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भीतर और बाहर अलग-अलग मत रहो

।। दक्षा वैदकर।। एक व्यक्ति एक संत महात्मा के पास पहुंचा. उसने संत के प्रवचन सुने. प्रकृति का आनंद लिया, लोगों से मिला और अचानक कुछ सोच कर संत से बोला, ‘मैं यहां भले ही अच्छा महसूस कर रहा हूं, लेकिन मुङो एक चिंता सताये जा रही है. घर पहुंचने के बाद मेरी पत्नी मुझसे […]

।। दक्षा वैदकर।।

एक व्यक्ति एक संत महात्मा के पास पहुंचा. उसने संत के प्रवचन सुने. प्रकृति का आनंद लिया, लोगों से मिला और अचानक कुछ सोच कर संत से बोला, ‘मैं यहां भले ही अच्छा महसूस कर रहा हूं, लेकिन मुङो एक चिंता सताये जा रही है. घर पहुंचने के बाद मेरी पत्नी मुझसे कई तरह के सवाल-जवाब करेगी. मैं जब भी घर के बाहर जाता हूं, तो वह मुझ पर खूब चिल्लाती है. वह मुझसे हर बात की जानकारी मांगेगी. मैं कितने बजे आश्रम पहुंचा. वहां कौन-कौन आया था? संच ने क्या-क्या कहा? और कहां-कहां गये तुम? किसी और से बातचीत हुई क्या? और वह सचमुच जो चीज जानना चाहती है, उसे वह कभी साफ-साफ नहीं पूछेगी. दरअसल, वह मेरे साथ रहनेवाले हर व्यक्ति के बारे में जानना चाहती है, ताकि वह उनसे संपर्क कर के मेरे बारे में जानकारी हासिल कर सके. इस तरह मेरे यहां के अनुभवों का मजा किरकिरा हो जाता है. मुङो यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है.’

उसने आगे कहा, ‘मुझे लगता है कि वह जानती है कि उसे कौन-सा सवाल पूछना है. दरअसल, मैं उससे भी इसी आश्रम में मिला था, तब मैं किसी और से विवाहित था.’ संत ने उस व्यक्ति से कहा, ‘दरअसल, तुम अपनी पत्नी का दिमाग पेचकस से खोल कर पूरी तरह दुरुस्त कर देना चाहते हो. तुम चाहते हो कि एक मशीन की तरह तुम उसकी वायरिंग सुधार दो, लेकिन यह संभव नहीं है.’

उस व्यक्ति ने महात्मा के समक्ष अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा, ‘मैं चाहता हूं कि वह बदल जाये.’ संत ने कहा, तुम सिर्फ चरचा के माध्यम से उन समस्याओं से बाहर नहीं निकल सकते, जिन्हें तुमने अपने व्यवहार से पैदा किया है. किसी भी संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि हम क्या कहते हैं या करते हैं, बल्कि यह है कि हम अंदर से क्या हैं. और अगर हमारे शब्द तथा कार्य हमारे आंतरिक केंद्र (चरित्र-आधारित नीतिशास्त्र) के बजाय मानवीय संबंधों की सतही तकनीकों (व्यक्तित्व- आधारित नीतिशास्त्र) से उत्पन्न होते हैं, तो लोग इस छल-कपट को भांप लेंगे. जो तकनीकऔर निपुणताएं मानवीय संबंधों में सचमुच फर्क पैदा करती हैं, वे सच्चे आत्मनिर्भर चरित्र से प्रवाहित होती हैं.

बात पते की..

अगर आप भीतर से कुछ और सोचते हैं और बाहर कुछ और कहते हैं, तो एक न एक दिन लोग आपके इस छल-कपट को भांप ही लेंगे.

बिगड़े हुए रिश्ते तभी सुधरेंगे, जब सचमुच ईमानदारी के साथ उन्हें सुधारने की कोशिश की जायेगी. दूसरों की सोच तभी बदलेगी, जब हम बदलेंगे.

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