24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड को जानना हो तो आयें टीआरआइ

मोरहाबादी स्थित जनजातीय शोध संस्थान (अब डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान) की स्थापना 31 अक्तूबर 1953 को हुई थी. इसी वर्ष पश्चिम बंगाल, अोडिशा व मध्यप्रदेश में भी जनजातीय शोध संस्थान खुले थे. अभी भारत में ऐसे 17 संस्थान ही हैं. ये सभी जनजातीय बहुल इलाके में संचालित हैं. झारखंड को करीब से समझना […]

मोरहाबादी स्थित जनजातीय शोध संस्थान (अब डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान) की स्थापना 31 अक्तूबर 1953 को हुई थी. इसी वर्ष पश्चिम बंगाल, अोडिशा व मध्यप्रदेश में भी जनजातीय शोध संस्थान खुले थे. अभी भारत में ऐसे 17 संस्थान ही हैं. ये सभी जनजातीय बहुल इलाके में संचालित हैं. झारखंड को करीब से समझना हो, तो यहां आना जरूरी है. इस संस्थान में झारखंड में निवास करनेवाली जनजातियों के संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है. कई शोध ग्रंथ यहां मिल जायेंगे. उनके रहन-सहन को दर्शाती कई झांकियां यहां देखने को मिल जायेंगी, िजससे उनकी संस्कृति की जीवंत झलक मिल जाती है. पढ़िए प्रवीण मुंडा की िरपोर्ट…

आ दिवासियों के विकास से संबंधित मामले में जनजातीय शोध संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है. यह संस्थान राज्य के आदिवासियों की सूची बनाता है. संस्थान द्वारा आदिवासियों की भाषा, रहन सहन, खान पान व संस्कृति पर शोध व अध्ययन किया जाता है. सरकार की विभिन्न योजनाअों से आदिवासियों के जीवन में आनेवाले परिवर्तन पर भी काम हो रहा है. संस्थान सरकार व जनता के बीच एक कड़ी की भूमिका निभाता है. ये काम वर्कशॉप, सेमिनार, प्रशिक्षण कार्यक्रम व शोध के जरिये किये जाते हैं. संस्थान अपने शोध संबंधी रिपोर्ट कल्याण विभाग व केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय को भेजता है. जातिगत अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर जातियों को सूचीबद्ध किया जाता है. उदाहरण स्वरूप संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर पातर को मुंडा जाति में तथा हिल खड़िया को खड़िया जाति के तहत सूचीबद्ध किया गया. संस्थान की रिपोर्ट से जनजातियों की वर्तमान स्थिति का पता चलता है, जिससे सरकार को योजनाएं बनाने में सहायता मिलती है. संस्थान के शोध व अध्ययनों का लाभ उन विद्यार्थियों/ शोधार्थियों को होता है, जो जनजातीय जीवन पर काम करते हैं.

पदाधिकारियों, कर्मचारियों की कमी

जनजातीय शोध संस्थान में पिछले कुछ वर्षों में पदाधिकारियों व कर्मचारियों की कमी से काम प्रभावित हो रहा है. शोध संबंधी अध्ययन अब भी हो रहे हैं, पर इनकी संख्या काफी कम हो गयी है. संस्थान में शोध पदाधिकारी के लिए छह अौर शोध अन्वेषक के छह पद स्वीकृत हैं, इनमें ज्यादातर पद रिक्त हैं. इसी तरह संग्रहालय मात्र दो कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है. संस्थान में निदेशक, उप निदेशक, सहायक निदेशक, शोध पदाधिकारी, शोध अन्वेषक, पुस्तकाध्यक्ष, प्रयोगशाला सहायक सहित कुल 58 स्वीकृत पद हैं. 18 फरवरी से पूर्व तक यहां 29 पदाधिकारी/कर्मचारी कार्यरत थे. 29 पद खाली थे. हाल ही में 21 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किया गया है. रिक्तियों के भर जाने से उम्मीद है कि संस्थान के कार्य अौर शोध अध्ययनों में तेजी आ सकेगी. संस्थान में जनजातीय विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाअों की तैयारी कराने के लिए कोचिंग की व्यवस्था थी. इसका उद्देश्य जनजातीय विद्यार्थियों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाअों के लिए मार्गदर्शन देना अौर उन्हें तैयार करना था.

शिक्षक व आधारभूत संरचना की है कमी

संस्थान द्वारा एक अध्ययन कल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों से संबंधित था. उस अध्ययन से पता चलता है कि विभाग के द्वारा संचालित आवासीय विद्यालयों में शिक्षकों व आधारभूत संरचना की स्थित काफी खराब थी. यह अध्ययन राज्य के विभिन्न जिलों में स्थित 108 आवासीय विद्यालयों के सर्वे पर आधारित थे. अध्ययन से पता चलता है कि 108 स्कूलों के 1,125 क्लास रूम में से 375 का उपयोग अन्य कार्यों में हो रहा था. साथ ही इसमें उन विद्यालयों की सूची भी थी जिनके भवन में मरम्मत की जरूरत थी. इसके अलावा शौचालय व पानी तथा अन्य सुविधाअों पर भी इस अध्ययन में विस्तृत जानकारी दी गयी थी.

कई िवद्वान और वरीय अिधकारी बन चुके हैं संस्थान के निदेशक

डॉ एचएस गुप्ता (वर्तमान निदेशक), प्रवीण कुमार टोप्पो, डॉ प्रकाश चंद्र उरांव, डॉ बीएस गुहा, बीबी श्रीवास्तव, एसएन शर्मा,आरसी प्रसाद, नर्मदेश्वर प्रसाद, डॉ सच्चिदानंद, रेखा अोलिव धान, जर्नादन गोविंद कुंटे, चंद्रमोहन प्रसाद वर्मा, नेमहंस कुजूर, रेखा अोलिव धान, डॉ सत्यप्रकाश गुप्ता, रेखा अोलिव धान, केसी सिन्हा, कंवर बहादुर सक्सेना, शिशिर कुमार लाल, डॉ सत्यप्रकाश गुप्ता, स्वर्णरेखा प्रसाद, चिंतू नायक, तेज प्रताप भगत, सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा, नरेंद्र भगत, सी लाल सोता व अविनाश कुमार.

बिरसा मुंडा पर कॉमिक्स का िकया जा चुका है प्रकाशन

जनजातीय शोध संस्थान के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जीवनी पर आधारित कॉमिक्स का प्रकाशन किया गया था. यह पुस्तक तीन वॉल्यूम में थी. इनमें बिरसा मुंडा के जन्म, उनके शुरुआती दिन व शिक्षा, संघर्ष, गिरफ्तारी तथा जेल में मृत्यु तक की घटनाअों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया था. इन कॉमिक्स का प्रकाशन स्कूलों में बच्चों के बीच वितरण किया जाना था. कॉमिक्स का प्रकाशन नयी पीढ़ी को बिरसा मुंडा के संघर्षों को बताने के उद्देश्य से किया गया है. टीआरआइ रांची द्वारा पहली बार किसी जनजातीय नायक की वास्तविक कहानी पर कॉमिक्स का प्रकाशन किया गया है.

आकर्षित करता है जनजातीय संग्रहालय

जनजातीय शोध संस्थान में एक संग्रहालय सह व्याख्यान भवन भी है. पहले संस्थान परिसर में ही एक पुराने भवन में म्यूजियम था. यहां पर कई अत्यंत प्राचीन मूर्तियां व कलाकृतियां थी. साथ ही जनजातीय जीवनशैली से संबंधित वस्तुएं जैसे वस्त्र, जनजातीय आभूषण, वाद्य यंत्र व अन्य चीजें प्रदर्शित की गयी थी. हालांकि पुराने भवन में जगह की कमी थी. बाद में संस्थान परिसर में ही लगभग पौने तीन करोड़ की लागत से एक नये भवन का निर्माण किया गया. संग्रहालय का प्रवेश द्वारा गुफा की तरह है, जिसका उदघाटन 15 नवंबर 2008 को पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने किया था. इसमें दो बड़े हॉल हैं, जहां झारखंड की 32 जनजातियों की जीवन पद्धति को मॉडल द्वारा प्रदर्शित किया गया है.

जनजातियों की जीवनशैली को अलग-अलग प्रकोष्ठ (डायरोमा) में दिखाया गया है. हर जनजाति के संबंध में संक्षिप्त जानकारी (जनसंख्या, निवास क्षेत्र, पेशा आदि को दर्शाया गया है.) दी गयी है. जैसे बैगा जनजाति की जनसंख्या 2001 में 2508 व 2011 में 3582 थी. इनका निवास क्षेत्र गुमला, गोड्डा, पलामू, गढ़वा व लातेहार है. इनका पेशा कृषि, जड़ी-बूटी से इलाज करना अौर बांस की टोकरी व चटाई आदि बनाना है. गोंडाइत जनजाति की जनसंख्या 2001 में 3957 व 2011 में 4973 थी. इनका काम कृषि मजदूरी, गांव में सूचना देना व पहरेदारी करना है. बिंझिया जनजाति की जनसंख्या 2001 में 12428 व 2011 में 14404 थी. ये सिमडेगा अौर खूंटी क्षेत्र में निवास करते हैं. इनका पेशा कृषि व लघु वन पदार्थ का संग्रह करना है. बंजारा जनजाति की जनसंख्या 2001 में 374 व 2011 में 487 थी. ये साहेबगंज, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा, राजमहल, गोड्डा व पलामू में निवास करते हैं.

कई तरह की सुविधाएं हैं संग्रहालय में

संताल, मुंडा, उरांव सहित अन्य जनजातियों के संबंध में यहां जानकारी है. संग्रहालय में आदि मानव की जीवनशैली को भी दिखाया गया है. संग्रहालय में जनजातीय जीवन को दर्शाती तसवीरें लगायी गयी है. संग्रहालय में रविवार अौर छुट्टियों को छोड़ कर लगभग सभी दिन लोग आते हैं. इनमें कुछ तो शोधार्थी होते हैं. इसके अलावा स्कूल व कॉलेजों के विद्यार्थी जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं. संग्रहालय में व्याख्यान कक्ष है, जिसमें डॉक्यूमेंटरी फिल्म का प्रदर्शन, व्याख्यान, सेमिनार आदि होते रहते हैं. विश्व आदिवासी दिवस व अन्य खास अवसरों पर विशेष आयोजन होता है. प्रकाशन विभाग संस्थान का अपना प्रकाशन विंग भी है. इसमें संस्थान द्वारा किये गये शोध अध्ययन, जनजातीय जीवन से जुड़ी पुस्तकें, जर्नल आदि का समय-समय पर प्रकाशन होता है.

प्रमुखशोध अध्ययन

2001-02 राजस्व ग्राम का बेंच मार्क सर्वे, आदिम जनजाति सर्वेक्षण, खड़िया जनजाति पर अध्ययन, बंधुआ मजदूर पर अध्ययन व नक्सली संगठनों पर अध्ययन.

2002-03 अमर शहीदों पर अध्ययन, आइटीडीपी पर अध्ययन व 2003-04 मेसो क्षेत्र में बस वितरण योजना का अध्ययन.

2005-06 जनजातीय स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन, आवासीय विद्यालयों का मूल्यांकन अध्ययन, गैर सरकारी संस्थानों का मूल्यांकन अध्ययन, बिरसा आवास योजना का मूल्यांकन अध्ययन, छात्राअों के बीच साइकिल वितरण के प्रभाव का अध्ययन, आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का मूल्यांकन अध्ययन तथा जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में बाधा पर मूल्यांकन अध्ययन.

2006-07 मानव विकास सूचकांक पर शोध, सरकारी सेवा में आरक्षण की उपयोगिता पर शोध व जनजातीयों के लिए ऋण उपलब्धता के स्रोत पर अध्ययन

2007-08 विशेष केंद्रीय सहायता राशि वाले विकास कार्यों के विभिन्न पहलुअों पर शोध, वोकेशनल संस्थाअों का मूल्यांकन अध्ययन व गैरसरकारी संस्थाअों का मूल्यांकन अध्ययन.

2009-10 आजादी के बाद जनजातीयों की स्थिति में परिवर्तन पर अध्ययन व जनजातीय उपयोजना क्षेत्र में वनग्रामों का सर्वेक्षण.

2009-10 जनजातीय छात्राअों के बीच साइकिल वितरण का प्रभाव, आवासीय विद्यालयों का मूल्यांकन अध्ययन, आवासीय विद्यालयों का मूल्यांकन अध्ययन, बिरसा आवास योजना का मूल्यांकन अध्ययन

2010-11 शोध अध्ययन, वन अधिकार अधिनियम की उपलब्धियां व जिलावार आंकड़ों का संकलन तथा अन्य राज्यों से इसकी तुलना, झारखंड राज्य में निवासरत बिरहोर आदिम जनजाति की जनसंख्या में ह्रास के कारणों पर शोध अध्ययन, आदिम जनजातियों से संबंधित विभिन्न स्तर पर शिक्षा से संबंधित आंकड़े का सामान्य जनसंख्या से तुलनात्मक अध्ययन, जनजातीय छात्रावासों की स्थिति (आवश्यकता व उपलब्धता की स्थिति पर शोध अध्ययन).

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें