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उम्र में कम प्रतिभा में दम

कम उम्र के वर्ल्ड रिकॉर्डधारीआज का टीनएजर्स अपनी प्रतिभा से सभी को प्रभावित कर रहा है. कोई एक रुपये के सिक्के का टावर बना कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रहा है, तो कोई एवरेस्ट की फतह कर रहा है, तो कोई कम उम्र में इंटरनेशनल परीक्षा में टॉप कर रहा है. इन्हें देख कर कहा जा […]

कम उम्र के वर्ल्ड रिकॉर्डधारी
आज का टीनएजर्स अपनी प्रतिभा से सभी को प्रभावित कर रहा है.

कोई एक रुपये के सिक्के का टावर बना कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रहा है, तो कोई एवरेस्ट की फतह कर रहा है, तो कोई कम उम्र में इंटरनेशनल

परीक्षा में टॉप कर रहा है. इन्हें देख कर कहा जा सकता है कि अगर प्रतिभा है, तो तुम भी सफलता का कोई कोना छू सकते हो.

दिमाग कंप्यूटर का, उम्र बच्चों की
उम्र अभी सिर्फ 5 साल आठ महीने ही है, लेकिन उससे कहीं से कुछ भी पुछ लो, वह उस सवाल का एकदम सटीक जवाब देगा. करनाल के कोहंड गांव के रहने वाले कौटिल्य को देश के सभी राज्यों की जानकारी जुबानी याद है. पहली क्लास के कौटिल्य से किसी भी नदी, पहाड़, आदि के बारे में पूछने पर पलक झपकते ही उसका जवाब दे देता है. उससे किसी भी देश के बारे में पूछें, वह चुटकी बजाकर बता देता है. कौटिल्य के इस ज्ञान से उसके परिवार वाले भी हैरान हैं. कौटिल्य पंडित अपने सामान्य ज्ञान का साक्षात्कार टीवी न्यूज चैनलों व केबीसी में भी दे चुके हैं.

क्वाइन टावर इन ए मिनट
जरूरी नहीं कि आप वही काम करें, जो सभी करते हैं. अगर आपकी रुचि लीक से हटकर कार्य करने में है, तो आप इसे खुशी-खुशी कर सकते हैं. अगर ऐसी बात नहीं होती तो महज एक रुपये के सिक्केसे वर्ल्ड रिकॉर्ड नहीं बनता. 17 वर्ष की छोटी सी उम्र में श्रेयस बिश्नोई ने एक रुपये के 65 सिक्कों का एक मिनट में ऐसा टावर खड़ा किया कि उनके नाम का वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया. अगर आप भी चाहें, तो इस तरह के वर्क कर सकते हैं. सिक्का ही क्यों, आप कोई भी ऐसा वर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसे करने में आपको मजा आता हो. आप वर्क करेंगे, तो जरूर सफल होंगे.

यंगेस्ट क्लाइंब द माउंट एवरेस्ट
बचपन की इस उम्र में लोग थोड़ी ऊंचाई पर भी जाने से डरता है, लेकिन इसे हौसला और जुनून का ही कमाल कहेंगे कि एक टीनएजर्स खुशी-खुशी माउंट एवरेस्ट तक पहुंच गया. जी हां, हम बात कर रहे हैं नेपाल के तंबा शेरी शेरपा की. महज 16 वर्ष, 14 दिन की उम्र में माउंट एवरेस्ट फतह करके यंगेस्ट क्लाइंब द माउंट एवरेस्ट का वर्ल्ड रिकॉर्ड उनके नाम है.

ब्लाइंड हैं मैथमेटिशियन
यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो आपके लिए दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं प्रतीश दत्ता. जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ते थे, तो बीमारी की वजह से आंखों की रौशनी चली गयी और वे अंधे हो गये. ऐसा लगा कि उन पर मुसीबत का पहाड़ टूट गया हो, लेकिन कठिन हालात में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसमें परिवार ने उनकी काफी सहायता की. प्रतीश ने परिवार को निराश नहीं किया और सन 2012 में आइआइटी खड़गपुर में न केवल एमएससी किया, बल्कि मैथ्स में गोल्ड मेडल प्राप्त किया. खुद भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें सम्मानित किया. वह ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग में भी ऑल इंडिया में सेकेंड आये थे. ब्लाइंड होकर भी उनकी उपलब्धि हर युवा के लिए एक प्रेरणाश्रोत है.

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