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कन्हैया के लिए… अभी बंगाल दूर है

देशद्रोह का आरोप झेल रहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया कुमार ज़मानत पर छूटे और जेएनयू परिसर पहुंचे. वहां छात्रों को दिए उनके भाषण को टीवी चैनलों नो प्राइम टाइम में प्रसारित किया तो वे अख़बारों की सुर्ख़िया भी बने. उनके अनुभव और आने वाले समय में चुनौतियों पर बीबीसी संवाददाता विनीत […]

देशद्रोह का आरोप झेल रहे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता कन्हैया कुमार ज़मानत पर छूटे और जेएनयू परिसर पहुंचे.

वहां छात्रों को दिए उनके भाषण को टीवी चैनलों नो प्राइम टाइम में प्रसारित किया तो वे अख़बारों की सुर्ख़िया भी बने.

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उनके अनुभव और आने वाले समय में चुनौतियों पर बीबीसी संवाददाता विनीत खरे ने उनसे बातचीत की.

अपने साथियों और कुछ पत्रकारों के साथ कैंपस में बैठे कन्हैया थके और संभल कर बात करते हुए जान पड़ रहे थे.

उन्होंने कहा, “मैं जेल से 22 दिनों के बाद बाहर निकला और मैं एक क़ैदी के तौर पर और देशद्रोह को आरोपी के रूप में अपनी भावनाएं और अनुभव एकत्र करने में लगा हूं.”

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मीडिया के बारे में कन्हैया ने कहा “ज़मानत पर छूटने के बाद मैं या तो मीडिया से बात कर रहा हूं या उससे दूर भाग रहा हूं.”

विश्वविद्यालय के छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगाए जाने के बारे में वे कहते हैं, “मेरी सीमित सोच के साथ मैं बस यही कह सकता हूं कि जो हो रहा है वह ग़लत हो रहा है.”

कन्हैया के एक साथी का कहना है कि गुरुवार रात से ही मीडिया के लोग उनसे बात करना चाहते हैं, और वो न ठीक से सोए हैं न ही उन्होंने ठीक से खाना खाया है.

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एडमिन ब्लॉक के उस हिस्से में जहां न जाने कितने विरोध हुए हैं – के ठीक सामने कन्हैया मीडिया से बात करने के लिए तैयार हो रहे थे वहीं जहाँ कुछ घंटों पहले कन्हैया का हर्षोल्लास, तालियों और लाल सलाम के नारों के बीच स्वागत किया गया था.

पास ही दीवारों के प्रधानमंत्री मोदी के ‘विकास के मॉडल’ की आलोचना करते, भाजपा की विचारधारा का स्रोत आरएसएस पर तंज कसते कार्टून बने हुए थे.

एक तरफ एक बड़े बैनर पर नामी अकादमिक शख्सियतों जैसे नोम चोम्स्की, जॉन क्रिगाल, मिखाएल फिशर के लिखे समर्थन पत्र टंगे हुए थे.

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कन्हैया को लोगों ने गले लगाया, बधाई दी जिसका उन्होने हंसकर जवाब दिया. जब अपने चित्र वाली एक सफ़ेद टी-शर्ट देखी तो कन्हैया हंस दिए.

जेएनयू पर ‘देशद्रोहियों’ को गढ़ कहने वाले आरोपों के बारे में कन्हैया ने कहा “जेएनयू, इसके लोग, इसके छात्र कभी भी देशद्रोही नहीं हो सकते.”

कन्हैया ने फरवरी 9 को हुई घटना की निंदा की जब कथित तौर पर विवादित स्लोगन दिए गए थे और कहा कि अदालत ही यह फ़ैसला करेगी कि क्या देशद्रोह है और क्या नहीं. उन्होंने कहा, “हमें भारत में आज़ादी चाहिए, भारत से नहीं”.

उन्होंने अपील की कि छात्रों के ख़िलाफ़ देशद्रोह को आरोप लगाया जाना बंद किया जाना चाहिए.

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एक पत्रकार ने एक प्रश्न पूछा जिसे छात्रों के एक वर्ग ने स्पष्ट तौर पर पंसद नहीं किया. उन्होंने पूछा, “जैसा कि छात्र संघ पुस्तिका में कहा गया है क्या संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु की फांसी न्यायिक हत्या है?”

कन्हैया ने कहा, “अफजल गुरु एक भारतीय नागरिक थे. वे जम्मू-कश्मीर के निवासी थे जो ‘अविभाजित भारत’ का हिस्सा है. उन्हें क़ानून ने दंडित किया था. उनको मिली सज़ा पर बात करना लोगों का संवैधानिक अधिकार है. अफ़ज़ल गुरु मेरे आइकन नहीं है. आज मेरे आइकन रोहित वेमुला हैं.”

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क्या वे आगामी चुनावों में वाम दलों के लिए प्रचार करेंगे, इस सवाल पर कन्हैया ने कहा, “मुझे लोगों ने वोट देकर नहीं चुना है और यूनियन की प्राथमिकता खटमलों को ख़त्म करने की है और अभी बंगाल दूर है.”

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