदान पर है. हमारे यहां इस दिशा में अब भी बड़ी चुनौतियां हैं. इसका बड़ा कारण हमारी रुढ़िवादी सामाजिक और संस्कृति व उससे जुड़ी मानसिकता है. अनेक सामाजिक मान्यताओं के कारण कन्याभ्रूण हत्या जैसी घटनाएं आज भी देखने में आती हैं. कई कानूनों के बावजूद यह खत्म नहीं हुआ है. इससे कन्याजन्म का अधिकार छीन लिया जाता है. इससे दुनिया में भारत के बारे में गलत मैसेज जाता है.
समाज में अनेक धार्मिक पाखंड हैं. मसलन महिलाओं को अनेक मंदिरों में प्रवेश की इजाजत नहीं देना और माहवारी के दौरान अपवित्र बताने की परंपरा देश को पीछे धकेलती है. सामंती सोच वाले खाप पंचायतों के फैसलों ने देश की छवि को धूमिल किया है. ऐसा लगता है कि भारतीय महिलाओं को साइकिल चलाने, जींस पहनने, मोबाइल रखने की छूट नहीं है. कई समाजों में इन पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गयी है. पिछड़ेपन के ये बड़े प्रतीक हमारे सामने हैं.
हालांकि, आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन मुख्य चुनौती अब भी इनकी आर्थिक और राजनीतिक भूमिका को बढ़ाने की है. न्यायालय के ‘कोर्ट रूम’ से लेकर काॅरपोरेट के ‘बोर्ड रूम’ तक फैसले लेने की स्थिति में महिलाओं की आधी हिस्सेदारी को तय करना होगा. तभी हम ‘50 : 50’ का लक्ष्य प्राप्त कर पायेंगे. आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी यहीं से शुरू होती है. संयुक्त राष्ट्र ने भी अपने एजेंडे में इन्हीं चीजों को इंगित किया है और भारत को भी इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा. ‘जेंडर इक्वलिटी’ के लिए महिलाओं की तीन बड़ी भूमिकाएं इस प्रकार हो सकती हैं :
1. अर्थव्यवस्था में साझेदारी
अर्थव्यवस्था में महिलाओं को बराबरी का साझेदार बनाना होगा. छोटे स्तर का कारोबार करनेवाली महिला उद्यमियों को लोन मुहैया कराने समेत बाजार से जुड़ी तमाम सुविधाएं मुहैया करानी हाेंगी. इससे उन्हें आर्थिक पायदान पर आगे बढ़ाया जा सकेगा.
2. सत्ता में हिस्सेदारी
विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं की बराबरी की भूमिका होनी चाहिए. ऐसा होने पर भारत एक ही झटके में ‘ग्लोबल कमिटमेंट’ को पूरा करता दिखेगा. संसद को यह तय करना होगा और इसमें सभी वर्गों की महिलाओं को हिस्सेदारी मिलनी चाहिए. ‘स्टेपअप 50: 50’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए यह जरूरी है.
3. हिंसा से मुक्ति
महिलाओं को हिंसा से मुक्ति सबसे जरूरी है. हिंसा से जूझने में महिला अकेले पूरी तरह सक्षम नहीं हो सकती. उसमें लिप्त पुरुषों पर कानूनी कार्रवाई करनी होगी.
भारतीय समाज में दहेज का एक बड़ा कारण लालच और मुफ्त में माल हथियाने की सोच का हिस्सा है.दहेज लालच का प्रतीक है और जब तक मां-बाप यह तय नहीं करेंगे कि चाहे बेटी की शादी न हो, लेकिन बिना दहेज के नहीं करेंगे, तभी यह प्रथा खत्म हो सकती है. इसके लिए एक पीढ़ी को इस लिहाज से त्याग करना पड़ सकता है. तभी यह व्यवस्था बदलेगी. लड़कियों को करियर बनाने में माता-पिता को मदद करनी होगी.
जेंडर बजट
बजट में महिलाओं के लिए अलग से प्रावधान करना होगा. केवल आज के दिन इस पर बहस करने से कुछ हासिल नहीं होगा. बालिकाओं और महिलाओं के लिए संचालित तमाम योजनाओं को ठीक से मॉनीटरकरना होगा.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
दुनिया के अनेक देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है़ इस दिवस के मौके पर महिलाओं के बीच बिना किसी वर्ग विभाजन, चाहे वे किसी भी देश, जाति, भाषा, संस्कृति, आर्थिक स्तर या राजनीतिक समुदाय से आती हों, किसी तरह के भेदभाव के बिना उनकी उपलब्धियों काे समझा जाता है और उनका उल्लेख किया जाता है.
महिला दिवस के आयोजन का विचार पहली बार बीसवीं सदी में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में महिला कामगारों के आंदाेलनात्मक रुख धारण करने से उभर कर सामने आया था. उसी दौरान पहली बार विकसित और विकासशील देशों में आर्थिक विकास में महिलाओं के योगदान को समझा गया. दरअसल, वर्ष 1908 में न्यूयॉर्क में महिला गारमेंट कामगारों ने हड़ताल कर दी थी.
सोशलिस्ट पार्टी ने महिलाओं के इस जज्बे को निर्दिष्ट करते हुए 28 फरवरी, 1909 को अमेरिका में पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस आयोजित किया. वर्ष 1975 को संयुक्त राष्ट्र ने ‘अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष’ के रूप में घोषित किया था और इसी वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया गया.
2030 तक प्लैनेट 50-50
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की प्रगति को रेखांकित करने का दिन है. उन साधारण महिलाओं को रेखांकित करने का दिन, जिन्होंने अपने साहस और लगन से अपने समुदाय और देश के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है. इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है – ‘प्लैनेट 50-50 बाइ 2030 : स्टेप इट अप फॉर जेंडर इक्वलिटी.’ थीम का यह आइडिया इसलिए चुना गया, ताकि ‘2030 एजेंडा’ में तेजी लायी जा सके.
साथ ही सतत विकास के लक्ष्यों को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए भी इसे चुना गया. इस थीम में लैंगिक समानताओं (जेंडर इक्वलिटी) की मौजूदा प्रतिबद्धताओं समेत महिला सशक्तीकरण और महिलाओं के मानवाधिकारों को रेखांकित किया गया है. पिछले वर्ष यानी 2015 में इसका एजेंडा निर्धारित किया गया था. इस लिहाज से इस वर्ष आयोजन की बड़ी खासियत है कि ‘2030 एजेंडा’ के दायरे में यह पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है.
एजेंडा 2030 :
प्रमुख तथ्य
– बालिकाएं और बालक पूरी तरह से उनमुक्त व समान हैं और प्राथमिक व सेकेंडरी शिक्षा के लिहाज से उन्हें समानता हासिल होना. साथ ही निर्धारित लक्ष्यों को प्रभावी तरीके से हासिल कर लिया गया है.
– यह सुनिश्चित करना कि बचपन के आरंभिक विकास के लिए गुणवत्तायुक्त सुविधाओं तक सभी बालिकाओं और बालकों की पहुंच कायम हो चुकी है. साथ ही उनकी पर्याप्त देखभाल हो रही है और आरंभिक शिक्षा हासिल करने के लिए पर्याप्त माहौल मुहैया कराया जा रहा है.
– सभी महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव का अंत.
– सभी महिलाओं और लड़कियों के साथ निजी और सार्वजनिक दायरे में होने वाली सभी प्रकार की हिंसात्मक घटनाओं का पूर्णतया उन्मूलन. उत्पीड़नों के अलावा उनकी तस्करी भी शामिल है.
– बाल विवाह और जबरन विवाह समेत महिलाओं के साथ होने वाली किसी भी प्रकार की घातक प्रक्रियाओं का उन्मूलन करना.
यूएन विमेन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर फुमजिल लांबू का संदेश
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि सतत विकास के लिए निर्धारित किये गये ‘2030 एजेंडा’ का यह पहला वर्ष है. इसमें लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण पर जोर दिया गया है. इसे हासिल करने के लिए सबसे जरूरी शर्त यह है कि इसमें सभी महिलाओं को अपनी व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी.
महिलाओं के नेतृत्व की क्षमता को अब तक कम जाना गया है, लेकिन फैसले लेने में महिलाओं की व्यापक भागीदारी उभर कर सामने आनी चाहिए. ‘प्लैनेट 50-50’ के बैनर तले दुनियाभर में महिलाओं को अपने-अपने देशों, समुदायों, संगठनों आदि में अपनी इस भागीदारी को व्यापक स्तर पर तय करना होगा.
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