हम सबके जीवन में कठिन समय आता ही है. इस धरती पर आदिकाल से लेकर कोई भी ऐसा व्यक्ति पैदा नहीं हुआ, जिसे कभी न कभी कठिन समय ने नहीं घेरा हो. परंतु केवल एक ही चीज है, जो हमें उस समय से निकलने में मदद कर सकती है – हमारी सोच. हमारी सकारात्मक सोच हमारे सामने परिस्थियों को अलग तरीके से पेश करेगी. आज की कहानी हमें इस दृष्टिकोण को समझने में मदद करेगी.
एक बार एक प्रोफेसर साहब ने अपने बेटे को उदास देखा, तो उसका कारण पूछा. बेटे ने बताया कि मैं जिस ऑफिस में काम करता हूं, वहां मुझ पर काम का बहुत दबाव है और मैं निरंतर संघर्ष से गुजरता हूं. समझ में नहीं आता कि इसका क्या हल निकालूं. काम छोड़ दूं या कुछ और करूं. प्रोफेसर साहब ने उसे सांत्वना दी और एक गाजर, एक अंडा और कॉफी के कुछ दाने लेकर आने को कहा.
बेटा ये सारी चीज ले आया. अब प्रोफेसर साहब ने तीन बर्तन में एक-एक ग्लास पानी डाला. फिर, उन बर्तनों में अलग-अलग गाजर, अंडा और कॉफी डाल कर आग पर चढ़ा दिया. बीस मिनट खौलते पानी में पकने के बाद प्रोफेसर साहब ने चूल्हा बंद कर दिया और थोड़ी देर बाद तीनों वस्तुओं को प्लेट में निकाला. गाजर थोड़ा नरम और पिलपिल हो गया था, अंडा सख्त हो गया था और कॉफी पानी में मिल गयी थी. प्रोफेसर साहब ने कहा देखो, किसी भी कठिन परिस्थिति में हम इन्हीं तीन प्रकार के हो जाते हैं.
अब तुम्हें यह तय करना है कि तुम्हें क्या बनना है. बेटे को कुछ समझ में नहीं आया. आगे प्रोफेसर साहब ने कहा, यह गाजर सख्त था, लेकिन विषम परिस्थितियों ने इसे पिलपिल यानी ढीला कर दिया है, लेकिन अंडे ने कठिन परिस्थिति का सामना करते हुए स्वयं को अंदर से कठोर बना लिया. वहीं कठोर कॉफी के टुकड़े का अपना अस्तित्व ही समाप्त हो गया और वह पानी में पूरी तरह मिल गया. प्रोफेसर साहब ने आगे कहा, कई लोग गाजर की तरह होते हैं, जो शुरू में तो सख्त होते हैं, लेकिन परिस्थियों के अनुसार अपने सिद्धांतों से समझौता कर नरम हो जाते हैं और कोई भी उनको आसानी से तोड़ सकता है. कुछ लोग अंडे की तरह हो जाते हैं, जिनको विषम परिस्थितियां अंदर से और कठोर बना देती हैं. वहीं, कुछ लोगों पर विषम परिस्थियों का इतना अधिक प्रभाव होता है, कि वे स्वयं को पूरी तरह उन परिस्थियों के हवाले कर देते हैं और उनका अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है. अब यह तय तुम्हें करना है कि कठिन परिस्थियों में तुम्हारा व्यवहार किस प्रकार का होगा.
एक बार देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, कठिन समय जीवन का अंग है, जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं. परंतु हमारा नियंत्रण स्वयं पर तो है, इसलिए कठिन समय को बदलने के बजाय अपने सोचने के तरीके को बदलना होगा. कठिन समय स्वत: समाप्त हो जायेगा. यदि उनके इस वक्तव्य को हम अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें, तो हमें अपने जीवन में नयी अनुभूति की प्राप्ति होना तय है.
आशीष आदर्श
कैरियर काउंसेलर
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