।। दक्षा वैदकर ।।
लेखक स्टीफन आर कवी ने अपनी पुस्तक में रोचक बात लिखी है. वे लिखते हैं, ‘पहले समझने की कोशिश करें.. फिर समङो जाने की.’ प्राचीन यूनानियों की एक अद्भुत फिलॉसफी है, जो क्रमबद्ध रूप से तीन व्यवस्थित शब्दों में निहित है, इथॉस (विश्वास), पैथॉस (भावना) और लोगॉस (तर्क).
मैं सुझाव देता हूं कि इन तीन शब्दों में पहले समझने की कोशिश करने और प्रभावकारी प्रस्तुति देने का सार समाहित है.
इथॉस आपकी व्यक्तिगत विश्वसनीयता है. यह आपकी अखंडता और दक्षता में लोगों का विश्वास है. यह वह विश्वास है, जिसे आपने प्रेरित और अजिर्त किया है. यह आपका भावनात्मक बैंक अकाउंट है. पैथॉस परानुभूति वाला पक्ष है- यह भावना है. इसका अर्थ है कि आप सामनेवाले के संप्रेक्षण की भावनात्मक प्रबलता के अनुरूप महसूस करते हैं. लोगॉस तर्क है, प्रस्तुति का तर्कपूर्ण पक्ष.
क्रम पर ध्यान दें. इथॉस, पैथॉस, लोगॉस. सबसे पहले आपका चरित्र फिर आपके संबंध और फिर आपकी प्रस्तुति का तर्क. यह एक और प्रमुख पैरेडाइम परिवर्तन दर्शाता है. अधिकांश लोग प्रस्तुति देते समय सीधे अपने विचारों के लोगॉस (तर्क) तक पहुंच जाते हैं. बायें मस्तिष्क के तर्क पर. वे इथॉस (विश्वास) और पैथॉस (भावना) पर विचार किये बिना ही, लोगों को अपने तर्क के औचित्य का विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं.
सोचनेवाली बात यह है कि जब कोई सेल्समैन अपना प्रोडक्ट किसी ग्राहक को नहीं बेच पाता, तो दोबारा ट्रेनिंग किसे दी जाती है.
ग्राहक को? नहीं. सेल्समैन को. आप अपनी बात तभी बेहतर तरीके से समझा पायेंगे, जब आप लोगों का विश्वास जीतेंगे, भावनाओं को समङोंगे. इसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी, लेकिन अगर बेहतर रिजल्ट चाहते हैं, तो यह करना ही होगा. इतना वक्त आपको देना ही होगा. इस बात को जान लें, जब आप अपने विचारों को स्पष्टता से, पूरा ब्यौरा देते हुए, चित्रत्मक रूप से, सही संदर्भ में रख कर प्रस्तुत करते हैं, तो आपके विचारों की विश्वसनीयता बढ़ जाती है.
बात पते की..
– जब भी आपको किसी से कोई काम करवाना हो, बात मनवानी हो, तो आपको इसी सूत्र का प्रयोग कर प्रभावकारी प्रस्तुति तैयार करनी होगी.
– जब आप इस सूत्र का प्रयोग करते हैं, तो आप ‘अपनी ही चीज’ में कैद नहीं रहते. आप खुद के बनाये मंच से अतिशयोक्तिपूर्ण दावे नहीं करते.